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मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

3375 ..."मेरा डर उसी समय भाग गया साहब जब युद्ध छिड़ा..।"

सादर अभिवादन.....
सामान्य ज्ञान गतांक से आगे......
लूणी नदी पुष्कर के निकटवर्ती अरावली की पहाड़ियों में स्थित नाग पर्वत से उद्गम होकर थार मरुस्थल के दक्षिण-पूर्वी भाग में बहती हुई कच्छ के छोटे रण में जा मिलती है।

कच्छ का रण एक नमक का दलदल है, जहाँ यह नदी समा जाती है।

लगभग ४७५ किलोमीटर लम्बी लूणी नदी से अनेक नदियों का संगम भी होता है, लूणी के रण में समाहित होने का तात्पर्य है कि यह नदियाँ भी कच्छ की रणभूमि में खेत हो जाती हैं।


(लूणी तथा उसकी मुख्य सहायक नदियाँ)

इनमें से बड़ी नदियाँ हैं :

१. सरस्वती (पुष्कर झील से उत्पन्न नदी, सरस्वती और लूणी नदी के संगम से 
पूर्व लूणी नदी को सागरमती कहते हैं। )
२. जवाई
३. सुक्री
४. गुडिया
५. बन्दी (हेमवास)
६. खारी
७. सागी
८. जोजरी (पश्चिम से मिलने वाली एकमात्र नदी)

विशेष :—
लूणी एक बरसाती नदी है और इसकी सहायक नदियाँ भी। अतः यह वर्षा ऋतु में ही पूरे प्रवाह से बहती है। रेतीली भूमि पर बहने के कारण इसके तट सुविकसित नहीं हैं, अतः यह चौडे पाट वाली छिछली नदी है, जिसका अधिकांश पानी रेत सोख लेती है अथवा सूर्य की ऊष्मा से सूख जाता है।

यहाँ एक बात और है कि बरसात में कच्छ का रण भी एक विशाल छिछली झील में परिवर्तित हो जाता है, जो कुछ स्थानों पर समुद्र में भी मिलती है, अतः गुजरात के सिद्धपुर के निकट अल्पकाल के लिए लूणी का भी कुछ पानी समुद्र में मिलता ही है।

अब रचनाएँ



समय कुसमय को न देखा
बिना सोचे अनर्गल बोलते रहे
अरे यह क्या हुआ ?
क्या किसी ने न बरजा |
क्या हो समकक्ष सभी के
कोई बड़े छोटे का ख्याल नहीं



लसोड़े बहुत ही कम समय के लिए आते है। बाद में यदि हमें लसोड़े की सब्जी खाना है 
तो साल भर इंतजार करना पड़ता है। 
यदि आपको लसोड़े की सब्जी पसंद है और आप इसे स्टोर करना चाहती है 
तो जानिए लसोड़े को साल भर के लिए स्टोर करने का तरीका...




तुम आते हो प्रतिदिन
अब तो नियम सा हो गया है
तुम्हारा आना
जैसे आता है सूरज , चाँद
जीवन में
दे जाते हो शब्दों के कण
और तुम चाहते हो
कण कण मिलाकर
मै ऋचाएं रचूं




"ये रे लखिया तू किस मिट्टी की बनी है?
तुझे ना तो इस श्मशान बने जगह पर
आने में डर लगा और ना मृतक को बटोरने में!"
"मेरा डर उसी समय भाग गया साहब जब युद्ध छिड़ा..।"
"तू इनका करेगी क्या?"




शादी के कार्ड जो रद्दी की शोभा बढ़ाएं ।
कैलेंडर,लिफ़ाफ़े,चित्र, जो काम न आएं ।
बचे हुए रंग, कतरनें , सब काम में लाएं ।
होनहारों के रहते कुछ भी बेकार न जाए ।

.....
आज बस

सादर 

10 टिप्‍पणियां:

  1. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार प्रस्तुति..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    धन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए |उम्दा लिंक्स|

    जवाब देंहटाएं
  4. ज्ञानवर्धक भूमिका संग सुंदर संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  5. दिग्विजय जी, इस सुंदर संकलन में स्थान देने के लिए और बहुत खूबसूरत प्लेसमेंट के लिए हार्दिक आभार बारंबार । आज जो रचनाएँ आपने चुनी हैं, गागर में सागर समान हैं । सभी का सविनय अभिनंदन ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत उम्दा हलचल प्रस्तुति। मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिग्विजय भाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. लूणी नदी पर बहुत दिलचस्प जानकारी । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं

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