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सोमवार, 10 जनवरी 2022

3269 ...वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा

सादर अभिवादन
जब मेरे मंदिर में आवे।
सोते मुझको आन जगावे।।
पढ़त फिरत वह विरह के अच्छर।
ऐ सखि, साजन!ना सखि मच्छर।।
-अमीर खुसरो

अब रचनाएँ .....



भूख पर कविता लिखना
मुझे बेईमानी सा लगा हमेशा
नहीं देखा भूखे को कलम पकड़े
मेरे भोजन की फेहरिस्त
मस्तिष्क में सदा रही मौजूद
इसलिए मेरी अंतड़ियां
परिभाषित नहीं कर सकी भूख

अण्डमान अर्थात कालापानी

अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप
चित्रमय झलकियाँ
हमारी टीम

लाईट हाऊस


अंग्रेजो के कुछ निवास अब पर्यटन स्थल


अंग्रेजो के कुछ निवास



अंग्रेजो के कुछ निवास


करीब दो सौ साल पहले अंग्रेजों ने इसे भौगोलिक दृष्टि से उपयोगी पाते हुए इसे अपना मुख्यालय बनाया था।आज भी ब्रिटिश राज के बंगलों, चर्च, बॉलरूम, सैनिकों के रहने के लिए बनाई गए बैरक, कब्रिस्तान के खंडहर साम्राज्यवादी इतिहास के काले अध्याय के गवाह के तौर पर मौजूद हैं। पर समय, मौसम और वातावरण का असर इन पर साफ नजर आता है ! तेजी से बढ़ रहे जंगल, इन खंडहरों को अपने आगोश में ले रहे हैं ! यहां कोई रहता भी नहीं है, सिर्फ पर्यटकों की आवाजाही होती है।




ये सर्द कोई रात नही
ठिठुरने की कोई बात नहीं
पाले का भय नही
कल नही आज नही
अब शीत इस पर भला क्या कहेगा
वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा



मनुष्य का कर्म जो है, वह भूसे की तरह है। और मनुष्य का "होना'जो है, वह गेहूं की तरह है। अगर भीतर "होना' है तो कर्म बदल जायेगा। जैसा "होना' होगा, वैसा कर्म हो जायेगा। लेकिन बाहर से कर्म बदलता है तो वैसा "होना' नहीं बदल जाता।





बड़ा ही, संगदिल सा, ये काफिला,
अपनी ही धुन चला!

कोई रुख मोड़ दो, इस सफर का,
या छोड़ दो, ये काफिला,
पलकों तले, रुक ना जाए ये सफर,
खत्म हो सिलसिला!


आज बस इतना ही
सादर

3 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपका आभार🙏
    सादर... 🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. हर रचना पर गई, बहुत सुंदर सराहनीय अंक। हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं और बधाई 💐💐🙏🙏

    जवाब देंहटाएं

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