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मंगलवार, 3 अगस्त 2021

3109 ...हिदायत को बस हिदायत समझा

सादर अभिवादन..
हिमांचल में मौसम भी ठीक है
बिजली भी अनवरत है
पर कुलदीप जी के ख्याल से उतर गया कि
आज प्रस्तुति लगानी है, कोई बात नहीं
आज की रचनाएँ कुछ यूँ है..

मौन भी काढ़ता कसीदा
आदतन विराजित
एक कोने में
संवादहीनता ओढ़े
दर्शाता हृदय की गूढ़ता को ।


व्यक्तिगत रुप से कहूँ तो आज मैं जो भी हूँ और जैसी भी हूँ ,उसके लिए मैं अपने सबसे बड़े गुरु "समय" को नमन करती हूँ कि बेशक़ मेरे जीवन में वह बहुत सारे झंझावात ले कर आया , परन्तु उसने कभी एक पल को भी मेरा हाथ और साथ नहीं छोड़ा ... 
और उन तमाम तूफ़ानों से निकाल भी लाया


कवि खुश होता है
कविता का सृजन कर के
होता है उसके प्रति समर्पित

क्या ईश्वर भी अब
खुश है अपनी कृति से
समर्पित है अपनी रचना को ?


काम लाखों पड़े हैं करने को
और दो दिन की ज़िंदगानी है
*
जब न आने की बात करते हो
जान जाने की बात करते हो

क्या तुम्हें हम भी याद आते हैं
भूल जाने की बात करते हो


आते जाते रहते ग़म सुबह-शाम
कभी न किसी को आफ़त समझा

जब भी किसी ने हिदायत दी
हिदायत को बस हिदायत समझा

आज बस
सिर्फ स्वयं को ही खोजना है…
बाकी तो तकरीबन सभी कुछ
गूगल पर मिल ही जाएगा
सादर





 

8 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत रचनाओं के साथ सजा यह अंक...। खूब बधाई सभी रचनाकारों को...।

    जवाब देंहटाएं
  2. सही नाम इस प्रकार से लिखें --
    भागीरथ कांकाणी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. भागीरथ भाई,
      सादर वन्दे
      भेजे में फिट हो गया
      अगली बार सही पढ़ेंगे आप
      सादर..

      हटाएं
  3. सुंदर रचनाओं से सजी सराहनीय प्रस्तुति दी।

    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति।
    मेरे सृजन को मंच पर स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय यशोदा दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर एवम पठनीय अंक,सभी रचनाएं शानदार ,बहुत शुभकामनाएं आपको आदरणीय दीदी।

    जवाब देंहटाएं

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