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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2022

3609....चाँद झोली में छुपाकर

शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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 साल की बोतल में बची दिसंबर की
ठंडी बूँदों को घूँट-घूँट पीता समय
 दार्शनिकता बघारने लगता है-

सुबह का चलकर शाम में ढलना/जीवन का हर दिन जिस्म बदलना
हसरतों की रेत पे दर्या उम्मीद की/ख़ुशी की चाह में मिराज़ सा छलना
चुभते हो काँटें ही काँटे तो फिर भी/जारी है गुल पे तितली का मचलना
वक़्त के हाथों से ज़िंदगी फिसलती है/नामुमकिन इकपल भी उम्र का टलना
अंधेरे नहीं होते हमसफ़र ज़िंदगी में/सफ़र के लिये तय है सूरज का निकलना।
      #श्वेता🍁

आइये आज की रचनाओं के संसार में चलें-

समस्याएँ रुकने का संकेत नहीं हैं, वे दिशानिर्देश हैं।
चमत्कार केवल उन के लिए होता है जो इस पर विश्वास करते हैं।
 सकारात्मकता जीवन के ताले में खुशियों की चाभी है
ऐसी ही वैचारिकी ऊर्जा का एहसास दिलाती एक 
सुंदर अभिव्यक्ति-



जमीं ने दिया है हौसला 
छूने को नीला आकाश 
जाकर मैं उस पर रख दूँ 
सुन्दर सा एक सुर्ख पलाश | 


नभ के
नील आँचल से,छुप-छुपकर झाँकता 

आँखों की,ख़्वाबभरी अधखुली
कटोरियों की,सारी अनकही चिट्ठियों की,
स्याही पीकर बौराया
बूँद-बूँद टपकता
मन के उजले पन्नों पर,धनक एहसास की 
कविताएँ रचता
 चाँद।

रचनाकार प्रकृति को आत्मसात कर जब लिखता है तो ऐसी  अभिव्यक्ति पल्लवित होती है 

है बड़ा आसान इसको काट कर यूँ फैंकना,
ज़ख्म दिल को पर अंगूठी दे के बाहर जाएगी.
 
बादलों के झुण्ड जिस पल धूप को उलझायेंगे,
नींद उस पल छाँव बन कर आँख में भर जाएगी.



शायद वह समझ नहीं पायी
कि,वास्तविकता में
प्रेम कहानियों के रंगीन चित्रों में लिपटे पात्रों को
छू लेने की जिद से
उत्पन्न इच्छाएं
भाप बनकर उड़ जाती हैं
और 
बदरंग होने लगते हैं
प्रेम के रंग...।
प्रेम में पात्र मनोनुकूल हो जरूरी नहीं,
भावनाओं से भरी अभिव्यक्ति

प्रेम में डूबी लड़की को मिले
किनारे बैठ कविताएं लिखते प्रेमी
जिनके पास गहराई का अनुमान भर थे
वे नहीं जानते थे साथ भीगने का सुख 


पर यह भी सच है न...
प्रेम कहानियों की खूबसूरत एहसास
 रूमानी और तिलिस्मी
संसार के एक किनारे अनवरत बहती रहती
 है कुछ रक्तरंजित, हृदयविदारक सपनों के चिथड़ों में
लिपटी हुई प्रेम कहानियाँ सोचने को विवश करती है
कि पवित्र भावनाओं का परिणाम वीभत्स कैसे 
हो जाता है। 

ऐसी कहानियाँ .. जिन्हें बड़े सँभालकर,
टुकड़ों-टुकड़ों में काट, पोलीथिन में लपेट
बर्फ की तहों में जमाया गया है|
कहीं तालाबों की गहराइयों में छिपाया,
कहीं तन्दूरों में सुलगाया,
कहीं पेड़ों पर लटकाया गया है|
जंगल-जंगल बिखेरा है, टुकडे-टुकड़े प्रेम,

और.चलते-चलते
यह तो सच है कि चित्रपट पर दिखाये जाने वाले दृश्य
मानस पटल पर गहरा प्रभाव डालते है। हम अक्सर
फिल्माये गये दिलकश प्राकृतिक दृश्यों की सराहना करते हैं पर काश! कि हम उनकी महत्ता समझकर उन्हें संरक्षित करने का भी उपाय करते...।

प्रकृति जीवन का राग है ,फाग है, पर लगता है अब
हम मनुष्यों ने स्वार्थ में अपने इसमें लगाया आग है।
एक अति आवश्यक संदेश से युक्त लेख पढ़िये

अथर्ववेद के अनुसार मनुष्य ने प्रकृति से ये शपथ लिया था कि-"तुमसे उतना ही लूंगा जितना तू पुनः हमें दे सके,मैं तेरी जीवनी शक्ति पर कभी प्रहार नहीं करूँगा"हमने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी और प्रकृति कुपित हो गई है। फ़िल्मी दुनिया वाले भी बहुत ले चुके हैं अब देने की बारी है।
 

आज के लिए इतना ही 
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही है प्रिय विभा दी।
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12 टिप्‍पणियां:

  1. एक कमाल का संकलन … सभी रचनाएँ दिल में उतरेंगी … आभार मेरी रचना को जगह देने में लिए …

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात
    रचना के बाहर रचना
    रचना के अंदर रचना
    कमाल के परिवर्तन
    हमारे इस ब्लॉग मे
    परिलक्षित हो रहे है
    परिवर्तन तो निहित है
    हममें ,आपमें...
    साल में , और हाल मे भी
    आभार इस सुन्दर अंक के लिए
    सादर

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. वेहतरीन संकलन, सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. साल की बोतल में बची दिसंबर की
    ठंडी बूँदों को घूँट-घूँट पीता समय

    सच, ये साल भी मुठ्ठी के रेत सा हाथों से फिसलता जा रहा है।

    सही कहा दी ने "रचना के बाहर रचना, रचना के भीतर रचना"
    लाजबाव हलचल प्रस्तुति प्रिय आपने श्वेता जी
    और इस बेहतरीन संकलन में मुझे भी स्थान देने के लिए आपका दिल से शुक्रिया। आप सभी को हृदयतल से अभिवादन

    जवाब देंहटाएं
  6. इस साल की बोतल तो खत्म होने की कगार पर है । कुछ ही बूंदें बची हैं ।नई बोतल का ढक्कन जब खुलेगा फिर बूँद दर बूँद पीता रहेगा समय ।
    हर रचना पर विशेष टिपण्णी शब्दों का कमाल है ।
    सारी रचनाएँ पढ़ते हुए कुछ ऐसा ही लगा कि --
    चाँद झोली में छिपा रात ऊपर जाएगी और शायद मंज़िल भी पा जाए ।लेकिन प्रेम कहानियाँ कुछ असंगत होते हुए भी प्रेम से सराबोर होती हैं ।लेकिन केवल इंसानों से ही प्रेम क्यों ? जिस प्रकृति से हम इतना सब कुछ लेते हैं उसका भी संरक्षण आवश्यक है । फ़िल्म उद्योग इसमें बेहतर भूमिका निभा सकता है ।
    सूत्रों का बेहतरीन संकलन । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  7. उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति मनमोहक सारगर्भित समीक्षाओं के साथ...
    साल की बोतल में बची दिसंबर की
    ठंडी बूँदों को घूँट-घूँट पीता समय
    अद्भुत एवं अआकर्षक शुरुआत
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  8. देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ प्रिय श्वेता।इतने सुन्दर अंक में सुन्दर रचनाओं पर तुम्हारी काव्यात्मक प्रतिक्रिया सोने पे सुहागे सरीखी हैं।यशोदा दीदी के शब्दों में ' रचना के बाहर रचना और रचना के भीतर [रचना '- एकदम सटीक है।सभी रचनाकारों कौ बधाई।तुम्हें आभार और शुभकामनाएँ।♥️

    जवाब देंहटाएं
  9. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    let's be friend

    जवाब देंहटाएं

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