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बुधवार, 27 अप्रैल 2022

3376..सुनोगे नहीं क्या किताबों की बातें ..

 

"किताबें करती हैं बातें

बीते जमानों की

दुनिया की, इंसानों की

आज की कल की

एक-एक पल की...

सुनोगे नहीं क्या

किताबों की बातें?"

सफ़दर हाशमी 

सहज रूप से कुछ प्रश्न करतीं पंक्तियों के साथ,लिजिए प्रस्तुतिकरण के क्रम को आगें बढ़ातें हुए रूबरू होते हैं.. ✍️

लहरें




इन लहरों की ही तरह 
एक दिन मैं भी आजाद 
हो जाऊँगी
तुम कैद करते रहना मुझे 
मैं इन किनारों..
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उतरती है चाँदनी धीरे - धीरे, मुंडेरों से
हो कर, झूलते अहातों तक, फिर भी
मिलती नहीं, रूह ए मकां  को
तस्कीं, इक रेशमी अंधेरा
सा घिरा रहता है दिल
की गहराइयों तक ..
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दृष्टियाँ


 ये वृक्ष, ये चहचहाते पक्षी, नीला गहराता अनंत आकाश, 

गोद ले जीवन झुलाती, घूमती धरती,

नक्षत्रों की उंगलियाँ थामे यह...

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हंगामा है क्यों बरपा???

आज के फाइव जी दौर में जहां सूचना सबकी हथेली में है। किसी से कुछ भी छुपा नहीं रहा। लोगों को रील पर अर्धनग्न कपड़े पर फूहड़ गाने कमर मटकाती नवयौवनाओं से, रियल्टी के नाम पर टीवी सीरियल..

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धूप के चश्में से मौसम की कहानी लिखना

कितना मुश्किल है कभी रेत को पानी लिखना


लोकशाही है,न राजा , नहीं दरबार कोई

फिर भी बच्चों की कथाओं में तो रानी लिखना

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।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️



5 टिप्‍पणियां:

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