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बुधवार, 19 मई 2021

3033 ..क्‍यों कि‍ इनके द‍िमाग और कुप्रवृत्‍त‍ियों का ऑड‍िट तो नहीं कराया जा सकता।

सादर वन्दे
कई दिन फंसी पड़ी रही
विशाखापत्तनम मे
दो विद्यार्थी बीमार हो गए थे
वे ठीक हुए तो आई उन्हें लेकर
उन बच्चों का परिवार भी था
कोचिंग से तौबा कर ली अब...
सोचती हूँ जो हो रहा है क्या वो सच है
भगवान करे वह झूठ हो....
रचनाएँ..


विदेशों को वैक्‍सीन मुहैया कराने का सच
निश्‍च‍ित रूप से किसी अंधे व्‍यक्‍त‍ि को तो रास्‍ता दिखाया जा सकता है परंतु जो देखते हुए अंधा बनने का नाट‍क करे, उसे कौन दृष्‍ट‍ि दे। वैक्‍सीन को दूसरे देशों में भेजने पर किए जा रहे कांग्रेस व आप के दुष्‍प्रचार के पीछे भी यही बात है जबकि हकीकत यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के समझौते एवं कच्चे माल के एवज में वाणिज्यिक करार के तहत वैक्सीन देने की “बाध्यता” है।

भारत ने 7 पड़ोसी देशों बंगलादेश, नेपाल, श्रीलंका आदि को 78 लाख 50 हजार वैक्सीन अनुदान के तहत उपलब्ध कराया। इन आंख वाले अंधों को कौन समझाए क‍ि 2 लाख डोज संयुक्त राष्ट्र संघ के उस शांति बल के लिए सहायता स्वरूप दी गईं जिसमें 6600 तो भारतीय सैनिक ही हैं, अन्य देशों को दिए गए कुल वैक्सीन का यह करीब 16% है।

विदेशों को दिए गए 6 करोड़ 63 लाख वैक्सीन के डोज का करीब 84 प्रतिशत डोज वाणिज्यिक समझौते व लाइसेंसिंग करार के तहत उन देशों को दिया गया जिनसे हमें वैक्सीन तैयार करने के लिए कच्चा माल व लाइसेंस मिला है।

यूके को बड़ी मात्रा में वैक्सीन इसलिए देनी पड़ी क्योंकि सीरम इंस्टिट्यूट जिस कोविशिल्ड वैक्सीन का निर्माण कर रही है उसका लाइसेंस यूके के ‘ऑक्सफोर्ड एक्स्ट्रा जेनिका’ से प्राप्त हुआ है और “लाइसेंसिंग करार” के तहत उसे वैक्सीन का डोज देना जरूरी है।

इसके अलावा वाणिज्यिक समझौते के तहत सऊदी अरब को 12.5 प्रतिशत वैक्सीन देनी है क्योंकि जहां उससे पेट्रोलियम का आयात होता है वहीं बड़ी संख्या में वहां रह रहे भारतीयों को दो डोज मुफ्त वैक्सीन देने का उसने भारत से समझौता किया है।

इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन से हुए एक समझौते के तहत कुल निर्यात का 30 प्रतिशत वैक्सीन ‘को-वैक्स फैसिलिटी’ को दिया जाना है। 


काश कुछ ऐसा हो जाए
रात में अपार शान्ति रहे
चाहे दिन में व्यस्त  रहूँ
पर रात्रि को विश्राम करूं |  
आज की इस दुनिया में
है इतनी व्यस्तता कि
दिन दिन नहीं दिखता

अब नहीं है
सच और झूठ के बीच महीन रेखा
अब है चौड़ी खाई
जिसे नहीं फलांग सकेंगे हम
हमारे पांव हो चुके हैं बौने
हाथ कंधों से ऊपर उठते ही नहीं
गरदन झुक चुकी है
और दिमाग़ हो चला है विचारशून्य


हो वैरी का जैविक वार या प्रकृति हुई ख़फ़ा
कि तुले महाप्रलय पे धर्मराज कर रहे ज़फ़ा
विस्मित हैं सांसों के अकस्मात् थम जाने से
निरूपाय बेबस लोग उचित उपचार पाने से ।

जो किये कल के लिये संचय न काम आया
कांपते स्वजन भी छूने से ऐसी रूग्ण काया
कांधा भी ना मुनासिब बेसहारा सी मृत देह
थरथराती रूह औषधालयों पर भी है संदेह ।


कि चलो क्षितिज पार
मंज़िल है वहाँ
जहाँ दूर-दूर  सागर से
आसमां मिलता है।।

अब क्या  खौफ़... किसी का
हमने मौत से लड़कर
जीवन जीतना सीखा है।।

आशा महासाध्वी कदाचित् मां न मुञ्चति।


इति शुभम्

17 टिप्‍पणियां:

  1. आभार प्रिय दिबू..
    सेवा कार्य उत्तम कार्य
    सही सलामत आ गई
    अच्छा चयन..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |अच्छा चयन आज के अंक का |

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात...सभी लिंक अच्छे हैं। सभी अपना ध्यान रखियेगा क्योंकि ये समय अपनी सुरक्षा को सर्वोपरि रखने की सलाह दे रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  4. "पांच लिंकों का आनन्द" में मेरी कविता शामिल करने के लिए हार्दिक आभार दिव्या अग्रवाल जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा ! पंचलिंक हमें ऐसे ही गुथे रखें

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बहुत धन्‍यवाद द‍िव्‍या जी, मेरी ब्‍लॉगपोस्‍ट को अपने मंच पर साझा करने के ल‍िए

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जय श्री राधे..
      आपकी विवेचना ने
      मजबूर कर दिया
      मुद्दा टूलकिट बन रहा था
      सादर...

      हटाएं

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