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शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

3581....क्या दूँ.प्रिय उपहार तुम्हें

शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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मानवीय सभ्यताओं के ऐतिहासिक पाठ्यक्रम 
पढ़ने के क्रम में 
मनुष्यता की भी शिक्षा देना
 शिक्षकों का कर्तव्य रहा 
 और हम शायद सिर्फ़ 
 सुनने का ढोंग कर हामी ही भरते रहे 
 
 पशुओं ,पक्षियों  या सृष्टि के 
अन्य  किसी भी जीव के लिए
 ऐसी किसी विशेष शिक्षा की 
 व्यवस्था देखी नहीं...
 सब तो अपनी सीमाओं को भली-भाँति
 जानते,समझते और जीते हैं
 तो मनुष्य इतना असभ्य कैसे रह गया ?

आइये आज की रचनाओं का आनंद लें-

दैनिक जीवन के साधारण से लगने वाले
क्रिया-कलापों के सूक्ष्म अवलोकन और चिंतन से उपजी वैचारिकी अभिव्यक्ति का प्रवाह
मन को हठात झकझोर जाता है-

खेलने की उम्र में .. पेशे में लगे बच्चे हों या
खिलने के समय .. पूजन के लिए टूटे फूल।

यूँ समय से पहले कुम्हला जाते हैं दोनों ही,
अब .. इसे संयोग कहें या क़िस्मत की भूल .. बस यूँ ही 


पूर्णतया समर्पित प्रेम दैहिक बंधनों से परे
अलौकिक भावनाओं के अथाह समुंदर में
डूबता उतराता रहता है स्वयं का अस्तित्व भूलकर
लीन प्रेम के गीत गुनगुनाते हुए-

मुझमें -तुझमें क्या अंतर अब!
 कहां भिन्न दो मन-प्रांतर अब
ना भीतर शेष रहा कुछ भी,
 सब सौंप दिया उर भार तुम्हें!


 परिस्थितियों का दास बने या स्वाभावानुसार लोगों का  
स्वार्थ भरा व्यवहार आहत करता है

जिन्हें कहे हैं अपना उनको
देख लगे हैं कंपने
जान बचाकर यूँ भागे कि
लगे जोर से ह्न्फने


कमज़ोरियों या मजबूरियों का फायदा उठाने में
भला कौन पीछे रहा है बेहद मर्मस्पर्शी शब्द-चित्र

चींटियों का एक बड़ा 

अम्बार घेरे था खड़ा 

खोल लुढ़का सीप का 

मुँह को छुपाए था पड़ा 

सिसकती आवाज़ बहती

आँसुओं की धार,

कोरों से सिधारेआज देखा 




और चलते-चलते एक विशेष संदेश
कृपया पढ़े,समझे और सभी को 
जागरूक भी करें ताकि मन न पूछे प्रश्न
 प्रेम जैसी पवित्र भावना को छलकर
 ऐसे किसी मासूम का


समस्या ये है कि ऊपर से आधुनिक बन गये है लेकिन अंदर से भारतीयपना गया नही है । झूल रहे है बीच मे , ना इधर के है ना उधर के है  । ऐप से  डेटिंग करना शुरू कर दिया लेकिन समझदारी से ब्रेकअप करना नही आया । ये समझ नही आया डेटिंग करना , लिव-इन शादी की गारंटी नही होती । ये समझ नही आता कि सामने वाला सिर्फ आपका फायदा उठा रहा है वो आपके साथ गंभीर नही है । 






आज के लिए इतना ही 
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही है प्रिय विभा दी।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अंक
    इस वजनदार प्रस्तुति
    के लिए साधुवाद
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका मेरी बतकही को इस "पाँच लिंकों के आनन्द" जैसे विशिष्ट मंच पर अपनी अनुपम प्रस्तुति में स्थान प्रदान करने के लिए ..
    साथ ही यशोदा जी से प्रेरित होकर और साहित्यिक भाषा में कहूँ तो .. आपको आपकी आज की भूमिका के लिए "वजनदार और भारी भरकम साधुवाद" !
    सच्चाई तो यही है कि मानवीय ज्ञानों (अपभ्रंश) ने ही मानव को पशुओं से कमतर कर दिया है .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  3. एक विचारणीय बिंदू को इंगित करती भूमिका के साथ एक भावपूर्ण प्रस्तुति बहुत विशेष है प्रिय श्वेता! बेजुबान प्राणी और प्रकृति अपनी सधी लय में निरंतर गतिमान है।मूक प्राणी संतति को तब तक अपने सानिध्य में रखते हैं जबकि हम इन्सान इसी मोहपाश में जकडे आजीवन जो है उससे असन्तुष्ट और ज्यादा पाने की चाह में अपने स्वार्थों में लिप्त रह्ते हैं।प्रकृति में मानव के सिवा हर प्राणी उतना ही ग्रहण करता है जितनी उसे जरुरत है।बस यही बात इन्सान सीख लेता तो इतनी अराजकता कदापि ना होती। सुबोध जी का विश्लेशण सहीहै कि ज्ञान के अतिवाद ने इन्सान से इंसानियत को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया।यदि शिक्षालयों की शिक्षा से नैतिकता का सही पाठ पढ़ पाते लोग तो अपने साथ दुनिया का भला हो ही जाता पर एसा हो ना सका।अशिक्षित प्राणी अपनी मर्यादाएँ आज भी निभा रहे हैं तो शिक्षित लोगों के नैतिकता के मापदंड नहीं रहे।
    शेष सभी रचनाओं को पढ़ा बहुत सार्थक और चिंतनपरक है।दोनों लेख बहुत सारगर्भित हैं।आज के शामिल सभी रचनाकारों को बधाई।तुम्हें आभार इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए और मेरी रचना को इस प्रस्तुति में स्थान देने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  4. जितनी सुंदर, जीवंत भूमिका, उतनी सार्थक और पढ़ने को प्रेरित करती रचनाएँ। आपका हृदय से बहुत आभार प्रिय श्वेता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. पशुओं ,पक्षियों या सृष्टि के
    अन्य किसी भी जीव के लिए
    ऐसी किसी विशेष शिक्षा की
    व्यवस्था देखी नहीं...
    सब तो अपनी सीमाओं को भली-भाँति
    जानते,समझते और जीते हैं
    तो मनुष्य इतना असभ्य कैसे रह गया ?
    सोचो, शिक्षा प्राप्त कर रहा हजारों वर्षों से, फिर भी असभ्य रह गया। पशु पक्षी प्रकृति स्वयं अनुशासन में जीते हैं। मानव में अनुशासन की कमी है। ऊपर से आज की शिक्षा पद्धति !!!
    पुनः एक बार विचारणीय पठनीय लिंकों से सजा सुंदर अंक।

    जवाब देंहटाएं

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