शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन--
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विचारों के विशाल
सिंधु की लयबद्ध
लहरें मथती रहती है
अनवरत,
मंथन से प्राप्त
विष-अमृत के घटो का
विश्लेषण करता
जीवन नौका पर सवार
'उम्र'...
सीमाहीन मन
शापग्रस्त देह लिए...
नाव के पाल पर बैठे
अनजान पक्षी की
भाषा में उलझकर
अक़्सर भटक जाती है
मंजिल से
भूलकर यात्रा का उद्देश्य।
#श्वेता
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आइये आज की रचनाओं का आस्वादन करें
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जब किसी मासूम मन का विश्वास टूटता है,उस पीड़ा को सहना
आसान नहीं होता है सरल मन सहज स्वीकार नहीं कर पाता है सत्य। अत्यंत भावपूर्ण,मर्मस्पर्शी और मन को तरल करता जीवंत कथा-काव्य जिज्ञासा जी की लेखनी से -
बिछोह
चिड़िया ने रखी एक ख्वाहिश
गुड़िया से करी नन्हीं सी फरमाइश
थोड़ा बाहर निकालो न
बादल दिखाओ न
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प्रेम का रंग मन के कैनवास पर जीवन का सबसे
अनूठा चित्र उकेरता है।
प्रिय के लिए प्रतीक्षारत
संपूर्ण समर्पित भावों को
सहजता से अभिव्यक्त करती
ज्योति खरे सर की रचना-
मुझे मालूम है
प्रेम के वास्तविक रंगों से
परिचय करवाने
वह अजनबी जरूर आएगा
जब तक
इंतजार के खूबसूरत
दिनों में
खुद को संवार लेती हूं----
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स्त्रियां जीवनभर अपना सर्वस्व
अपनों के लिए लुटाती है
किंतु अभावों से जूझती, छोटी-छोटी जरूरतों के लिए मोहताज़,
किस प्रकार दयनीय जीवन जी जाती है, कहानी कुछ
भाग्यहीन स्त्रियों की,
विह्वल करती सुधा देवरानी जी
रचना में-
मन तोड़ पाई जोड़ , संचित करे जो आज
रोगन शिथिल तन , कुछ भी न सोहती
सेहत अनमोल धन, बूझि अब दुखी मन
मन्दमति जान अपन भाग अब कोसती।
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जीवन पथ की विपरीत परिस्थितियों और अबूझ पहेलियों को सहजता से स्वीकार करें तो यात्रा आसान हो जायेगी, यह भाव सरलता से अभिव्यक्त करती रेखा जोशी जी की रचना-
जीवन सफर
खुशी नहीं गम भी चलें संग संग
जीत नहीं, मिलती हार की ठोकरें भी
हो जाते हैं अपने भी पराये कभी
आंसुओं की होती है यहाँ बरसात भी
कंटीली राहों पर
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और चलते-चलते पढ़िये-
यह तेरा वह मेरा है, यह मोह-माया का फेरा है, सच को तुम भी समझो बाबू ,यह जीवन रैन-बसेरा है... जीवन के सबसे गूढ़ रहस्य का सार समझाती उर्मिला सिंह जी की रचना
प्राण पखेरू
मृग तृष्णा सदा छलती रही उम्र को
भटकती काया बांहों में आसमाँ भरने को
अनमोल जिन्दगी निरर्थक ही रही जगत में
अंत समय कर्मों की भरपाई करते रहगये।।
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आज के लिए इतना ही
कल पढ़ना न भूले प्रिय
विभा दी के द्वारा संकलित विशेष अंक।
#श्वेता
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंजीवन नौका पर सवार
'उम्र'...
सीमाहीन मन
शापग्रस्त देह लिए...
नाव के पाल पर बैठे
अनजान पक्षी की
भाषा में उलझकर
अक़्सर भटक जाती है
मंजिल से
भूलकर यात्रा का उद्देश्य।
सादर..
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजीवन नौका पार सवार उम्र पूरी उम्र विश्लेषण ही करती रहती है । जब तक अनंत यात्रा पर नहीं जाती ।गंतव्य न मालूम होते हुए भी बस चलना है और चलते जाना है और इसी क्रम में तुमने बहुत सुंदर लिंक्स का चयन किया है । प्रातः चहचहाट सुन भोर बन जाए तो बात ही क्या और फिर प्रेम के रंग बरस जाएँ, जीवन के लिए पाई पाई भी तो जोड़नी होती है न ,बस यही जीवन सफर है और ये सफर खत्म तो प्राण पखेरू बन उड़ जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंलीजिए सारे लिंक्स पढ़ आयी हूँ । सुंदर प्रस्तुति ।
चर्चा का आगाज़ बहुत प्रभावशाली है ।
सवार के लिए करता रहता पढा जाए ।।
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता जी इतने सुंदर अंक में आपने मेरी रचना को स्थान दिया बहुत बहुत शुक्रिया, सच निजी जीवन में अपने भावों को लोगों को समझाना बड़ा कठिन होता है, पर आप जैसे बुद्धिजीवी मित्र एक क्षण में समझ जाते हैं, सारे लिंक्स बहुत ही शानदार हैं आपको कोटि बधाईयां और हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता जी मेरी रचना को मंच पर रखने के लिए स्नेहिल धन्यवाद। सभी रचनाये एक से बढ़कर एक है।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ....
शानदार भूमिका के साथ सुंदर सूत्र संयोजन
जवाब देंहटाएंआपकी पैनी नजर को प्रणाम
सभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
प्रिय श्वेता, बहुत बहुत सुंदर भूमिका और लिंक संयोजन। उर्मिला दीदी की भावपूर्ण रचना मन को छूने वाली है। बाकी सभी ने भी बहुत अच्छा लिखा है। इतनी सुंदर प्रस्तुति पर प्रतिक्रियाओं की कमी देखकर बहुत दुःख हुआ। जिनकी रचनाएँ यहाँ लगाई गई है उन्हें मंच को नमन करने जरूर आना चाहिए। आखिर रचना बहुत बड़े पाठक वर्ग को जाती हैं इस मंच से। आज के शामिल सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं। और तुम्हें बहुत बहुत बधाई और प्यार। मैं भी बहुत देर से आई जिसका बहुत खेद है।
जवाब देंहटाएंलाजवाब श्रमसाध्य प्रस्तुति एवं बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया के साथ उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंशानदार अंक में मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद श्वेता जी!
सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।