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मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021

3172 ...सूनी पड़ी ये वादियां, सुना दो, आलाप वो ही!

सादर अभिवादन..
जाने वाला है श्राद्ध पक्ष
माता जी आ रही है
कोरोना काल में कुछ छूट मिल गई है

आज की रचनाएं कुछ यूँ है



नाव वहीं हो
गंगा-जमुना
मिली जहाँ हँसकर,
एक अजनबी
डरकर बाहों में
जकड़े कसकर,
नज़र झुकाए
कोई हँसकर
नीचे तकता हो ।




पल वो क्या, जो चंचल न हों,
प्रणय हों, पर अनुनय-विनय के पल न हों,
संग हो, पर ये कैसी तन्हाईयां,
खोए हो, तुम कहां!




अंतर के तनाव को
आत्मा के अभाव को
भावों का रूप बनाकर  
कविता रचती है !
मानो पंक में कमल उगाती  
जीवन में कुछ अर्थ भरती है !


ज्योति जी का ब्लॉग

स्नान करने का सही तरीका यह है कि सबसे पहले पानी पैरों के पंजो पर, फ़िर घुटनों और जांघों पर, फिर धीरे-धीरे पेट, कंधों और चेहरे से होते हुए अंत में सिर पर डालना चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया में एक मिनट भी नहीं लेगेगा। लेकिन इस प्रक्रिया से हमारे जीवन की रक्षा होती है और हम स्वस्थ्य रहते है।




पता नहीं क्यूँ, कार में बैठते ही मैथिली की यह कजरी झूम झूम के गाने का मन करने लगा, सीट पर बैठे बैठे थोड़ा सा नाच भी लेता हूँ, कोई देख नहीं रहा. अच्छा लग रहा है:

बदरा उमरी घुमरी घन गरजे
बूँदिया बरिसन लागे न.....

सादर 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत बहुत ही उम्दा प्रस्तुति सभी अंक बहुत ही बेहतरीन है

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को पाँच लिंकों का आनन्द में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर शानदार प्रस्तुति, आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा सादर नमन।

    जवाब देंहटाएं
  4. महालया की शुभकामनायें, देर से आनेके लिए खेद है, सुंदर पठनीय रचनाओं से सजे अंक में मुझे शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं

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