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बुधवार, 12 अप्रैल 2023

3726..ख़ुश्बू सा बिखर जा..

 ।।प्रातःवंदन।।

"आ गया हँसता हुआ यह प्रात,

मिट गई महिमा तुम्हारी रात !

शून्यता की गोद में था मैं पड़ा,

था नहीं कोई सहायक भी खड़ा।

दृष्टि जाती थी जिधर तम था वहां,

फूल के बदले बिछे कांटे यहां।

काट खाती थी भयानक रात,

आ गया हँसता हुआ यह प्रात !"

जनार्दन राय

लिजिए नवदिन की शुरुआत खास लिंकों के साथ,कि...



पिरो दी हूँ एहसास दिल का अल्फ़ाज़ों में

हजारों ख़्वाहिशें भी ठुकरा दूँगी तेरे लिए

तूं ख़ुश्बू सा बिखर जा साँसों में मेरे लिए ।

ग़र मुकम्मल मुहब्बत का दो तुम आसरा

तुझे दिल में नज़र में अपने बसा लूँगी मैं

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 प्रेम में पड़ी स्त्री

पुरुष के लिए

सफलता की सीढ़ी

 बन जाती है... 

वहीं...

प्रेम में पड़ा पुरुष

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प्रयोगात्मक लघुकथाएं

 लघुकथा कलश का  प्रयोगात्मक लघुकथा विशेषांक

2023  में प्रकाशित मेरी दो लघुकथाएं -

साथ ही योगराज प्रभाकर..

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गांव नहीं बेचते

जितने भी ठौर हो हम अपना ठाँव नहीं बेचते
कोयल की कुक कागा की कांव कांव नहीं बेचते

दरख्तों की खुद्दारी तो देखो
धूप कितनी भी अमीर हो..
🔶

हुआ काल पर घात 
राजा निर्भय कर रहा 
मनमानी-सी बात 
जनता को पुचकार के ..
🔶
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

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