---

सोमवार, 5 दिसंबर 2022

3598 / जीवन बस यूँ ही चलता है

 

नमस्कार !  कल यानि  3 दिसंबर  को एक नयी जानकारी मिली ........ हो सकता है  कि आप लोगों को पता हो , लेकिन मुझे नहीं पता था  की 3  दिसंबर  को गीता जयंती होती हैं ....... गीता जिसे देव वाणी  माना  जाता है ....कृष्ण के अर्जुन को उपदेश , लेकिन क्या सच ही हम इस १८ अध्यायों की गीता के विषय में सटीक जानकारी रखते हैं ?   जिनको इस विषय में रूचि है तो एक बार यह लेख अवश्य पढ़ें ..... 

गीता के बारे में प्रचलित भ्रम और वास्‍तविकता

हिन्‍दू धर्म के अनुयायियों में गीता के प्रति अटूट श्रद्धा है क्‍योंकि वह स्‍वयं भगवान् के मुख से निकली हुई वाणी है। दूसरी ओर गीता के उपदेशों के प्रति अनभिज्ञता भी उतनी ही अधिक है। अ‍नभिज्ञता की स्थिति तो इतनी विकट है कि सोशल मीडिया पर गीता के नाम पर कुछ भी उद्धरित किया जा रहा है और कहीं से भी किसी प्रकार के प्रतिवाद की  आवाज़  सुनाई नहीं दे रही |

आशा है कुछ लोग अवश्य ही लाभान्वित होंगे .......जहाँ लाभ की बात हो तो सबसे ज्यादा ध्यान स्वास्थ्य  पर देना चाहिए ...... और स्वस्थ रहने के लिए सभी सुबह घूमने की सलाह देते हैं ....इस सलाह पर अमल करते हुए पढ़िए एक संस्मरण ...

पहली मार्निंग वॉकिंग.....


                   एक दिन कद्दू जैसे पेट वाले वरिष्ठ शर्मा जी मेरे घर पधारे और मार्निंग वॉक के असंख्य लाभ एक ही सांस में गिनाकर बोले, “पाण्डे जी, आप भी मार्निंग वॉक किया कीजिए। आपका पेट भी सीने के ऊपर फैल रहा है !” घबड़ाकर पूछा, “सीने के ऊपर फैल रहा है ! क्या मतलब ? शर्मा जी ने समझाया, “सीने के ऊपर पेट निकल जाय तो समझ जाना चाहिए कि आप के शरीर में कई रोगों का स्थाई वास हो चुका है ! हार्ट अटैक, शूगर, किडनी फेल आदि होने की प्रबल संभावना हो चुकी है।“ शर्मा जी ने इतना भयावह वर्णन किया कि मैं आतंकी विस्फोट की आशंका से ग्रस्त सिपाही की तरह भयाक्रांत हो, मोर्चे पर जाने के लिए तैयार हो गया। 

 अब मोर्निंग  वॉक  कोई करे या न करे लेकिन ज़िन्दगी का नाम है चलना ...... आप जैसा सोचते हैं ज़रूरी नहीं वैसा ही जीवन भी जीते हों ....... पढ़िए एक रचना ...

जीवन बस यूँ ही चलता है 



खामोशी से बुनता रहता, 

स्वप्न महल के नींव-कंगूरे ।

सच की धरती पर टकरा कर रहे सभी आधे-अधूरे ,

मन अपने से छल करता है ।


सच है जीवन को जैसा चलना होता है बस चलता है ....... मन है कि न जाने कितनी तम्मनाओं को पाले रहता है ...

और जब वैसा नहीं होता तो मन व्यथित हो जाता है , ऐसा ही एक संस्मरण पढ़िए ....


रोटरी के एक प्रेसिडेंट की व्यथा "
मेरी आदत है, जिस काम का जिम्मा मैं लेती; मेरी कोशिश होती कि उसकी जिम्मेदारी मैं अच्छे से निभाऊं और  रोटरी में तो काम करने के लिए ही शामिल हुई थी.  मेरी कोशिश होती कि मैं सारे मीटिंग, सेमिनार, कॉन्फ्रेंस  में भाग लूं ताकि मुझे सीखने को मिले और बहुत कुछ सीखा भी मैंने।  हर मीटिंग, सेमिनार, कॉन्फ्रेंस में रोटरी के एक से एक वक्ता होते; जिनसे सीखने के लिए बहुत कुछ होता। 
ये सब तो केवल स्वयं की सोच से उपजी व्यथा है ......... लेकिन कुछ हादसे हमारे जीवन में अनायास हो जाते हैं जिनको कभी भी भुलाया नहीं जा सकता ..... ऐसा ही एक हादसा २ दिसंबर  १९८४ में हुआ था .......जिसकी त्रासदी आज भी भोपाल के लोग भुगत रहे हैं ..... आइये  उस हादसे में मरने वाले लोगों  को  श्रद्धांजलि  अर्पित करें ....
भोपाल गैस त्रासदी की याद


आज वर्ष 1984 में भोपाल में हुई विश्व की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी की 38वीं बरसी है। इस त्रासदी में हज़ारोँ की संख्या में जान गँवाने वाले मृतकों की याद में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 2 दिसंबर को 'राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस' (National Pollution Control Day) मनाया जाता है। 


2  दिसंबर   की तिथि यदि एक जगह त्रासदी की याद दिला रही है तो कहीं 2  दिसंबर उत्सव का ध्यान भी करा रही है ...... हालाँकि  यह रचना  19  साल पहले लिखी गयी थी ...... लेकिन ये उन सभी माओं को समर्पित जिनके बेटों का विवाह होने वाला हो  ......... मन में कुछ ऐसी ही भावनाओं का सागर उमड़ता  है .... 


आने वाली पुत्रवधू के लिये .


सपने जो बसे हैं तेरी पलकों में .

साथ ही ले आना .

सजाएंगे उन्हें और भी खूबसूरत 

मिलजुलकर .

बचाए रखना सपनों को फीका होने से 

सुखद है सीख भी .......  सपनों को बचाने की ...... अब जिस पोस्ट को ला रही हूँ बस उसका शीर्षक बचा रहे ....... जब से उठायी है तीन बार बदल  चुका है ..... देखते हैं कल तक रहता है या नहीं ........ ऐसे ही शायद जीवन में रिश्ते भी बदल जाते हैं ...... रिश्तों के लैसन प्लान से  बदल कर नया शीर्षक है ..... 


बचपन वाली पीली पड़ चुकी किताब


कितनी बार किसी रिश्ते में बंधे व्यक्ति को रिश्ते से निरस्तस्थगितदरकिनार या ख़ारिज कर दिया जाता हैंया फिर व्यक्ति अपनी मर्जी से रिश्ते से स्वयं निकल जाता है। और फिर वहाँ जो रिक्तता में बचता हैवह सिर्फ़ 'रिश्ता' होता है। यानी शब्द बन चुका रिश्ता जो हमेशा आभास कराता रहता है कि कहीं किसी के साथ किसी के जीवन के तंतु जुड़े थे, जो उस दशा में नहीं हैं|


केवल रिश्ते या रिश्तों की गरिमा ही नहीं बदलती ...... बहुत कुछ बदल जाता है ज़िन्दगी में ...... यहाँ तक कि वक़्त भी ........ एक ग़ज़ल पढ़िए ....


बदल गई

शाम को करने लगे जब, रोशन सुबहों का हिसाब.

जोड़ तोड़ कर पता लगा कि असल बही ही बदल गई.

कभी कभी ज़िन्दगी इस कदर बदल जाती है कि सामने वाला आपको पागल ही करार दे दे ........ बहुत दुःख हैं इस जहाँ में .... कब किसके साथ  क्या  घटित हो जाय  कहा नहीं जा सकता ...... ऐसी ही एक लघु कथा .....

दर्द का कुआँ


उसका प्रेम दुनिया के लिए पागलपन और उसके लिए एहसास था जिससे सिर्फ़ और सिर्फ़ वही जीती थी। घर पर नई रज़ाई और एक गद्दा रखती। कहती थी- ”पता नहीं किस बखत उसका  आना हो जाए? आख़िर घर पर तो सुख से सोए।”


इस मर्मस्पर्शी रचना के बाद कुछ और गहराई की बात हो  तो सागर से गहरा क्या ? एक दार्शनिक रचना  का रसास्वादन करें  - 

लहरें और सागर



सागर जुड़ा है अस्तित्व से 

लहर दूरियाँ बढ़ाती है 

सदा किसी तलाश में लगी 

कुछ न कुछ पाने की जुगत लगाती 

सागर में होना .


लहरें और सागर का द्वंद्व तो चलता रहेगा ...लेकिन यदि बीमार मित्र के हालचाल जानने हों तो मात्र दिखावा न करें ....... ऐसी ही सीख देती यह लघुकथा ....


ख़ानापूर्ति


क्यों मैम बीमारी की स्थिति में तो देखने जाना चाहिए न ? बस एक आप ही हैं, जो कह रही हैं.. कि देखने क्या जाना ? ऐसा क्यों मैम ? गीता मैम स्कूल की इतनी पुरानी और आपकी चहेती टीचर हैं, ऊपर से आपसे इतने अच्छे संबंध ।आजकल तो सभी लोग अपने बीमार मित्र या रिश्तेदार को देखने जाते है, क्या आपकी उनसे किसी बात पे नाराज़गी है क्या ? 

 आज की रचनाओं पर अपनी पसंदगी और नापसन्दी से  अवश्य   अवगत   कराईयेगा  ........ फिर मिलते हैं ........

नमस्कार 
संगीता स्वरुप . 




28 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    आदरणीय कविता दी की कुछ पंक्तियां
    मैं ही नहीं अकेली कहाँ इस जग में दुखियारी
    आँख खुली जब दिखी दुःख में डूबी दुनिया सारी
    एक तरफ कांटे दिखे पर दूजी तरफ दिखी फुलवारी
    समझ गयी मैं गहन तम पर उगता सूरज है भारी
    गहन तम में नहीं जब दिल को कुछ सूझ पाया
    तब परदुःख देख मैंने अक्सर यह दुःख भुलाया

    दिसंबर का माह कई मायने में यादगार महीना है
    इसी महीने बाबरी मस्ज़िद को गिरा कर
    श्री राम जी के मंदिर बनने की शुरुआत भी हुई थी
    एक यादगार प्रस्तुति आदरणीय बड़ी दीदी का
    सादर नमन



    जवाब देंहटाएं
  2. सर्वप्रथम तो मेरे प्रिय व्यंग्य आलेख को शामिल करने के आपका आभार, शेष पड़ता हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर पठनीय अंक होगा ।पढ़ती हूं लिंक्स पर जाकर । नमन और वंदन दीदी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय जिज्ञासा ,
      हाजिरी लगाने के लिए धन्यवाद ।
      पिछली पोस्ट पर विश्लेषणात्मक टिप्पणी के लिए भी धन्यवाद ।

      हटाएं
  4. ग्यारह लिंकों वाली यह 'पांच लिंकों वाली' पोस्ट बहुत अच्छी लगी. चयनित सभी ब्लाग पढ़े और लिखि भी . कविता रावत जी की पोस्ट पर कमेंट्स की कोई जगह नहीं है गैस त्रासदी पर बढ़िया आलेख है. मेरी रचना भी इस में शामिल है धन्यवाद संगीता जी.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गिरिजा जी ,
      पाँच लिंकों के आनंद वालों ने मुझे थोड़ी छूट दे रखी है , या ये कहूँ कि मैंने छूट ले रखी है ...... ब्लॉग पढ़ते हुए जो भी मन को छू जाता है वो लिंक यहाँ प्रस्तुत कर देती हूँ । यदि लिंक मेरी प्रस्तुति पर है तो भले ही मेरी वहाँ टिप्पणी न हो लेकिन मैंने पढा पूरा होता है । बस खुद की पसंद सबको सौंप देती हूँ ।
      आपने सभी लिंक्स पढ़ कर त्वरित प्रतिक्रिया दी उसके लिए हार्दिक आभार ।
      कविता रावत जी के ब्लॉग पर कमेंट बॉक्स तो है , लेकिन ये विज्ञापन कभी कभी छुपा लेते हैं । ढूंढना पड़ता है । पुनः आभार ।

      हटाएं
  5. चिर परिचित अंदाज़ में पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सुसज्जित हलचल, मन पाए विश्राम जहाँ को स्थान देने के लिए आभार संगीता जी!

    जवाब देंहटाएं
  6. पहली बार में इस तरह से रचनात्मक उल्लास को यूं देख रही हूं। सभी रचनाकारों की रचनाएं पठनीय और अनेक मानवीय मनोभावों को अपने अंतर में सहेजे मिली। कल्पना मनोरमा के आलेख को इस मंच पर प्रस्तुत करने के लिए संगीता जी का हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कल्पना मनोरमा जी ,
      आपने उल्लास को महसूस किया , प्रस्तुति सफल हुई ।सराहना हेतु आभार ।

      हटाएं
  7. बेहतरीन सूत्रों से सजी पुष्प गुच्छ सी प्रस्तुति । कुछ ब्लॉगस् पुराने लेकिन मेरे लिए नये हैं उनसे आपकी प्रस्तुति के माध्यम से परिचय हुआ ।बहुत बहुत आभार श्रमसाध्य प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने हेतु । सादर सस्नेह वन्दे आदरणीया दीदी 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मीना ,
      ब्लॉग्स कहाँ नए पुराने होते हैं? अपढ़ित रचनाएँ सब नई होती हैं । इसी लिए तो ले आती हूँ पुराना लिखा हुआ भी कि पढ़ सकें नए पाठक भी । पुष्पगुच्छ की खुशबू से आनंदित रहिए 😄😄 । आभार ।

      हटाएं
  8. लिंक पोस्ट सम्बन्धी जानकारी के साथ प्रस्तुतिकरण का आपका अंदाज नायाब होता है, उत्सुकता जगाती है मन में और पोस्ट तक ले जाने के लिए प्रेरित करती हैं। बहुत ही शानदार हलचल प्रस्तुति और इसमें मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार आपका। गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी ने मेरे ब्लॉग पर कमेंट्स की कोई जगह नहीं है, का उल्लेख किया है। शायद विज्ञापन के वजह से नज़र नहीं आता होता। मैं इसे ठीक करने की कोशिश करुँगी।

    जवाब देंहटाएं
  9. संगीता जी अभी शुरू की दो पोस्ट पढ़ी हैं और दोनों लाजवाब हैं । पान्डे जी का मॉर्निंग वॉक तो बहुत ही हँसा गया । बेहद रोचक भाषा में लिखा है। पहला श्रीमद्भागवदगीता पर लिखा आलेख तो बहुत ही सटीक व सारगर्भित है। तभी कहते हैं कि शास्त्रों को गुरु के मुख से सुनना चाहिए वर्ना यूँ ही लोग अर्थ का अनर्थ करते रहेंगे। ये आलेख सबको ज़रूर पढ़ना चाहिए । और भी पढ़ कर बताती हूँ 😊

    जवाब देंहटाएं
  10. जीवन बस यूँ ही चलता है
    रोटरी के प्रेसिडेंट….
    भोपाल गेस त्रासदी…
    आने विली पुत्रवधू के लिए
    बचपन वाली पीली पड़ चुकी किताब
    बदल गई
    दर्द का कुँआ
    लहरें और सागर
    ख़ानापूर्ति …
    बचपन वाली पीली पड़ चुकी किताब बाकी सभी रचनाएं- आलेख, कविता व कहानी भी बहुत बढिया …! गिरिजा जी ने तो बनने वाली सभी सासों के भावों को कविता में पिरो दिया है …बहुत बढ़िया! संगीता जी हर बार की तरह आपकी मेहनत को सलाम है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उषा जी ,
      हर रचना पर आपकी विशेष टिप्पणी हमेशा ही मेरा मनोबल बढ़ाती है । हार्दिक आभार । गीता पर लिखी पोस्ट सच ही सबको पढ़नी चाहिए ।

      हटाएं
  11. खूबसूरत लिनक्स की माला पिरोई है आपने. सभी पठनीय . आभार

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुंदर संकलन।
    लघुकथा ' दर्द का कुआँ ' को स्थान देने हेतु हृदय से आभार आदरणीय दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  13. सभी रचनाएँ पठनीय। सृजन के विविध रंगों को बिखेरता अंक। संगीता दीदी आपकी पसंद सचमुच बहुत अच्छी है। समय कुछ ज्यादा लगा पढ़ने में पर समय सार्थक हुआ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मीना ,
      सराहना के लिए हार्दिक आभार । ये चुने हुए लिंक्स हैं , निश्चय ही पढ़ने में मुझे ज्यादा ही समय लग होगा । लेकिन सभी लिंक्स तुमको पसंद आये तो परिश्रम सफल हुआ ।

      हटाएं
  14. उत्कृष्ट लिंको से सजी हमेशा की तरह बहुत ही नायाब प्रस्तुति । आपके चयनित लिंक उम्दा एवं पठनीय तो होते ही है साथ ही आपकी प्रतिक्रिया उन्हें इतना आकर्षक बनाती है कि सभी लिंक पढ़े बिना चैन नहीं मिलता ।दो दिन में ही सही आखिर सब पढ़कर आनंदित हुए ।अत्यंत आभार आपका।🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा ,
      सराहना का ये अंदाज दिल को भा गया । बहुत शुक्रिया ।

      हटाएं
  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।