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सोमवार, 27 मार्च 2023

3710 ...याद आता है घर तो छोड़ आये इन्ही रोटियों के लिए....

 सादर अभिवादन

रमजान लगा हुआ है
लोग उपवास में लगे है

हमारा भी उपवास चल रहा है
आज सूर्यछठ का व्रत है निराहार रहते हैं आज
एक सूर्यछठ दीपावली के चार दिन बाद मनाते है
बिलकुल वैसा ही व्रत है ये....

श्री राम जी के जन्मोत्सव में भी लोग लगे हैं
भंडारे का प्रसाद अमृत तुल्य लगता है
बस अब आज की रचनाएं देखिए ....



माँ के हाथों की बनी रोटियाँ  
पर नहीं मिलती
लाख चाहने पर भी वो रोटियाँ  
क्योंकि कुछ समय बाद
याद आता है घर तो छोड़ आये
इन्ही रोटियों के लिए..... !!




पथिक कोई देर तक तकता रहा शून्य आकाश,
निहारिकाओं का अभिसार, उल्काओं का
पतन, सुरसरी का बिखराव, स्वजनों
का क्रंदन, छूटता रहा पैतृक
वास स्थान, नभ पथ
के मेघ दे न सके
शीतलता,




तुम्हें फ़कत याद होगी
मेरी हड्डी विहीन रीढ़
उन दिनों बात-बात पर
झुका करती थी मैं





हर पतझड़ के बाद में, आती सदा बहार।
परिवर्तन पर जग टिका, हँस के कर स्वीकार।
हँस के कर स्वीकार, शुष्क पतझड़ की ज्वाला।
चाहो सुख-रस-धार, पियो दुख का विष-प्याला।
कहे 'बासु' समझाय, देत शिक्षा हर तरुवर।
सेवा कर निष्काम, जगत में सब के दुख हर।।




बचपन कितना सुन्दर निश्चिंत था फिक्र नहीं था कोई
असमंजस,शर्म की बात ना थी अहंकार नहीं था कोई
खुश होने पर हँस लेते दु:ख में बिलख-बिलख रो लेते
डांट,फटकार के तुरन्त बाद माँ के गले लिपट सो लेते ।




एक दिन एक दिन अति शान्त मन ,
मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास !  
और, विचलित न हो जब थिर हो सकूँ`
मौसमों से दोस्ती के बीज फिर से बो सकूँ
अभी थोड़ा भ्रम बचा ही रह गया होगा ,
उबर कर मैं चली आऊँगी तुम्हारे पास !
एक दिन अति सहज,आरोपण हटाकर .

चलते-चलते एक गीत

आज बस
सादर

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