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मंगलवार, 29 सितंबर 2020

1901...आँखों के सामने चरमरा के टूटता अंतर्मन

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना से

सादर अभिनन्दन।
पिछले दो सप्ताह से हम भूल रहे थे
आज हम एकदम चौकस हैं कोई ग़लती नहीं।

प्रस्तुत हैं आज की रचनाएँ-

आदरणीया उर्मिला सिंह जी चिंतित हैं
और उनकी चिंता स्वाभाविक है-
मानवता आज खतरे में पड़ी है
प्रकृति अपने तेवर दिखा रही है
शोक संतप्त माँ भारती भी...
अपने नॉनिहालों को निहार रही है!

-*-*-

" बड़े जिद्दी ख़्वाब तेरे "... शैल सिंह 
दीदार की ख़्वाहिशों का भी है अजीब सा नशा
मिले फुर्सत कभी तो देख जाना आ कैसी दशा
क्या तेरी आँखों में मेरे ख़्वाब आ पूछते सवाल
तुम्हें भी हैं याद क्या वो शामें सलोनी कहकशाँ । 


मैंने सबकी राहों से,
हरदम बीना है काँटों को ।
मेरे पाँव हुए जब घायल
पीड़ा सहना है एकाकी !!! 


रात में
हिमनद का अदृश्य गहराई में विगलन, -
आँखों के सामने चरमरा के टूटता
अंतर्मन का दर्पण ! इन्हीं
टूट - फूट के मध्य
छुपा होता है
उद्भासित
रहस्य 



मन की वीणा बाज रही है
धर की दीवारें गूँज रहीं
मीठे मधुर संगीत से मन खुशी से डोले
है ऐसा क्या विशेष तुम्हारी सीरत में |
कुछ तो है तुममें ख़ास
मुझे तुम्हारी ओर खीच रहा है

आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे आगामी गुरुवार। 

#रवीन्द्र_सिंह_यादव  

9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन रचनाएँ पढ़वाई
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।हमारी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. मंत्रमुग्ध करती रचनाएँ व सुन्दर प्रस्तुति, मेरी रचना को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर अंक। मेरी रचना को पाँच लिंकों में शामिल करने हेतु पुनः पुनः धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. धन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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