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सोमवार, 22 नवंबर 2021

3220 ..वह अपने मन के चक्रव्यूह को भेदने से खुश था

सादर अभिवादन
आज एक मार्मिक कहानी पढ़ी
इसके बारे में कुछ भी नहीं लिखूंगी
उम्मीद है कि आप मेरे लिखे का
अर्थ समझ गए होंगे
अवश्य पढ़िएगा...



मौसम गुलाबी था उन दिनों
जब तेरी याद के गुलाब खिलते थे
सर्दियों की आहट में
घुला होता था रंग  
सदियों पुराने तेरे इंतज़ार का




अक्सर कहा जाता कर्म प्रधान होता
कोई कहता भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता
मैं उलझा शब्दों की भूलभुलैया में
बाहर निकलने की राह न मिली |
भूलभुलैया में ऐसा उलझा
रहा उलझ कर जितनी बार यत्न किया
सर पटक कर रह गया
निकल न पाया भूलभुलैया से |


- सुधा देवरानी

छूटे टूटे रूठे रिश्ते को ही लो
दूरियाँ कब खाइयाँ बनती हैं
कि पटाये नहीं पटती
जोड़े नहीं जुड़ती
पहले सी फिर से......
कैसा तारतम्य है न
छूटे छूटता नहीं और टूटे जो
तो जुड़ता भी नहीं
पहले सा फिर से.....



उगते सूरज पळे आस-सी
ढलते दिन री लालिमा
मन पोळ्या रो दिवलो म्हारो
उजळी भोर हर कालिमा
जग सारे रो सुख वैभव दूँ
झोटा देवती पालणों।।



अनर्गल क्षत विक्षत करते धरा जो, स्वार्थ वश अपने,
उन्हीं के वंश पर चलती, प्रकृति की भी कुल्हाड़ी है ।

चमन में डाल पर बैठा उजाड़े घोसला जो खुद,
धरा भी फिर कहाँ उनके लिए आँचल पसारी है ।।

चलो माना प्रगति की राह में आती हैं ये मुश्किल,
मगर जो ठान ले कोई तो बाधा उससे हारी है ।




 इस बार मम्मी पापा को साथ आया देख कर उसकी
आँखों में चमक दिखाई दी ,
जो एक नयी आशा से भरी थीं ।
वह अपने मन के चक्रव्यूह को भेदने से खुश था ।

आज इतना ही
कल फिर आना ही है
सादर


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर चयन,सभी रचनाएँ लाज़बाब हैं।

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  2. अर्थपूर्ण,गहन रचनाओं का संकलन ।सभी सूत्रों पर गई ।बेहतरीन चयन, इसी के मध्य मेरी रचना का मान, आपको मेरा नाम और वंदन । बहुत बहुत आभार और शुभकामनाएं 💐💐🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा एव पठनीय लिंक संकलन बेहतरीन प्रस्तुति।
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार।
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन संकलन।
    मुझे स्थान देने हेतु दिल से आभार आदरणीय दी।
    सभी को बधाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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