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शनिवार, 20 अगस्त 2022

3491.. त्रिलोचन शास्त्री



हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

त्रिलोचन शास्त्री। उन्हें हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्य धारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिन्दी कविता की प्रगतिशील ‘त्रयी’ के तीन स्तंभों में से एक थे। इस ‘त्रयी’ के अन्य दो स्तम्भ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे। त्रिलोचन शास्त्री काशी (आधुनिक वाराणसी) की साहित्यिक परम्परा के मुरीदकवि थे। उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव से ‘बनारस विश्वविद्यालय’ तक अपने सफर में त्रिलोचन शास्त्री ने दर्जनों पुस्तकें लिखीं और हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। शास्त्री जी बाज़ारवाद के प्रबल विरोधी  थे। हालांकि उन्होंने हिन्दी में प्रयोगधर्मिता का समर्थन किया। उनका मानना था कि- "भाषा में जितने प्रयोग होंगे, वह उतनी ही समृद्ध होगी।" त्रिलोचन शास्त्री ने हमेशा ही नवसृजन को बढ़ावा दिया। वह नए लेखकों के लिए उत्प्रेरक थे।त्रिलोचन की समझ का विस्तार हम मुक्तिबोध की कविताओं में पाते हैं। विचारशीलता मुक्तिबोध की कविताओं का प्राणतत्व है। उनकी कविता में जो अंधेरा है, वह इस व्यवस्था का अंधेरा है। यहां अंधेरा मिथ नहीं यथार्थ है जो आज अपनी विकरालता के साथ उपस्थित है। इस अवसर पर शिवमूर्ति, भगवान स्वरूप कटियार, अशोक चन्द्र, बंधु कुशावर्ती, डा निर्मला सिंह, अलका पाण्डेय, विमल किशोर, राम किशोर, आशीष कुमार सिंह, मेहदी अब्बास रिजवी, अजय शर्मा, नीतीन राज, खुशबू सिंह, सुशील सिंह, विवेक, आलोक तिवारी, अलका तिवार आदि उपस्थित थे। त्रिलोचन शास्त्री मनुष्य को आशावादी रहने का आवाहन देते हुए कहते हैं कि जिस व्यक्ति को अपनी मंजिल दिखाई देती है वह सर्वप्रथम कई कष्टों को ,बाधाओं को पार करते हैं| सफलता का मार्ग अति कंटकमयहोता है |यहां कवि मनुष्यों का हौसला बढ़ाते हुए उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि सच्चा मनुष्य वहीं है जो सफलता के मार्ग में आने वाली समस्याओं का डटकर सामना करता है | संकटों की शरण ना जाकर विघ्नों को गले लगाते हुए सही मायने में वही व्यक्ति सफलता का अधिकारी हो जाता है |

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पुनः भेंट होगी...
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4 टिप्‍पणियां:

  1. जी दी,
    त्रिलोचन शास्त्री जी पर विविधापूर्ण,विस्तृत विश्लेषण के सूत्र संयोजन कर.एक अनूठा संकलन तैयार किया है आपने ।
    सारी रचनाएँ तो नहीं पढ़ सके आज पर पढेंगे अवश्य।
    आपकी प्रस्तुति का यह रचनात्मक अंदाज मुझे बहुत अच्छा लगता है।
    सादर आभार
    सस्नेह प्रणाम दी।

    जवाब देंहटाएं
  2. त्रिलोचन शास्त्री जी के विषय में जानना अच्छा लगा ।
    आज काव्य सौंदर्य से अधिक भावना यथार्थ का परिचायक बन गया है ।

    जवाब देंहटाएं

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