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रविवार, 9 जनवरी 2022

3268...ये न पूछा किस के घर चूल्हा जला, अरमां नहीं !

शीर्षक पंक्ति: प्रोफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल जी की रचना से 

सादर अभिवादन।

रविवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

सर्दी के मौसम में चुनावी सरगर्मियां

उसने रैली में फ़क़त, मज़हब-धरम की बात की,

ये पूछा किस के घर चूल्हा जला, अरमां नहीं !

चंद्रमणि छंद में कमल के पर्यायवाची


शतदल

शतदल शय्या पर शयन, शारद माँ शुक्लाम्बरा ।।

सुमिरन करिये रख विनय,रहता  विद्या घट भरा।।

बड़ी दिलकश तुम्हारी शायरी है


कमी   कुछ  आपसी   विश्वास   की  है,

अगर  बुनियाद  रिश्तों   की   हिली  है।

   जाने     ऊँट   बैठे    कौन   करवट,

दिये   की   फिर   हवाओं   से  ठनी  है।

जब वह औरत मरी थी

कमरे में झांकने से मिल गई थी

कुछ सुखी कलियां

जो फूल होने से बचाई गई थी

जैसे बसंत को रोक रही थी वो

कुछ डायरियों के पन्नों पर

नदी सूखी गई थी

जी रहा हूँ

कभी

उनसे भेंट होंगी

और तसल्ली के कुछ वक्त होंगे

उनसे पास

यही सोचकर

जी रहा हूँ

 

*****

आज बस यहीं तक

फिर मिलेंगे आगामी गुरुवार।

 

रवीन्द्र सिंह यादव

 

11 टिप्‍पणियां:

  1. कमी कुछ आपसी विश्वास की है,
    अगर बुनियाद रिश्तों की हिली है।
    सुन्दर अंक..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर संकलन मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही शानदार प्रस्तुति सभी अंग बहुत ही उम्दा वाला लाजवाब हैं🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर लिंक्स, सुंदर प्रस्तुति।
    सार्थक रचनाओं का सार्थक संकलन।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को पांच लिंक पर स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सार्थक, सराहनीय अंक ।बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय दीदी 💐🙏

    जवाब देंहटाएं

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