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रविवार, 2 अप्रैल 2023

3716 ..आनंदित है कण-कण जड़ का ..

 सादर नमस्कार

मास का द्वितीय दिन
भाई कुलदीप जी के गाँव में बारिश हो रही है
बिजली भी बंद है...डीजल भी नहीं आ सकता
इसीलिए जेनेरेटर भी बंद है..वहुत मुश्किल है
गाँव मे रहना.....खैर...
आज, कल और परसों बस हम और आप ही होंगे....
अब देखें रचनाएं ...

आनंदित है कण-कण जड़ का
चेतन इसमें छिपा हुआ है,
कुदरत का सौंदर्य अनूठा
मधुरिम लय में बँधा हुआ है


बातों में वही शब्द,
होठों पर वही मुस्कुराहट,
सब कुछ वही है,
फिर भी मुझे क्यों लगता है
कि हम वैसे नहीं रहे,
जैसे कभी हुआ करते थे?


रोटी सिर्फ रोटी नहीं
तपन सपनो की
मिठास प्यार की
कारीगरी हाथो की
उम्मीद ख्वाबो की

मद्धम ही सही जल तरंग सा
है ज़िन्दगी का साज़,
हज़ार ग़म लिए
सीने में, न
बदले
जीने का अंदाज़,


अब तो है सोचा कि खाएँगे धोखा जो
कुछ दिन और जीएँ
मान लेंगे उसी को अपना वो हमदम जो
कुछ देर साथ चले
शक़ और शुबहा साथ में मेरे
पल-पल साथ पले

"इक रोज़ उसने कहा था कि
"सबसे बुरा होता है,
प्रेम का इंतज़ार करना"...
प्रेम का स्वरूप समझना,
स्वयं में उतारना,
आत्मसात करना कठिन प्रतीत हो,
परंतु जब अंतस में उतरे,
समस्त आचार-विचार-व्यवहार
सबकी दिशा बदल जाती है..

आज के लिए बस
सादर
 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आनन्दित है कण- कण जग का .. हम वैसे नहीं रहे जैसे हुआ करते थे ..सपनों को पूरा करने की होङ में ..अब हम भी हम कहां रहे ...

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