नमस्कार ! ब्लॉग जगत में आज कल कुछ सन्नाटा पसरा हुआ है ........ सबकी अपनी - अपनी समस्याएँ हैं ....... और मेरी आज के दिन ये समस्या कि नयी रचनाएँ ढूँढें से नहीं मिल रहीं ......... कोई बात नहीं ...... मैं भी निकल गयी हूँ पुरानी गलियों में ..... कुछ तो मिल ही जायेगा ........आखिर कुछ तो आपको मसौदा देना है पढ़ने के लिए ......... एक तरह से ब्लॉगर साथियों को चेतावनी भी है कि यदि ऐसा ही मौन धारण किये रहे तो भैया हम तो अपना डंडा - डोली ले कर निकल लेंगे ....... क्यों कि अब पुरानी गलियों की ख़ाक छानने की हिम्मत नहीं रही ....... यूँ तो बहुत कुछ है पढ़ने के लिए ........ लेकिन कितना घूमें न हम भी ...... उम्र हो गयी है तो थकान भी हो जाती है ...... थक कर थोडा सुस्ता लेते हैं ...... और चाय पी कर हो जाते हैं ताज़ा दम .....और आप मिलिए . कोलकता से ....
फ़ुरसत में ….! कुल्हड़ की चाय!
कोलकाता !
मुझे तुम अच्छे लगे!!
बंगाल की धरती, समाज को देखने और अनुभव करने के सुख के मामले में, अपने आप में अद्वितीय है। यहां की भूमि जहां एक ओर सहृदय, सामाजिक और रसिक लोगों की दुनियां है, वहीं दूसरी ओर जीवन की आपाधापी, और बिखराव के बीच परम्परा को सहेजती-समेटती दुनियां का आंगन भी है।
बहुत सजीव वर्णन किया है कोलकता का .| कुछ समय रहने का अवसर मिला था मुझे भी ...... और शहरों के मुकाबले अभी भी उसकी अपनी महक बाकी है ........वैसे हमें भी अब तो कोलकता छोड़े पंद्रह साल हो गए हैं ...... अरे ये कुल्ल्हड़ की चाय थी या कोई प्रसाद ? इसे पीने के बाद तो ऐसा लग रहा कि मन में अध्यात्मिक विचार पैदा हो गए हैं ........ या फिर असर है आज कल धर्म कर्म के बारे में कुछ ज्यादा ही सोच रही हूँ ........ और घूमते घूमते एक जीवन की सत्यता को कहती खूबसूरत रचना से भेंट हो गयी ........तो हाज़िर है आपके लिए भी .....
जीव, तू क्यों मरता जीता है?
जैसे कोई घर लौटा हो
जीवन का प्रसाद पाएगा
आज यहीं इस पल में जी ले,
दिल की धड़कन में जो गूँजे
गीत बनाकर उसको पी ले !
अब कौन घर लौटा है या नहीं ........ लेकिन हमारी सरकार विलुप्त होती चीतों की प्रजाति को बचाने के लिए चीतों को ज़रूर लौटा लायी है ........इस बात का काफी विरोध भी पढने में आ रहा है ..... वैसे भी किसी भी काम से हर इंसान तो खुश नहीं ही हो सकता ....... लेकिन फिर भी मैं एक लेख उठा लायी हूँ आप सबके लिए ....
चीते आ गए, स्वागत है
सोचती हूँ अक्सर..
आज़ाद हुई मैं
बोलो हे !....
सघन वीथिका में दृग हमारे
क्यूँ कर दिए वृहद् इतना
उभरती हैं जो वृतियाँ आज ये सहसा
उन्हें कुछ भिन्न सा दिखने लगा है ....
अब इस रचना के बाद मन और मस्तिष्क दोनों को ही थोड़े विश्राम की आवश्यकता है ......... तो आज बस इतना ही ......... आज की प्रस्तुति अधिकांश रूप से पुरानी पोस्ट पर ही आधारित है | ........ अगली बार देखते हैं कि कहाँ भटकती हूँ मैं .......... उम्मीद तो कर रही हूँ कि पढ़ कर आप निराश नहीं होंगे ........ फिर भी कोई सुझाव देना चाहें तो स्वागत है ........
मिलते हैं अगले सोमवार को ........ कुछ नए लिंक्स के साथ .....
नमस्कार
संगीता स्वरुप .
अप्रतिम चयन
जवाब देंहटाएंसादर नमन
आभार 🙏🙏
हटाएंब्लॉग जगत के फर्डिनैंड मैगलन(पृथ्वी का चक्कर लगाने वाला प्रथम व्यक्ति) के लिए कुछ भी कहना हमेशा कम ही रहेगा। न जाने कितने सागर.... लबालब भरा हुआ गागर। बस डुबकी लगाना ही शेष है। दृग हमारे वृहद् करने के लिए हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंप्रिय अमृता ,
हटाएंअच्छा हुआ कि मैगलन साहब का परिचय दे दिया , वरना अभी गूगल बाबा के चक्कर लगा रहे होते ।
सच ही कहा है कि ब्लॉग जगत सागर के समान है , फिर भी कोशिश करती हूँ कि गोताखोर बन कुछ मोती चुन सकूँ । इसके लिए दृग वृहद करना ज़रूरी ।
जिस उपाधि से नवाजा उसके लिए शुक्रिया ।
कहां सन्नाटा है? आपने गुलजार जो कर दिया! हां, संभव है कि मैगलन अभी प्रशांत महासागर से गुजर रहे हों!
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति अपने आप में अनोखी है जो समूचे ब्लॉग जगत को गुदगुदाती रहती है, जगाते रहती है और उसमें प्राण भरती रहती है।
अत्यंत आभार और हार्दिक बधाई!!!
विश्वमोहन जी ,
हटाएंसुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार । कोशिश रहेगी कि प्रत्येक सागर की तलहटी तक पहुँच सकूँ , काफी कठिन काम है ।
अपने पाठकों पर भरोसा है कि वो मेरी प्रस्तुति में प्राण भर देते हैं ।
आभार ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस मनभावन प्रस्तुति के चितेरे के कुछ रंग में भींगना हमारे लिए सम्मान ही है। उनकी कुछ रचनाएँ स्वयं ही सब कह रही है -
जवाब देंहटाएंज़रूरत नहीं है....
प्यार के वर्णो को कभी जाना नही
प्यार कि परिभाषा को भी पहचाना नही
इसीलिए मुझे -
प्यार पढ़ने की ज़रूरत नही है।
ना मुझे मुहब्बत का मालूम है
और ना ही इश्क़ का पता है
इसीलिए मुझे -
मुहब्बत जताने की ज़रूरत नही है ।
दिल की धड़कने धड़कती हैं बस
उन्होने मुझसे कभी कुछ कहा ही नही
इसीलिए मुझे -
धड़कनो को भी सुनने की ज़रूरत नही है ।
अगले जन्म के ख्वाबों में रह कर भी
शायद रूह बदलती नही हैं
इसीलिए --
पुन: जन्म की भी कोई अहमियत नही है ।
चाहूं किसी को या ना चाहूं मैं
ये मेरी किस्मत ही सही
पर कोई मुझे चाहे-
इसकी मुझे कोई आरज़ू नही है ।
हक़ीक़त में जीती हूँ लेकिन फिर भी
ख्वाबों की दुनिया में खुश हूँ बहुत मैं
पर इन ख्वाबों में --
आने की किसी को इजाज़त नही है ।
गुम हैं सारे रास्ते जो मुझ तक आते हैं
कोई रास्ता भी मुझ तक पहुँचता नही है
इसीलिए इन रास्तों पर -
कदम बढ़ाने की किसी को ज़रूरत नही है ।
पत्थर हूँ मैं , ये मैं जानती हूँ
और मुझे पिघलना भी आता नही है
इसीलिए-
इस पत्थर को तराशने की ज़रूरत नही है ।
अब तलक मैने यूँ ही ज़िंदगी जी ली है
और अब जो लम्हे बाकी हैं
इस बची ज़िंदगी में -
कुछ भी पाने की ख्वाहिश नही है.
Posted by संगीता स्वरुप ( गीत )
फंदे सोच के...
जवाब देंहटाएंवक्त की सलाइयों पर
सोचों के फंदे डाल
ज़िन्दगी को बुन दिया है
इसी उम्मीद पर कि
शायद
ज़िन्दगी मुकम्मल हो सके
जैसे कि एक स्वेटर
मुकम्मल हो जाता है
सलाइयों पर
ऊन के फंदे बुनते हुए ।
परन्तु-
ज़िन्दगी कोई स्वेटर तो नही
जो फंदे दर फंदे
बुनते - बुनते
मुकम्मल हो जाए.
Posted by संगीता स्वरुप ( गीत )
चक्रव्यूह...
जवाब देंहटाएंसागर के किनारे
गीली रेत पर बैठ
अक्सर मैंने सोचा है
कि-
शांत समुद्र की लहरें
उच्छ्वास लेती हुई
आती हैं और जाती हैं ।
कभी - कभी उन्माद में
मेरा तन - मन भिगो जाती हैं|
पर जब उठता है उद्वेग
तब ज्वार - भाटे का रूप ले
चक्रव्यूह सा रचा जाती हैं
फिर लहरों का चक्रव्यूह
तूफ़ान लिए आता है
शांत होने से पहले
न जाने कितनी
आहुति ले जाता है ।
इंसान के मन में
सोच की लहरें भी
ऐसा ही
चक्रव्यूह बनाती हैं
ये तूफानी लहरें
न जाने कितने ख़्वाबों की
आहुति ले जाती हैं ।
चक्रव्यूह -
लहर का हो या हो मन का
धीरे - धीरे भेद लिया जाता है
और चक्रव्यूह भेदते ही
धीरे -धीरे हो जाता है शांत
मन भी और समुद्र भी .
Posted by संगीता स्वरुप ( गीत )
आश्चर्यचकित कर दिया । मैं ब्लॉग जगत छान रही थी और तुम मेरा ब्लॉग ।
हटाएंतुम्हारे द्वारा चयनित अपनी ही रचनाएँ पढ़ने का सुख देने के लिए आभार ।
यदि आप ब्लॉग पर पढ़ना चाहें तो यहाँ क्लिक करें ---/
हटाएंचक्रव्यूह
फंदे सोच के
ज़रूरत नहीं है
जी दीदी अमृता जी के अनथक प्रयास के लिए उनको कोटि धन्यवाद।बहुत ही प्यारी रचनाएँ हैं 🙏🌹
हटाएंअनमोल पंक्तियाँ प्रिय दीदी,आपकी यशस्वी लेखनी से--------
हटाएंहक़ीक़त में जीती हूँ लेकिन फिर भी
ख्वाबों की दुनिया में खुश हूँ बहुत मैं
पर इन ख्वाबों में --
आने की किसी को इजाज़त नही है ।///🙏🙏🙂
हार्दिक आभार , रेणु ।।
हटाएंबहुत सुन्दर और मोहक संकलन । पुराने ब्लॉग्स के सूत्रों से परिचय सुखद अनुभूति है। सभी सूत्र पढ़ूँगी धीरे-धीरे । “उड़ान” मेरी आरम्भिक रचनाओं में से एक है । आपके द्वारा संकलन में सम्मिलित करना मेरे लिए ख़ुशी की बात है । बहुत बहुत आभार । सस्नेह सादर वन्दे!
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति की सराहना हेतु हृदयतल से आभार ।।
हटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार कविता जी , आपकी उपस्थिति प्रेरणादायक है ।।
हटाएंआ . अमृता जी द्वारा साझा की गई आपकी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक हैं आ. दीदी ! उनके कथन से “ इस मनभावन प्रस्तुति के चितेरे के कुछ रंग में भींगना हमारे लिए सम्मान ही है। उनकी कुछ रचनाएँ स्वयं ही सब कह रही है” मैं भी सहमत हूँ ।
जवाब देंहटाएंअब आप सब एक तरफ हो जायेंगे तो क्या कह सकती हूँ ?
हटाएंहार्दिक आभार ।
मीना , आपने ब्लॉग पर जा कर कमेंट किया ,इसके लिए तहेदिल से शुक्रिया ।
हटाएं🙏
हटाएंवाकई आज की हलचल की प्रस्तुति मनभावन है, कुल मिलाकर एक दर्जन रचनाओं का आनंद लिया जा सकता है, संगीता जी व अमृता जी दोनों ने ही समां बांध दिया है. बहुत बहुत आभार मुझे भी इस रस की गंगा का हिस्सा बनाने के लिए !
जवाब देंहटाएंअनिता जी ,
हटाएंकल मैंने आपको प्रत्युत्तर दिया था लेकिन शायद किन्हीं कारणों से प्रकाशित नहीं हुआ ।आपकी भक्ति रस की धार में थोड़ा सा हिस्सा चुरा लायी हूँ और यहां रस की गंगा का आचमन सबको दे रही हूँ । आभार आपका ।
अति सुंदर संयोजन।
जवाब देंहटाएंआभार ..... शायद ये पुरानी ब्लॉगर साथी।अरुणा जी की टिप्पणी है ।
हटाएंखैर किसी की भी हो ... हार्दिक आभार ।
ब्लॉग जगत के इस सन्नाटे में
जवाब देंहटाएंआपकी रूनझुनी उपस्थिति,
विविध वाद्ययंत्रों का सुंदर संयोजन कर
मन को सुकून पहुँचाने वाला
सुखद संगीत, नवीन सकारात्मक
ऊर्जा आप प्रवाहित करती हैं दी।
विभिन्न ब्लॉग जाकर रचनाओं को चुनकर
अपने स्नेह के पाग में लपेटकर सजाना सचमुच
सराहनीय है।
आज अमृता जी के द्वारा प्रेषित आपकी रचनाओं ने पटल की शोभा में चार चाँद लगा दिये हैं।
सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं दी।
अमृता जी का बहुत बहुत आभार।
मनोज सर की रचनाओं को पढ़वाने के लिए विशेषकर बहुत आभारी हूँ।
मेरी रचना को इस विशेषांक में शामिल करने के लिए हृदय से आभारी हूँ दी।
अगले अंक की प्रतीक्षा में
सप्रेम प्रणाम दी।
सादर।
प्रिय श्वेता ,
हटाएंतुमने तो सारे ही वाद्य यंत्र छेड़ दिए । जैसा जिसका मन वैसा ही अनुभव होता है ।
आज अमृता ने कुछ अमृत रस का अनुभव मुझे भी कराया ।
इसके लिए अमृता को साधुवाद और पाठकों का आभार ।
हमेशा की तरह बहुत ही नायाब प्रस्तुति एक से बढ़कर एक लिंक्स... सचमुच मैगलन सा ब्लॉग भ्रमण आपका ...सादर नमन आपकी श्रमसाध्यता को।
जवाब देंहटाएंआपकी खूबसूरत रचनाएं शेयर करने के लिए अमृता जी का आभार । लिंक संग्रहित कर लिए हैं फुरसत से पढुँगी ।
सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
प्रिय सुधा,
हटाएंआपकी उपस्थिति सदैव मुझे ऊर्जान्वित करती है । बहुत आभार । आज तो सब अमृता जी को ही आभार देने में व्यस्त हैं 😄😄😄
प्रिय दीदी,ब्लॉग जगत में आपके स्वछन्द विचरण ने पुरानी अनमोल रचनाओं से हमारा परिचय करवाया उसके लिए कोटि आभार।सच में अपनी अभिव्यक्ति और ब्लॉग से दूर कौन होना चाहेगा!कुछ तो मजबूरियाँ रहती होंगी।मेरी मजबूरियाँ भी समाप्त होने का नाम नहीं ले रही पर पाठक के रूप में सदैव उपस्थित रहने की कोशिश करती हूँ। अमृता जी आपके ब्लॉग भ्रमण से आपके सृजन के अनमोल मोती बटोर कर लाईं हैं।उनका हार्दिक आभार।आपके द्वारा लगाये गये सभी लिंक अनमोल हैं।सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं।आपको हार्दिक आभार और प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु ,
हटाएंपुरानी रचनाओं से क्यों कि मैं परिचित हूँ ,इसलिए अच्छे और अपनी पसंद की पोस्ट आप सबको पढ़वाने हेतु यहाँ लिंक लगाती रहती हूँ । बहुत से ब्लॉग्स तक अब मेरी पहुंच नहीं हो पाती क्यों कि ब्लॉगर्स अपने ब्लॉग पर सक्रिय नहीं है । कुछ की मजबूरी तो कुछ की प्राथमिकताएँ बदल गयी हैं ।
प्रस्तुति की सराहना हेतु आभार ।।
शीर्षक को समर्पित मेरी कुछ पँक्तियाँ---
जवाब देंहटाएंसुख- दुःख का ताना बाना है ,
कहीं गुलशन कहीं वीराना है !
तन , मन और जीवन ,
पल - पल बदले इनका मौसम !
हँसी कहीं रोदन बिखरे ,
नियत जन्म के साथ मरण !
नित गतिमान यायावर का
जाने कहाँ ठौर ठिकाना है ?
🙏🙏🌹🌹
बहुत खूबसूरत पँक्तियाँ । यही सच है ।
हटाएंआदरणीय दीदी, प्रणाम!
जवाब देंहटाएंइतना सुंदर अंक बिना पढ़े रहा नहीं गया..आपकी अनुपम और अद्भुत खोज में मेरी "आजाद हुई मैं" का चयन देख अति प्रसन्नता हुई । मेरी प्रिय रचनाओं में से एक इस रचना को अभी तक कोई नही पढ़ा था, का आपने चयन किया मेरे लिए ये खुशी अनमोल है, आपके श्रमसाध्य प्रस्तुति का दिल से स्वागत है, आज के हर सूत्र के चयन की विविधता मन को भा गई चाहे वो....
...मनोज कुमार जी का आलेख फ़ुरसत में कुल्हड़ की चाय.. कोलकाता की संस्कृति का जीवंत चित्रण के साथ कुल्हड़ की चाय का स्वाद ! बहुत उत्कृष्ट सृजन !
विश्वमोहन जी की रचना.. जीव, तू क्यों मरता जीता है… उच्च जीवन दर्शन का सुंदर सम्प्रेषण !
अनीता दीदी की .. जैसे कोई घर लौटा हो!.. मनन और चिंतन से निकली रचना ।
गगन शर्मा जी का .. चीते आ गए हैं .. चीतों के बारे में जानकारी युक्त सामयिक आलेख ।
श्वेता सिन्हा की.. सोचती हूं अक्सर.. मन के भावों को व्यक्त करती सुंदर रचना ।
मीना जी की ... मन की आवाज़ बनती सुंदर और प्रेरक रचना.. उड़ान
अमृत तन्मय जी की.. अन्तर्मन का अवलोकन करती उत्कृष्ट रचना .बोलो हे! अति सुन्दर !
.बहुत सुंदर पठनीय अंक ! स्वास्थ्य कारणों से पिछली प्रस्तुति पर नहीं पहुँच पाई.. आज सभी लिंक्स पर जाना हुआ ! सादर नमन आपको !
हटाएंप्रिय जिज्ञासा ,
हर रचना को मन से पढ़ कर उस पर सार्थक , संक्षिप्त टिप्पणी की है । इस तरह पोस्ट को खोजना सार्थक हुआ । शुरुआती कुछ रचनाएँ अनपढी रह जाती हैं , अच्छी रचनाओं को सामने लाने का प्रयास करती हूँ ।
सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार ।