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मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

3620 ...... कहते हैं प्रेम तपस्या हैं प्रेम त्याग है, एक ही ब्लॉग से ..जिज्ञासा की जिज्ञासा

 सादर अभिवादन


एक ही ब्लॉग से
जिज्ञासा सिंह
ये कौन है कैसी हैं पढ़िए इन्हीं की जुबानी
व्योम के विशालकाय परिदृश्य में, सिन्धु के गर्भ में, धधकते मरुस्थल में, संपूर्ण सृष्टि और ब्रम्हांड के चर अचर प्राणियों में विचरण करने के उपरांत परिकल्पनायें कुछ कहने के लिए अधीर हो उठती हैं , जिन्हें अमर्त्य बनाने के लिये मानव मानस को कुछ सृजनात्मक और सारगर्भित कार्य करने चाहिए । उसी सन्दर्भ में कुछ रेखांकित करने का नव प्रयास है मेरा लेखन .

प्रेम संसार है ।
प्रेम निराकार है ।।
है तो ये,
बड़ा ही विशाल ।
नहीं है कोई
इसकी मिसाल



कहते हैं प्रेम तपस्या हैं प्रेम त्याग है ।
प्रेम संगीत है राग है ।।
वंदन है नर्तन है ।जीवन है मरन है ।।
अपना है पराया है  ।
रग रग में समाया है ।।


बचपन में सुनी
कहानियों व मुहावरों
की याद दिलाती रचना



शीश ऊपर सजा एक चिकना घड़ा
खुर उधारी में देकर गया चौगड़ा
दौड़ लगती रही जीतने के लिए
धार धरकर घड़ा शीश माथे चुए

जल जो इस्तेमाल में लाते हैं!
उसके के प्रति सजग होना
बहुत ही जरूरी है नहीं तो
इसका परिणाम बहुत ही फायदा होगा
जिसकी हम कल्पना तक नहीं कर सकते!



उद्योगों की पौध लगाई
खड़े सभा में बनके शिष्ट
हरित क्रांति का नाम दिया
उगा दिया जंगल अपशिष्ट
बूँद बूँद है हमें बचाना
हम पे लागू नारा क्यूँ है ?
निर्मल पानी खारा क्यूँ है ?

स्व में
विश्व समेटे निमग्न अलंकृत,
सर्व ज्ञान दायिनी पुस्तक हमारी है ॥...
वाह! पुस्तकों का सीधा संबंध
हमारी जिज्ञासा से ही है।

न जानों तो अंजान सी लगी
खाका छान लिया जग का
पलट कर उधेड़ा, बार बार देखा
वो नर है न नारी है ॥


मंच पर स्त्री-सशक्तिकरण पी व्याख्यान
और घर पर शोषण का मिला जुला संगम
फ़ोन की तरफ़ जाती साहब की निगाह और इशारे ने उसे एक बार फिर ये समझा दिया था कि रीनू के कुछ राज़, जो साहब ने फ़ोन में क़ैद कर रखे हैं, रीनू के मुँह खोलते ही मेमसाहब के साथ-साथ, दुनिया के सामने आ जाएँगे.. और लोग उसका और उसके माता-पिता का जीना दूभर कर देंगे ।




कल, आज और कल, में डूबती-उतरातीं “अवधी कहावतें” दर-बदर होती हुईं, अपना अस्तित्व बनाने में लगी हुई हैं, उन्हें आज भी जीवंत बनाता, हमारा आँचलिक समाज “अवधी भाषा” के लिए संजीवनी का काम कर रहा है, आशा और विश्वास है, कि जब तक अवध प्रांत के वासी, देश-विदेश में, कहीं पर भी, अवधी भाषा को सम्मान देते हुए विराजमान हैं, तब तक वहाँ “अवधी भाषा” के साथ-साथ “अवधी कहावतें” भी ज़रूर विद्यमान होंगी ।
नमूना ......
गूलरी के फूल होइगे
जब किसी को बहुत दिन तक न देखो और किसी की झलक देखने को तरस जाय तो ऐसी स्थिति में ये कहावत प्रयुक्त होती है । क्योंकि गूलर का फूल कभी दिखाई नहीं देता


आदरणीय सखी जिज्ञासा जी को उत्तरोत्तर प्रगति के लिए शुभकामनाएं
सादर

16 टिप्‍पणियां:

  1. अहा !
    मेरी रचनाओं का संकलन। सुंदर सुखद अनुभूति, मन प्रफुल्लित हो गया ...
    मेरी नई पुरानी रचनाओं पर सुंदर भूमिका और आकर्षक प्रस्तुति ।
    इस सुंदर अनुभूति को मेरे मन में सिंचित करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय सखी !
    "पांच लिंकों का आनन्द" हमेशा हम ब्लॉगर्स को प्रोत्साहित करने के साथ साथ, हमारी लेखनी को ऊर्जा और उत्साह देता है, सबसे बड़ी बात, रचनाओं पर सुधी लेखकों का भ्रमण होता है,साथ ही समीक्षात्मक प्रतिक्रियाएं मिलती हैं, जो लेखन के सौदर्य को बढ़ाने में सहायक होती हैं, इसी क्रम में मेरा कई ब्लॉग्स पर जाना हुआ जिससे काफी कुछ सीखने का अवसर मिला और मिल रहा है ।
    "पांच लिंकों का आनंद" और यशोदा सखी का हार्दिक आभार, सभी रचनाकारों के लिए हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सखी जिज्ञासा जी रचनाएं उत्तम होती हैं।आज आपकी समीक्षात्मक प्रस्तुति ने उनका सौंदर्य और बढ़ा दिया।जिज्ञासा जी को हार्दिक बधाई और आपका हृदय तल से आभार पांच दिनों का आनंद सदैव हम जैसे अनगढ़ पत्थरों को तराशने का काम करता है।

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    1. आपकी उपस्थिति का स्वागत है सखी । मनोबल बढ़ाती आपकी प्रतिक्रियाएं मेरे लेखन को प्रवाह देती हैं। आभार आपका।

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  3. जिज्ञासा के रचना संसार में से खूबसूरत रचनाएँ सजाने के लिए आभार । अच्छी प्रस्तुति ।

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  4. प्रिय दीदी, अपनी सुदक्ष लेखनी की बदौलत सभी विषयों पर बहुत ही कम समय में अपनी लेखनी चलाकर ब्लॉग जगत में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने वाली प्रिय जिज्ञासा की रचनाओं पर ये सुन्दर अंक सजाने के लिए हार्दिक आभार आपका। प्रिय जिज्ञासा हर विषय में सिद्धहस्त हैं। प्रकृति, परिवार, प्रेम, समाज, राष्ट्र, नारी विमर्श या सम सामयिक संवेदनशील विषय सभी पर उनकी लेखनी सुघड़ता से चलती है।गीत, गजल, लोक गीत, कहावतें मुहावरे या विभिन्न विषयों पर आधारित गद्य लेखन सभी कुछ उपलब्ध है उनमे ब्लॉग पर।लिखने के अलावा उत्तम पाठिका भी है।उनके रचना संसार से चुनींदा रचनाएँ चुनकर लाना एक चुनौती है।आपकी पारखी नज़र ने उत्कृष्ठ चुना है।एक बार फिर से आपका आभार ।आपके ये प्रयास रचनाकारों को असीम ऊर्जा , खुशी और उत्साह प्रदान करते हैं 🙏♥️

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  5. प्रिय जिज्ञासा, पाँच लिंक मंच पर आज आपका दिन है, आपकी चर्चा है।आपका लेखन आपकी बहुमुखी प्रतिभा का परिचायक है। आपकी विद्वता और ज्ञान आपकी रचनाओं में झलकता है।गद्य और पद्य दोनों में आपका लेखन बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है।आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आज इस उपलब्धि पर।आपकी लेखनी का प्रवाह सदैव निर्बाध रहे और माँ सरस्वती इसे अपने आशीष से यश प्रदान करे यही कामना करती हूँ। ढेरों प्यार और शुभकामनाएं ♥️♥️❤❤

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  6. आपकी प्रतिक्रियाएं मेरे लेखन को हमेशा नव ऊर्जा देती हैं प्रिय सखी। इतनी सार्थक और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया को सहेज कर दिल में रख लिया है । बहुत बहुत आभार आपका ।

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  7. जिज्ञासा, तुम्हारी बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा प्रशंसनीय है.

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  8. जिज्ञासा जी की रचनाएं मेरे मन में बरबस रचनात्मकता के बहुवर्णी सौंदर्य की जिज्ञासा पैदा करती हैं। यथा नाम तथा काम। नमन है, उनकी लेखनी को। भविष्य की शुभकामनाएं तथा इस प्रस्तुति का आभार।

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  9. बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा की धनी जिज्ञासा दी कि रचनाओं से सुसज्जित बहुत ही सुंदर अंक यशोदा दी। किसी की ढेर सारी रचनाए पढ़ कर उसमें आए कुछ चुनिंदा रचनाए चून कर उस पर पूरा अंक सजाना...बहुत ही मेहनत और समय का काम है। इतना कठीन काम इतने अच्छे से करने के लिए आप बधाई की पात्र है।
    जिज्ञासा दी को भी बहुत बहुत बधाई कि उनकी रचनाओ से पूरा अंक सुशोभित हुआ। वैसे वे इसकी हलदार भी है।

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  10. आपकी स्नेहमयी उपस्थिति का हार्दिक स्वागत है प्रिय ज्योति जी । आपकी प्रतिक्रियाएं हमेशा मनोबल बढ़ाती हैं। उपस्थिति का हार्दिक आभार ।

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