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शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

3308 ...उनका बदल जाना साहेब

शुक्रवारीय अंक में 
आपसभी का स्नेहिल
अभिवादन करती हूँ।
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ईश्वर का अस्तित्व मनुष्य की चेतना को थामे रखने के लिए बुना गया, जबतक मनुष्य के कर्म बंधे हुए हैं पाप-पुण्य,कर्मफल के तथ्यों को मानते हुए,मनुष्य में दया और प्रेम अंर्तमन की सहज ऊर्जा है जो मनुष्य को संसार के संचालन के लिए संतुलित करती है, किंतु मनुष्य के विचारों एवं व्यवहारों की निरंकुशता असहज करती है ऐसे में एक प्रश्न अक्सर उठता है मन में कि
 ईश्वरविहीन संसार में मनुष्य की नैतिक भूमिका कैसी होगी?
खैर, 
क्रोध,लोभ,मोह अंहकार, ईष्या जैसी भावनाओं की विषाक्तता को मिटाने की एक औषधि है संसार में  वह है प्रेम। प्रेम जो मनुष्य को साधारण से विशेष होने की अनुभूति कराता है-  

जब से तुमने
लहरों की तरह
उसके भीतर 
मचलना शुरू किया 
वह
समुंदर हो गया

प्रेम की अनुभूति का अलौकिक सुख समय की भट्ठी में चढ़कर मीठा होता या फीका यह परिस्थितियों की आँच पर निर्भर है।
प्रेम करना जितना सहज है प्रेम से मिली पीड़ा को सहना उतना ही कष्टकारी। 

बातें थी कई झूठी,
अफ़साने बहुत थे!
हुनर उनके पास
बहलाने के बहुत थे!
ना दिल सह पाया धीरे- धीरे
उनका बदल जाना साहेब

साँझ ढले
नभ के आँचल में दमकता चाँद कवियों की कल्पना के
संसार में मनमोहक रंग भर देता है जिसकी शुभ्र ज्योत्सना मन को शीतलता प्रदान करती है
ओस की लड़ियाँ सुशोभित
भोर हर तिनके पे हैं
मोगरे सी गुंथी आभा
पुष्प के मनके पे हैं
हीरकों की किरन से
है दमकता हर बागबाँ ।।
यात्राओं का खट्टा-मीठा अनुभव स्मृतिपटल पर अंकित पगडंडियों से गुजरते हुए तुलनात्मक हो ही जाता है।


आश्चर्य में मत पड़ना यदि कभी कोई आपको मेरा वज़न लीटर में बताये या कहे कि फलानी जगह तक पहुँचने में ४ दर्जन पेट्रोल लगेगा. भारत में दो नम्बरी बाजार में तो रुपयों के मानक को बदलते आप देख ही चुके हैं- १००० रुपये याने १ गाँधी, १ लाख रुपये याने एक पेटी और १ करोड़ याने १ खोखा. खाली लिफाफा याने एक साहेब 

जीवन के विभिन्न पड़ाव में मनुष्य की जीवन-शैली में सुख की परिभाषा में क्रमशः परिवर्तन का विश्लेषण एहसास दिलाती है परिवर्तन समय और परिस्थितियों पर आधारित होता है-

पर अब वक्त बदल गया है। पिछले कुछ सालों ने हमें काफी कुछ सिखाया है। जीवन में क्या जरूरी है उसका पता चला है। अब कोई मुझे मेरे पेरफेक्ट दिन की परिभाषा बताने को कहे तो मैं यही कहूँगा कि मेरे लिए मेरा हर वो दिन परफेक्ट है जिसमें मैं अपने अपनों के साथ हूँ। एक ऐसा आम सा दिन मेरे अपनो के साथ होने से ही परफेक्ट हो जाता है। 


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आज के लिए.बस इतना ही
कल का अति विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।

13 टिप्‍पणियां:

  1. खोखे में लीटर भर दूध
    शाब्बाश..
    जानदार अंक
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात💕 💐
    बहुत ही शानदार
    लाज़वाब
    जानदार
    उम्दा प्रस्तुति
    आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. हे मनुष्य ! "जब से तुमने" ईश्वर के अस्तित्व को नकारना प्रारम्भ किया है तब से तुम्हारी अपनी नैतिकता पर प्रश्न उठने लगे हैं । क्यों कि "कहाँ आसान था" कि कोई ईश्वर को ही नकार दे । लेकिन "दूधिया सी चांदनी" में सैर करते हुए जब तुम "एक शहर से दूसरे शहर की दूरी एक लीटर" बताने की सोच सकते हो तो तुम ईश्वर को भी नकार सकते हो । तब न तुमको अपने कर्म की चिंता होगी न पाप पुण्य की । भले ही कह दो कि उम्र के साथ" एक परफेक्ट दिन" बदलता रहता है लेकिन ईश्वर विहीन संसार में तो हर दिन ही परफेक्ट लगेगा ।
    खैर ..... आज की रचनाएं पढ़ मेरा दिन तो परफेक्ट हो गया ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर सराहनीय अंक।
    हर रचना को पढ़ने का सुंदर अहसास रहा ।सराहनीय चयन श्वेता जी । विविधता से भरा अंक सजाने के लिए, आपके परिश्रम को नमन ।मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार ।बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐👏👏

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  5. वाह
    कमाल की भूमिका के साथ,खूबसूरत सूत्र संयोजन
    बधाई
    सभी रचनाएं बेहद सुंदर और पठनीय
    मेरी रचना को सम्मलित करने का आभार
    सादर

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  6. प्रिय श्वेता, अत्यन्त चितनपरक विषय पर महत्वपूर्ण भूमिका के साथ बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचनाओं के साथ एक उत्तम प्रस्तुति। ईश्वर की गूढ़ परिभाषाएं बहुत गढ़ी गई। किसी ने उसे सृष्टि का अदृश्य रचनाकार मान सृष्टा कह पुकारा। किसी ने उसे सर्वव्यापी मान कर उसे प्राणधारी में विद्यमान होने की कल्पना को मान्यता दी। पर, अमूमन एक आम इंसान के लिए ईश्वर संभवतः वो पैरालौकिक सम्बल है जो उसके अन्तःकरण की हर अच्छी - बुरी गतिविधि से वाकिफ है। उससेे उसका कुछ भी छिपा नहीं ,वह चाहे तो उससे अपने हृदय की हर बात बांट सकता है। इससे हर तरह के सटीक न्याय की आशा कर सकता है। अपने ढके-छिपे अपराधों के लिए क्षमा याचना कर सकता है! एक ऐसा वर्ग भी है जो ईश्वरीय सत्ता को सिरे से नकार कर प्रकृति को सच मानता है। समय-समय पर विरल चिंतकों ने ईश्वर की परिभाषा अपनीअपनी अनुभूतियों औरज्ञान के स्तर पर तय की। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने खुद को ईश्वर या परमब्रह्म घोषित किया तो कालांतर में जर्मन दार्शनिक नीत्शे ने बेबाकी से कहा"ईश्वर मर चुका है ''-- असल में आस्थाओं का धरातल पैरालौकिक तत्वों के आधार पर तय किया गया है,जहां तर्क की ओर से आँखें मूंद ली जाती हैं। खैर, नास्तिक लोग दुनियां में सदैव रहे हैं और आगे भी रहेंगे। ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देते हुए ईश्वर को अपना आत्मिक संबल मानने वाले भी सदा रहेंगे। हां, कालांतर में यदि ईश्वरविहीन समाज हुआ तो उस समाज के नैतिक मूल्यों की परिभाषा क्या होगी , ये समय ही बताएगा क्योंकि प्रायः ईश्वर के सटीक न्याय का भय ही इन्सान को इन्सान बनाए रखने में सहायक होता है। अच्छीभूमिका के लिए साधुवाद। और आज के सभी शामिल रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं। मेरी अदना सी रचना, वो भी तुम्हारे द्वारा चुनकर प्रकाशित कराई गई, को प्रस्तुति में जगह देने के लिए हार्दिक आभार 🌷🌷

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  7. एक प्रश्न अक्सर उठता है मन में कि ईश्वरविहीन संसार.........."
    संसार ईश्वर विहीन भले ही हो ना हो, पर उसमें आस्था विहीन लोग तो हैं ही, जी भी रहे हैं मजे में

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  8. प्रेम जो मनुष्य को साधारण से विशेष होने की अनुभूति कराता है-
    सारगर्भित भूमिका के साथ उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति...
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  9. अत्यंत सुंदर रचनाएँ। प्रिय श्वेता की पसंद हमारे लिए बेहतरीन पठनीय सामग्री की दावत हो गई। मैं भी एक परफेक्ट दिन का ताना बाना बुन रही हूँ क्यूँकि शनिवार को स्कूल से छुट्टी है छत्रपती शिवाजी जयंती की।

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