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शनिवार, 6 मई 2023
3749... पेटीकोट
5 टिप्पणियां:
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हमेशा की तरह आश्चर्यचकित करती प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार दीदी
सादर वन्दे
पेटीकोट शासन !
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाएं
लाजवाब प्रस्तुति।
एक अत्यंत उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार आपका प्रिय दीदी।पेटी कोट जैसे कथित वर्जित विषय पर जब जब लिखा गया तहलका मच गया।नारी के सम्मान के कथित प्रतीक की कीमत कोई सन्वेदनशील मन ही आँक सकता है ।जब कोई अपनी संघर्ष की अगन में निरंतर तप रही माँ के तार तार पेटी कोट को देखता है तो मानस पटल पर उभर आती हैं साहस और संघर्ष की खट्टी-मीठी स्मृतियों की अन्तहीन शृँखला।तो वहीं किसी कथित असहाय स्त्री के पेटी कोट के पार यदि कोई नराधम झांकने का कुत्सित प्रयास करता है तो इस भोगे नारकीय यथार्थ की बखियाँ उधेड़ने कोई दोपदी सिन्धार प्रकट हो जाती है दुर्गा बनकर वो भी शव्दों को तीखी कटार सरीखी कविता थामकर।आदिवासी समाज का जो कडवा सत्य उसकी कविताओं में उभरा है उसे कविता मेँ ढालने की कला कोई छोटा जोखिम नही। ये सभ्य समाज से इतर उस दुनिया का स्याह पक्ष है जिससे सबने आँखें चुरायी हैं।गुनाहगारों की अनकही कहानी रौंगटे खड़े कर देती हैं।इन्हें सब्को पढ्ना चाहिये।कोटि कोटि धन्यवाद और प्रणाम 🙏🙏🌹🌹
जवाब देंहटाएंआह से उपजी मर्मांतक अभिव्यक्ति 😞
जवाब देंहटाएंकविता को बिस्तर बना लूँगी
और सोऊँगी दिनभर की मजूरी-मारपीट के बाद
कविता को दूध बनाऊँगी
बेटा तुझे पिलाऊँगी
कविता को रोटी बनाऊँगी
गाँव भर दुनिया भर को जिमाऊँगी
पापा सुन लो
कविता को खसम करूँगी मैं
और कविता को रख दूँगी
जहाँ अपनी बिटिया की लाश रखी थी
दिया नहीं कविता जलाऊँगी मैं
जिसने सोलह साल में देख ली
नौ मौत छह डिलेबरियाँ
उसके लिए
अँधेरा कविता है
मार कविता है झगड़ा कविता है
घाव कविता है घर कविता है
तुम लोगों को बहुत परनाम
कविता बनाना बतलाया
इस कविता से मिज़स्ट्रेट के दफ़्तर
आग लगाऊँगी मैं ।
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