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रविवार, 12 मार्च 2023

3695....डांडी यात्रा.....

जय मां हाटेशवरी.....

दांडी मार्च जो गांधीजी और उनके स्वयं सेवकों द्वारा आज ही कि दिन यानी 12 मार्च, 1930 को प्रारम्भ की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेजों द्वारा बनाए गए ‘नमक कानून को तोड़ना’। गांधीजी ने साबरमती में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया। इस आंदोलन की शुरुआत में 78 सत्याग्रहियों के साथ दांडी कूच के लिए निकले बापू के साथ दांडी पहुंचते-पहुंचते पूरा आवाम जुट गया था। लगभग 25 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 को दांडी पहुंचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक कानून तोड़ा। महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा के दौरान सूरत, डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को यात्रा के आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया था। यहां से कराडी और दांडी की यात्रा पूरी की थी। नवसारी से दांडी का फासला लभभग 13 मील का है। यह वह दौर था जब ब्रितानिया हुकूमत का चाय, कपड़ा और यहां तक कि नमक जैसी चीजों पर सरकार का एकाधिकार था। ब्रिटिश राज के समय भारतीयों को नमक बनाने का अधिकार नहीं था, बल्कि उन्हें इंग्लैंड से आने वाले नमक के लिए कई गुना ज्यादा पैसे देने होते थे। दांडी मार्च के बाद आने वाले महीनों में 80,000 भारतीयों को गिरफ्तार किया गया। इससे एक चिंगारी भड़की जो आगे चलकर ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में बदल गई।
........अहिंसा के पुजारी महातमा गांधी जी को मेरा कोटी कोटी नमन....

अब पढ़िये आज के लिये मेरी पसंद....

पोशीदा हाथ - -
अक्स है धुंधला, मुमकिन नहीं शीशे से पाना निजात,
इक पोशीदा वजूद के हाथ हैं तेरे गर्दन में भी हाकिम,
भलाई इसी में है कि छोड़ दे किसी बेगुनाह का हाथ ।

शांति" का उच्चारण तीन बार क्यों किया जाता है
रामजी ने बताया कि जिस तरह सूर्य को केंद्र में रख सारे ग्रह उसका चक्कर लगाते हैं जिससे सूर्य की ऊर्जा उन्हें मिलती रहे, उसी तरह प्रभू यानी सर्वोच्च सत्ता,
जो सारे विश्व का केंद्र है, उसकी परिक्रमा कर उनकी कृपा प्राप्त करने का विधान है ! वही कर्ता है, वही सारी गतिविधियों का संचालक है, उसी की कृपा से हम अपने
नित्य प्रति के कार्य पूर्ण कर पाते हैं, उसी से हमारा जीवन है ! फिर प्रभू समदर्शी हैं, अपने सारे जीवों पर एक समान दया भाव रखते हैं ! इसका अर्थ है कि हम
सभी उनसे समान दूरी पर स्थित हैं और उनकी कृपा, बिना भेद-भाव के सब पर बराबर बरसती है। परिक्रमा करना भी उनकी पूजा अर्चना का एक हिस्सा है, जो उनके प्रति अपनी
कृतज्ञतायापन का एक भाव है ! उन्हें अपने प्रेम-पाश में बांधने की एक अबोध कामना है ! केवल प्रभू  ही नहीं, जिनका भी हम आदर करते हैं,

शब्द बहुत अनमोल
बैर-भाव को भूलकर, करिए सबसे प्रीत।
उपवन में खिलते सुमन, सुना रहे हैं गीत।10।
हरे-भरे सब पेड़ हों, छाया दें घनघोर।
उपवन में हँसते सुमन, मन को करें विभोर।12।

जमाने लगे..... बहुत  मुश्किल  है सच पे एतबार करने में।

जीवन के टूटते रिश्तों का दर्द
पिता लुटा देता जीवन भर की कमाई 
बेटे की पढ़ाई - लिखाई के लिए 
पर बेटा नहीं करता माँ-बाप की चिंता 
चला जाता विदेश कॅरियर बनाने के लिए।

आज का सफर यहीं तक.....
अंत में पढ़ें.....

इन्सानियत की बात किताबों में रह गई
अपना बना के लोग गला काटते रहे
चेहरे पे दाग़ साफ नजर आ रहे जिन्हे
इलजाम आइने पे वही थोपते रहे
क्या दर्द उनके दिल में है तुमको न हो पता
अपनी ज़मीन और जो घर से कटे रहे

धन्यवाद.

3 टिप्‍पणियां:

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