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रविवार, 6 जून 2021

3051 ..ख्वाहिशें होती हैं बहुत होती हैं

सादर वन्दे
एक लम्बे अंतराल के बाद
कोई नई खबर नहीं
आज कोई नया केस नहीं
शाब्बाश भारत
जीत गया...
...
अब रचनाएँ....

जिन्दगी के इस सफर में अकेला आज है,
बच्चों की तरह वो खुद से करता रहता संवाद है!
फिर भी अपने बच्चों की
खुशियों के लिए हर पल करता फरियाद है!
आखिर वो इक बाप है!


ख्वाहिशें होती हैं बहुत होती हैं
इधर से लेकर उधर तक होती हैं
उनमें से कुछ समेटना चाहता हूँ
तरतीब से लगाने में ख्वाहिशों को पूरी हो गयी जिंदगी
उधड़े हुऐ में से गिरी ख्वाहिशों को लपेटना चाहता हूँ


एक वस्त्र की चाहत थी यह,कि बनकर एक सुंदर चादर
नये विवाहित जोड़े की वो,बिछे मिलन की शयनसेज पर
पर बदकिस्मत था ,अर्थी में, मुर्दे के संग आज बंधा है
हरएक कपड़े के टुकड़े की होती किस्मत जुदा-जुदा है


वृक्ष हमें देते है जीवन , ये जीवन सफल बनाओ ।
तीरथ व्रत और यज्ञ के पहले ,एक एक वृक्ष लगाओ ।।

वृक्ष धरा के भूषण है , ये करते दूर प्रदूषण ।
वसुधा का श्रंगार करो तुम ,पहना पादप भूषण ।।

देते प्राण वायु जो तुम को , दूषित को हर लेते ।
अर्थ धर्म अरु काम मोक्ष , ये चार पदार्थ देते ।।


समय ने बनाया दास
हर सुविधा के साधन का
आदि हो गए है उन  सब के
जीना हुआ मुहाल उनके बिना |
एक दिन यदि  बिजली  चली जाए
हर काम अटक जाता है


आज बस
सादर

5 टिप्‍पणियां:

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