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रविवार, 21 नवंबर 2021

3219 ...आज उल्लू दो बार बोला...यानी लक्ष्मी जी अपने क्लोन के साथ

सादर अभिवादन
सभी उत्सव शेष हो गए
फिर भी शेष तो हैं कुछ उत्सव
उन्हें तो मनाएंगे ही
पर उससे पहले रचनाएं भी पढ़ेंगे
...



और हुआ यूँ कि वो एक दिन मिला
तो घर की सफाई,
कपड़ों और सामान की धराई
बड़ी, पापड़ मसालों को धूप दिखाने
बाजार से राशन, सब्जी लाने उसे सहेजने
बल्ब बदलने
मेहमानों की मेजबानी में बीत गया
मीर का दीवान रखा मुस्कुराता रहा
और मैं अधूरे सपने से बाहर निकल
फिरकी सी नाचती रही दिन भर




तुम लड़ो! हर आवाज मिलनी चाहिए
किसी ओर के आवाज की कोई औकात नही
कदम मेरे अपने हैं कहीं रखूँ
हर किसी के लिए अब ये कोई सौगात नही।





लोकतंत्र में झुकना यानी जनगण का सम्मान।
नहीं सहेगा अकड़ कोई भी यह कुरसी ले जान।
जन मानस के साथ सभी को चलना होगा।
लोकतंत्र है आखिर, तुम को झुकना होगा।।



उतना  ही काला था तो लाना जुरूर क्या था?
सालभर आते-जाते, दिल्ली की सीमाओं पर
जिन्होंने दुर्गति झेली,
ऐ हुजूर, लगे हाथ यह भी बता देते,




चोरों और
जेबकतरों
का इतिहास
कोई नहीं
लिखता है
इतिहास
पढ़ने पढ़ाने
वाले चोर
और
उठाईगीर हों
ये जरूरी नहीं





सुधर जायें अब लोग
जो यूँ ही गधे को बदनाम किये जाते हैं
आदमी के कर्मों को कोई क्या कहे
क्यों अब तक नहीं शर्माते हैं

गधा है कहने की जगह अब
आदमी हो गया है
कहना शुरू क्यों नहीं हो जाते हैं
...
इति शुभम
सादर


5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    आपको मेरा सादर नमस्कार 🙏
    सुंदर सराहनीय तथा पठनीय अंक सजाने के लिए आपका हार्दिक आभार ।मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी रचनाओं पर जाना हुआ,एक से बढ़कर एक लिंक सजाए आपने । आपके श्रम को नमन 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात🙏🙏🙏
    बेहतरीन और पठनीय अंकों से सजी सुंदर प्रस्तुति!
    आभार🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं

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