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बुधवार, 5 जुलाई 2023

3809..ज़िन्दगी के भोर में..

 

।। प्रातः वंदन।।

खुल रही आँखें

नयी इस ज़िन्दगी के भोर में !

उठ रहा

उठते दिवाकर संग जन-समुदाय,

भर कर भावना बहुजन हिताय !

अंतर से निकलती आ रही हैं

विश्व के कल्याण की

नव्य-जीवन की सुनहरी आब-सी

स्वर्गिक दुआएँ !

महेंद्र भटनागर

चलिए आज फिर से शब्दों के सागर में चंद पल बिताए ✍️

झुर्रियां



झुर्रियां भी अजीब होती हैं,

उजाले में देखो, तो चुप रहती हैं, 

अंधेरे में देखो,

तो दिखती नहीं हैं,

पर सिसकती बहुत..
🌟

 वो मेरी बातों में उलझें !

             

मेरी मानो हो तो ऐसा कर देना

सारे घावों को उसके तुम भर देना ।

आकर जिसमें चैन मिले , सुख पाए मन

हर बन्दे को ,अपना ऐसा घर देना

🌟

केरी के गोले ,अंजू खरबंदा







कोई दस ग्यारह बरस की रही हूँगी मैंउस समय गैस चूल्हा नहीं हुआ करता था घरों में । होता भी होगा तो मुझे मालूम नहीं । हम लोग खाना पकाने के लिये अँगीठी का उपयोग किया करते थे । उसमें कोयले डालकर उसे जलाया जाता था।

कोयले लाने के लि मैं भी कई बार पापा जी के साथ कोयले की टाल पर जाया करती..

🌟

यह कैसी अनोखी बस्ती है


जहाँ सास न कोई रहती है 

न ननद है, न देवर कोई 

बस पति-पत्नी से चलती है 

ख़ुद खाते हैं, ख़ुद पीते हैं 

🌟

गुरु ज्ञान से


जग जाये वह तर ही जाये 

रग-रग में शुभ ज्योति जलाये, 

धार प्रीत की सदा बरसती 

बस उस ओर नज़र ले जाये !

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'✍️

3 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा रचनाएं ।मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात! एक से बढ़कर एक लिंक्स का चयन किया है आपने पम्मी जी, 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर प्रस्तुति, बधाई 💐
    मेरी भी रचना को स्थान देने के लिए आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं

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