---

रविवार, 30 अप्रैल 2023

3743....मेरे  वजूद की ‘पिता’ ही पहली पहचान हैं।

जय माँ हाटेशवरी.....
आज पिता जी की....
छठी पुण्यतिथि है .....
[हे ईश्वर! मेरे पिता जी को अपने श्री-चरणों में स्थान देना......} मतलब सी इस दुनिया में,
वो ही हमारी शान है,
मेरे  वजूद की
‘पिता’ ही पहली पहचान हैं।
एक पँक्ति में अगर कहूँ तो
पिता हमारा अस्तितव हैं।
पिता जो हमारी जिंदगी में
वो महान शख्स होते हैं
जो हमारे सपनों को पूरा करने के लिए
अपनी सपनों की धरती बंजर
ही छोड़ देते हैं। 
अब पेश है.....
आज के लिये मेरी पसंद......

दोहे बादल करते हास
माँगे से मिलता नहीं, दुनिया में सम्मान।
बड़बोलेपन से नही, बनता व्यक्ति महान। --
सबकी अपनी सोच है, सबके अपने भाव।
बिन माँगे मत दीजिए, अपने कभी सुझाव।

ऐतिहासिक दस्तावेज है ‘21वीं सदी के इलाहाबादी’
अघ्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रमराव ने कहा कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। ऐसी किताबों से दूसरें लोगों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। आमतौर पर
पत्रकारों के बारे में नहीं लिखा जाता, लेकिन इम्तियाज ग़ाज़ी ने इसमें पत्रकारों को भी शामिल करके एक बड़ा और अनोखा कार्य किया है। गुफ़्तगू के सचिव नरेश महरानी
के सबके प्रति धन्यावद ज्ञापन किया।

विश्व पशु चिकित्सा दिवस : पोषण का रामबाण है भारत का पशुधन
पशुधन किसानों की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत में किसान मिश्रित कृषि प्रणाली को बनाए रखते हैं यानी फसल और पशुधन का संयोजन जहां
एक उद्यम का उत्पादन दूसरे उद्यम का इनपुट बन जाता है जिससे संसाधन दक्षता का एहसास होता है। पशुधन विभिन्न तरीकों से किसानों की सेवा करता है। पशुधन भारत में
कई परिवारों के लिए सहायक आय का एक स्रोत है, विशेष रूप से संसाधन गरीब जो जानवरों के कुछ सिर रखते हैं। दूध की बिक्री के माध्यम से गायों और भैंसों को दूध
देने से पशुपालकों को नियमित आय प्राप्त होगी। भेड़ और बकरी जैसे जानवर आपात स्थितियों जैसे विवाह, बीमार व्यक्तियों के इलाज, बच्चों की शिक्षा, घरों की मरम्मत
आदि को पूरा करने के लिए आय के स्रोत के रूप में काम करते हैं। जानवर चलती बैंकों और संपत्ति के रूप में भी काम करते हैं जो मालिकों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान
करते हैं।

कोई नहीं, हाँ कोई नहीं, कुछ नहीं
कोई अर्ज नहीं, कोई कर्ज नहीं
लाइक नहीं, डिसलाइक नहीं, कुछ भी दर्ज नहीं
दर्द नहीं, हमदर्द नहीं
क्या कहना है, कुछ भी नहीं, कुछ भी तो नहीं

मौलश्री के फूलों सी यादें
हमारे तुम्हारे बीच में 
गीले तकियों से 
बिस्तर की सिलवटों तक
महसूस करता हूँ तुम्हें 
हर पल अपने आस-पास 
मगर नहीं व्यक्त कर पाता 
अपने मन के भावों को

अमरबेल
लेकिन
लोकतंत्र में
कितने दिन
पनप सकेगी
ये अमरबेल ,

विज्ञापनों की रिले रेस - -
कांधे से एक अदृश्य
हाथ धीरे धीरे
उतर जाता
है, हम
पुनः
तलाशते हैं नयी विज्ञप्ति, हमारा गंतव्य आ
कर कब गुज़र जाता है हम जान ही नहीं
पाते, बस नज़र के सामने दौड़ते से
दिखाई देते हैं ढेर सारे रंग बिरंगे
विज्ञापनों की भीड़, अंतहीन

धन्यवाद।                                

4 टिप्‍पणियां:

  1. शत शत नमन
    स्मृतिशेष ठाकुर ईश्वर सिंह को
    स्मृतियों में आज भी जीवित हैं पिताश्री
    .....
    शानदार रचनाएं।
    आभार आदरणीय
    सादर



    जवाब देंहटाएं
  2. आपके पूज्य पिता श्री को सादर प्रणाम !

    जवाब देंहटाएं
  3. ईश्वर तो आपके साथ ही रहते हैं हरदम
    फिर क्या चिन्ता
    स्मृतिशेष पापा जी को शत शत नमन
    हौसला रखिए
    सादर

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।