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बुधवार, 21 अक्टूबर 2020

1921.. तेरी साजिश में कुछ कमी है अभी..

 

।। भोर वंदन ।।

"तेरी साजिश में कुछ कमी है अभी

मेरी बस्ती में रौशनी है अभी

चोट खाकर भी मुस्कुराता हूँ

अपना अंदाज़ तो वही है अभी"
हस्तीमल हस्ती
जिंदगी के भागदौड़ में कुछ, कुछ साजिशें तो चलतीं ही रहतीं हैं..इन्हीं साजिशों के बीच कुछ पल बिताइए चुनिंदा लिंकों पर..✍️
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स्वप्न मेरे..
हकीकत जो मेरी मुझको बता दे.

 नदी हूँ हद में रहना सीख लूंगी,
जुदा सागर से तू मुझको करा दे.

में गीली रेत का कच्चा घरोंदा,
कहो लहरों से अब मुझको मिटा दे.
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मेरे हिस्से की धूप..

शाखाएँ फैला

जोड़े रहता है

कुनबे को...

जेठ के ताप

भादों की वृष्टि

पूस के शीत को..
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अब खो गए वो जगमग तारे,

अंधेरी रातें बीती जिनके सहारे,

है भाग्य का जो चढ़ा दिवाकर,

डोलते- फिरते हैं भंवरे सारे..
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कबीरा खड़ा बाजार में..

दैनिक हिन्दुस्तान (१९ अक्टूबर अंक ),क्षमा शर्मा का आलेख संस्मरन और विज्ञान लेख के तमाम तत्व समोए हुए है।आज जब की चिकित्सा विज्ञान यह प्रमाणित कर चुका है ,जीवाणु का कमतर स्तर (low dose of bacteria wards off a bigger infection )हमारे शरीर तंत्र को बड़े संक्रमणों से बचाये रहता है। आपने लेख के अंत में चेताया भी है मिट्टी

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- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कभी पढ़ो एक स्त्री को
दुर्गा सप्तशती की तरह
तब एहसास होगा
एक स्त्री में
देवीत्व का।

कभी देखो एक स्त्री को
मंगलदीप में प्रदीप्त..
🔅

ब्लॉग अंदाज़े ग़ाफ़िल ... 

न यह पूछो के लग जाती है क्यूँकर आग पानी में
ये भी देखो करिश्में होते हैं क्या क्या जवानी में...
🔅
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

5 टिप्‍पणियां:

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