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बुधवार, 1 जून 2022

3411...घर की देहरी पर ...

 ।।प्रातः वंदन ।।


भोर का बावरा अहेरी!

पहले बिछाता है आलोक की

लाल-लाल कनियाँ,

पर जब खींचता है जाल को

बाँध लेता है सभी को साथ..!!

 अज्ञेय

 जीवन की आपाधापी के बीच कल्पना में डूबना बड़ा अच्छा लगता है.. और जब बात हो खास ख्याल से तो फिर ... लिजिए आज की पेशकश में..✍️

मेरा भी जी तितलियों पर मचल जाए तो क्या कहिए ..

कोई छूने से आबे हैवाँ जल जाए तो क्या कहिए

किसी की आरज़ू में दम निकल जाए तो क्या कहिए


निगाहे लुत्फ़ उसका है मेरी जानिब, हूँ किस्मतवर

पर इस पल ही मेरी किस्मत बदल जाए तो क्या कहिए..

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ओस के मोती










जो सुने गीत हम चले आये।
बाँधकर प्रीत साथ में लाए॥

दो घड़ी पास में जरा बैठो।
बीतती रात रागिनी गाये

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मिट्टी की गागरी











भरी गागरी बड़ी जतन से 
मिट्टी वाली ।
ठूँस ठूँस कर भरी गई 
फिर भी है खाली ॥

स्वर्ण रत्न की घोंट पिलायी
हीरे मोती पन्ना,
माणिक मुकुट जड़ा कुंदन

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बड़ा आदमी 

बनने के लिए

पहले गळदार

बन जावो

फिर जिस भी टाईप का

बड़ा बनना है

बन जाओगे

अनेक टाईप के..

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परवाज़...संध्या शर्मा

अच्छी तरह याद है मुझे ....

जब मैंने पहली बार

तुम्हारे घर की देहरी पर 

कच्चे चावल से भरा कलश

दाहिने पांव से छुआ था

कितने प्यार से सहेजा..

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।।इति।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

7 टिप्‍पणियां:

  1. अज्ञेय जी से अंक का आगाज
    स्तरीय रचनाओं का गुलदस्ता
    आभार..
    सादर.....

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर सराहनीय अंक ।
    सभी रचनाएँ उम्दा हैं। बड़ा आदमी का लिंक नहीं मिला ।
    यहां आकर पता चला मेरी भी रचना प्रकाशित हुई है।बहुत आभार पम्मी जी । सादर शुभकामनाएं 💐💐👏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बड़ा आदमी का लिंक
      https://adigshabdonkapehara.blogspot.com/2022/05/blog-post_28.html

      हटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

    जवाब देंहटाएं

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