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मंगलवार, 8 मार्च 2022

3326....रहने दो कवि

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2022 की थीम 'जेंडर इक्वालिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो' यानी एक स्थायी कल के लिए लैंगिक समानता रखी गई है. साथ ही इस बार महिला दिवस का रंग बैंगनी-हरा और सफेद भी तय किया गया है, जिसमें पर्पल न्याय और गरिमा का प्रतीक है, जबकि हरा रंग उम्मीद और सफेद रंग शुद्धता से जुड़ा है।
स्त्री और पुरूष पर समान रूप से सृष्टि के संचालन का दायित्व है, दोनों में अन्योन्याश्रित संबंध है ऐसा मानकर व्यवहार करने से स्त्री संबधित बहुत सारी समस्याओं का निदान हो जाए।
समानता के अधिकार पर क्या कहूँ,
हमें शब्दों में नहीं
आँखों में सम्मान  चाहिए।

 मुझे नहीं अलापना नारीशक्ति या नारीमुक्ति का राग,
नहीं जगाना अलख कोई, नहीं कहना नारी तू जाग
तुम दोगे क्या सृष्टि सर्जक को उपहार में विशेष सम्मान,
 जो बंधकर भी मुक्त हो लुटाती सृष्टि में नेह-अनुराग



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जब पुरूष स्त्री की हक़ की बातें करते हैं और स्त्रियों की दशा को स्वीकारते हैं तो यह स्त्रियों के लिए
सम्मान का विषय होता है। 

मंद-मंद,
सिसकती हया,
मयतनया!
नरनपुंसक नाद, 
पंचेंद्रिय आह्लाद,
पौरुष पतित डंक।
 
नग्न, शमीत, ध्वस्त, 
होते अस्त, 
अनुसूया के अंक!

वूमन लिबर्टी अर्थात नारी मुक्ति की चर्चायें चारों ओर सुनाई देती हैं,बड़ी बड़ी संस्थायें नारी स्वतंत्रता की मांग करती हैं,स्वयं नारियां नारी मुक्ति के लिये आवाज उठाती हैं,आन्दोलन करती हैं,सभायें करती हैं,बडे बडे बेनर लेकर नारे लगाती हैं,
विचारणीय प्रश्न यह है कि मजदूरी कर जीवन चलाने वाली नारी अपना कोई महत्त्व नहीं रखती,इसके लिए क्या हो रहा है,क्या देश के महिला संगठन इनके उत्थान के लिए कभी आवाज उठायेंगे.


स्त्रियों के विचार भी पढ़िए-
स्त्रियों ने सदियों से संघर्ष ही किया है उनकी व्यथा को
शब्दों में व्यक्त करना कवि की संवेदनशील कल्पना और लेखनी की जादूगरी हो सकती है किंतु स्त्री मनोभावों और जीवन का निचोड नहीं।

ये व्यथा लिखने में,  
कहाँ लेखनी  सक्षम कोई ?
लिखी गयी  तो  ,पढ़ इन्हें 
 कब  आँख हुई नम कोई ?
संताप सदियों से सहा है 
 यूँ ही सहने दो कवि!

 
ओ पुरुष,
नियंत्रक बने हर वक़्त 
चलाते हो अपनी 
और चाहते हो कि 
बस स्त्री केवल सुने 
कर देते हो उसे चुप 
कह कर कि 
तुम औरत हो 
औरत बन कर रहो
नहीं ज़रूरत है 
किसी भी सलाह की ।
 

पीढ़ियों का संविधान
उनकी विधि उनका विधान
कितनी दूरी मापनी है
है लगा पग पग निशान
कहने को तो चल पड़े हैं
दूर है बाजार ।।

"सरकारी कार्यालयों में रिक्तियों में बहाली नहीं, चिकित्सा में उन्नति नहीं, शिक्षा ठप्प होने के कगार पर, कुछ वर्षों के बाद प्रत्येक घर वृद्धाश्रम बन जायेगा।  बिन ब्याही माँ बनी चौदह-पन्द्रह साल की बच्चियों का आश्रयस्थल, शेल्टर होम की कहानी इसी शहर के किसी कोने में है,शराब बन्दी की खूब कही: दस करोड़ की उगाही माफिया-पुलिस-नेताओं के जेब में आज भी जा रही। 

और चलते-चलते
प्रेम,ख्याल,रसोई की  खुशबू में ढली स्त्री गलत नहीं थी, दरअसल वह घर की नींव थी  ... परन्तु दिनभर फिरकनी की तरह खटती स्त्री ने जाने कब खुद को रोटी का मोहताज मान लिया, और अपने को बेड़ियों में जकड़ दिया।  निर्भय हो त्रिलोक की परिक्रमा करने की क्षमता रखनेवाली, भयभीत होने लगी - कहाँ जाऊँगी, क्या करुँगी !!!
फिर - वह परित्यक्ता हुई, जला दी गई, गर्भ में ही मरने लगी, सरेराह सरेआम दरिंदगी का शिकार होने लगी !
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आज के लिए इतना ही
फिर मिलते हैं अगले अंक में।
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13 टिप्‍पणियां:

  1. अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर अत्यंत सार्थक और सारगर्भित प्रस्तुति! बधाई और आभार!!!!

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  2. बहुत ही सार्थक अंक प्रिय श्वेता।अच्छा लगा जानकर
    कि इस वर्ष 'लैंगिक समानता' रखी गई। और सच में आँखों में सम्मान ही नारी का सबसे बड़ा सम्मान है।


    नारी सदियों से संघर्षशीलरही है।एसा नहीं है कि औरतों ने अपने अस्तित्व की लड़ाई नहीं लड़ी। हमारे पुराणों और इतिहास में प्रसंग मिलते हैं जिनमें नारी सशक्तीकरण और नारीवाद की पताका बुलन्द करती अनेक युग-नारियों का उल्लेख है ।इनमें कुंती जैसी साह्सी नारियांँ भी थी जिनके पतियों के संतानोत्पत्ति में अक्षम होने पर उन्हें 'नियोग ' जैसी क्रिया से संतानोत्पत्ति का अधिकार था!जिसे उस समय का समाज सहजता से स्वीकार करता था,भले आज के कहीं उच्च शिक्षित सभ्य समाज में इस तरह की चीजेँ ज़रा भी स्वीकार्य नहीं। सीता जैसी स्वाभिमानी नारी ने पति के घर वापसी के अनुरोध को ठुकराकर धरती के वक्षस्थल में समाने को प्राथमिकता दी।तो द्रोपदी सरीखी, दुस्साहसी पाँच पतियों की पत्नी, ने पाँच पतियों के होते हुए भी अपने जीवन में एक अदद सखा श्री कृष्ण की गुंजाइश रखी थीजिसे आज का शिक्षित समाज भी मान्यता देने का साहस नहीं कर सकता।इसके अलावा गार्गी,मैत्रेयी जैसी मेधा सम्पन्न नारियांँ भी थी जिन्होने शास्त्रार्थ में पुरुषों से लोहा मनवाया।और नारी शिक्षा और आत्मचिन्तन की सुदीर्घ परम्परा की शुरुआत की
    ।आज की औसत नारी तन, मन और धन से अपेक्षाकृत अधिक मजबूत है पर एक वर्ग कहीं न कहीं आज भी बहुत पीछे है।औसत नारी के आगे आधुनिक युग की अनेकानेक उलझनेँ और समस्याएँ हैं।पर उतना ही बुलन्द आत्मविश्वास और आत्मबल भी है।
    आँकड़ोँ के अनुसार विश्व की अर्थव्यवस्था का सतर प्रतिशत बोझ अपने कंधों पर ढोती महिलाओं के लिए पग- पग पर चुनौतियाँ कम नहीं, पर वो जीवटता से अनथक अग्रसर है नई उंचाईयों की ओर,बिना रुके,बिना थके।
    अच्छा लगा आज के सभी चिंतनपरक लिँक पढकर आदरनीय विश्वमोहन जी ने प्रात स्मरणीय पाँच कन्याओ को अपनी नवीन कवि दृष्टि से आंका है जिन्होने पर पुरुषो द्वारा पीडित होकर भी अपने नारीत्व को नयी गरिमा और उँचाई देते हुए भावी पीढ़ीयों को नारी चेतना और सशक्तीकरण का सही पाठ पढ़ाया।ज्योति सर की चिन्ता उन मजदूर महिला वर्ग के लिए है जो महिला दिवस के मायने नहीं जानती और ज्यादा काम के बदले पुरुषों की तुलना में बहुत कम मजदूरी से परिवार चलाती संतुष्ट रहती है।संगीता दीदी की रचना उन अहंकारी और दम्भी पुरुषों को कडी फटकार है जो नारी को एक अदद परामर्श का भी अधिकार नही देते उस पर उपहास उड़ाने से बाज़ नहीं आते।नारी सशक्तिकरण या के सेमिनारो से सजी दुनिया में परिवारों मभी एक संविधान है जिसमें नारी को सदैव कम आंका गया।जिज्ञासा जी की भावपूर्ण अभिव्यक्ति यही कहती हैकि दिल्ली अभी दूर है विभा दीदी की पोस्ट दुनिया का भयावह चित्र प्रस्तुत करते हुए चेताती है गिरते नैतिक मूल्यों के प्रति। हर तरफ उपलब्धियों का शोर है बस।जहाँ दरार है वह जगह अनदेखी रह जाती है।औरतों की शानदार उपलब्धियों का सुन्दर दस्तावेज है रश्मि जी की पोस्ट।मैं भी दुबारा आराम से पढ़कर प्रतिक्रिया देती हूँ।सभी को सादर नमन।सभी को महिला दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।तुम्हें आभार एक सशक्त अंक के लिए

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    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. आभार..
      गहन अध्ययन..
      सच में धारिणी
      महान है..वो
      सहते हुए भी नहीं थकती
      स्वयं नहीं बनती...
      केवल निर्माण करना जानती है
      आपका आलेख को समझना पड़ेगा
      आभार..
      सादर..

      हटाएं
    3. मेरी रचना को प्रस्तुति में जोडने के लिए आभारी हूँ प्रिय श्वेत।ये रचना किसी अन्य कवि की शोषित नारी के लिए लिखी गई रचना पर काव्यात्मक प्रतिक्रिया स्वरुप लिखी गई थी।
      पुन आभार।

      हटाएं
    4. हार्दिक आभार प्रिय दीदी 🙏🙏

      हटाएं
  3. सुप्रभात !
    नमस्कार श्वेता जी👏
    महिला दिवस पर सार्थक रचनाओं से सजा सारगर्भित संकलन । मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन।
    आपके श्रमसाध्य कार्य को नमन करते हुए सभी को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐🌹🌻🌷🌼🏵️🌸🌺

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  4. महिला दिवस हर वर्ष आता है और चला जाता है,मजदूर नारियां ज्यों की त्यों हैं,नारी मुक्ति की बात तभी सार्थक होगी कि जब "महिला मजदूर"के उत्थान की बात हो,वर्ना ऐसे "महिला दिवस"का क्या ओचित्य जिसमें केवल स्वार्थ हो.
    व्वाहहहहहह..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  5. मुझे नहीं अलापना नारीशक्ति या नारीमुक्ति का राग,
    नहीं जगाना अलख कोई, नहीं कहना नारी तू जाग
    तुम दोगे क्या सृष्टि सर्जक को उपहार में विशेष सम्मान,
    जो बंधकर भी मुक्त हो लुटाती सृष्टि में नेह-अनुराग।

    –वाह छुटकी... यह हुई सत्य की बात
    °°
    शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार और साधुवाद

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  6. अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर बहुत अच्छी सामयिक हलचल प्रस्तुति। शुभकामनाएं सभी को

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  7. कमाल की भूमिका
    गजब का संयोजन और संकलन
    श्वेता जी साधुवाद आपको

    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार

    सादर

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  8. हर लिंक बेहतरीन लगा .... बहुत समय बाद हर पोस्ट पर जाना हुआ .... शुक्रिया .

    जवाब देंहटाएं

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