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बुधवार, 19 अप्रैल 2023

3733..अभी सुबह उतारी है..

 ।।उषा स्वस्ति।।


मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ।
एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ
एक तिनका आंख में मेरी पड़ा

मैं झिझक उठा,हुआ बेचैन-सा 
लाल होकर आंख भी दुखने लगी 
मूंठ देने लोग कपड़े की लगे
ऐंठ बेचारी दबे पांवों भगी.!
हरिऔध
गहन संदेश देतीं पंक्तियों के साथ
चलिए आज की पेशकश में शामिल विचारों, ग़जलों, कविताओं संग गुजारें कुछ पल..✍️

ढोल बजाना मत

गले पड़े जो ढोल बजाना मत 

खुले अगर कुछ पोल छुपाना मत

छुई-मुई मालूम नहीं कब तक

रचे-बसे दिल खोल चिढ़ाना मत..

💮

कैसे तुम को याद करू मैं


    तूम को कैसे  याद करू मै

तुम तो कभी मेरी सुनते ही नहीं

जितनी बार की प्रतीक्षा तुम्हारी

कभी आशीष तक ना  दिया तुमने |

मेर्रे मन को ठेस लगी है

💮

एक पूरा दिन है और मैं हूँ


इतवार की शाख से अभी-अभी सुबह उतारी है. एकदम खिली-खिली सी सुबह है. बाद मुद्दत हथेलियों में फुर्सत के फूल रखे हैं...
💮

प्रदूषण


ट्रिन ट्रिन

"..."

"हेल्लो !"

"..."

"तुम्हारा उद्देश्य यही था न, अपने प्रति विशेष ध्यान दिलवाना और हर किसी को तुम्हारे प्रति आकर्षित कराना?"..

💮

अहद ए इश्क़ - -







रेत पे लिखे अल्फ़ाज़ हैं लहरें मिटा जाएंगे,

कुछ पल ही सही, संग तुम्हारे बिता जाएंगे,

दांव पेंच के सिवा कुछ भी नहीं इस जहां में,
ख़ुद की पारी हार के, हम तुम्हें जिता जाएंगे,

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️


1 टिप्पणी:

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