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रविवार, 26 सितंबर 2021

3163 ..हर पल भारी, है तेरे विरह की व्यथा

सादर अभिवादन..
संगीता दीदी दो महीने की छुट्टी पर हैं
सो मै ही आउँगी रवि, सोम और मंगल
परेशान हो जाएंगे आप....
अब रचनाओं की ओर चलें..



जो नेह के
छोटे-छोटे भँवर हैं
उसमें  
प्रवाहित कर दूँ
हमारे बीच के
अजनबीपन,औपचारिकता
की पोटलियों को।



आज संसार के करीब 65% देशों में मार्ग पर दाईं ओर से चलने का नियम है। यानी विश्व की ज्यादातर आबादी दाईं तरफ को प्रमुखता देती है और कुछ देश आज भी अपने बाएं हाथ की तरफ से चल कर अंग्रेजी परंपरा को जीवित रख रस्में निभाए जा रहे हैं ! वैसे इसे बदलना इतना आसान भी तो नहीं है !




हाथ इतने पास कि
स्वर्ग ज़मीं पे उतार दूँ
थाम लूँ, सँवार दूँ
ज़ुल्फ परत-परत निखार दूँ
एक पल में
उम्र सारी गुज़ार दूँ




हर पल भारी, है तेरे विरह की व्यथा,
भूल पाऊँ कैसे, तुमको सर्वथा?
हार चला, भले ही तुझको,
अन्तर्मन, तुझे ही पाया!




रात के खाने पर सभी इकट्ठा हुए। अंकल के दो भतीजे , उनकी पत्नियाँ , 3 बच्चे और हम दोनों से वो आँगन चहचहाने लगा। खाने में चूल्हे की रोटी। सिल बट्टे पर पिसी धनिया टमाटर की चटनी। बैंगन का भरता , दाल और रायता। राघव को बहुत आनंद आने लगा। खाने के बाद बड़ी सी ग्लास में गर्म दूध और घर के बने पेड़े ने स्वाद में चार चांद लगा दिए।
महफ़िल खत्म हो गयी । अंकल और राघव सामने वाले घर में चले गए।

आज बस

कल फिर  

6 टिप्‍पणियां:

  1. सभी अंक पढ़ कर बहुत ही अच्छा लगा बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर सराहनीय अंक की प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बधाई 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी दी।
    सुंदर प्रस्तुति।
    मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए अत्यंत आभार🙏स दर।

    जवाब देंहटाएं

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