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रविवार, 5 फ़रवरी 2023

3660 ...विश्व में विष का शमन, बुद्धि में प्रभु का मनन

 सादर अभिवादन

आज कुलदीप भाई जी के यहां बिजली गुल है
मेंटेनेंस चल रहा है
चलिए चलें अब देखें रचनाएँ ....



इससे बेहतर तो हम
नदी के तट पर
चुपचाप बैठ कर,
जो साबित नहीं
किया जा सकता,
उसे अनुभव करते
तो संभवतः अधिक
समझ में आता ।




कुछ ही क्षणों में चाय बनकर तैयार थी।दादाजी ने एक घूँट पिया कि 
पोती चिल्लाई- कैसी बनी है, दादाजी?
पति ने एक नज़र पत्नी को देखा फिर दबी सी आवाज़ में पोती से बोले- बहुत अच्छी है बेटा।
पोती नाच उठी। बोली अब तो रोज़ मैं ही आपके लिये चाय बनाऊँगी। 
दादाजी बेचारे सकपका कर रह गए और दादी खिलखिलाकर हँस पड़ीं।




फागुन आया देखकर आम उठा बौराय।
पिया बसे परदेश में, कोयल रही बुलाय।
कोयल रही बुलाय, धरा है धानी धानी।
मादकता सिर चढ़ी कर रही पानी पानी।
समझ न आवें मित्र! ससुर बहुओं के लच्छन।
मन को दे भरमाय मदन का भाई फागुन।।




विश्व में विष का शमन
बुद्धि में प्रभु का मनन.
कराता ईश का वंदन
हमारे रुके नहीं चरण.
तेरी उपमा है दी जाती, तू मामा है बच्चों का,
तेरी महिमा सुहाती है, तू प्रेमा के मुखड़े सा




धूसर
जीवन के उपर पड़ी रह जाती हैं कुछ उड़ते
हुए बादलों की परछाइयां। इक अजीब
सा ख़ालीपन रहता है बहुत कुछ
पाने के बाद, पल्लव विहीन
दरख़्त देखते हैं शून्य
आकाश की तरफ


आज बस
सादर

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीया यशोदा अग्रवाल जी, नमस्ते 🙏❗️
    आपने ब्लॉग पर सुन्दर रचनाओं का चयन कर इस चर्चा अंक का आयोजन किया, इसके लिया हार्दिक साधुवाद ❗️रचनायें सभी अच्छी थी. लोगों ने पढ़ी और सार्थक टिप्पणी भी दी. यह चर्चा अपने उद्देश्य में सफल कही जा सकती है. मेरी रचना को इस चर्चा में सम्मिलित करने के लिए साधुवाद!
    ब्रजेन्द्र नाथ

    जवाब देंहटाएं
  2. बड़ी सखी, हलचल में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार.
    सभी रचनाओं का स्वाद लिया . रविवारीय ज़ायका हल्का-फुल्का रहा !

    जवाब देंहटाएं

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