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बुधवार, 30 सितंबर 2020

1902..नाचती एक उर्जा ही..

 ।।उषा स्वस्ति।।

आगे बढ़ो...
सूर्योदय रुका हुआ है!
सूरज को मुक्त करो ताकि संसार में प्रकाश हो,
देखो उसके रथ का चक्र कीचड़ में फँस गया है
आगे बढ़ो साथियो!
सूरज के लिए यह संभव नहीं कि वो अकेले उदित हो सके..!!
('सूरज का सातवां घोड़ा')
धर्मवीर भारती

-*-*-*-*-

सच में अकेले उदित होना असंभव ही है..
तो फिर साथ बढिए साधें लक्ष्य की ओर
और नज़र डालें चुनिंदा रचनाओं पर.. 

वर्ल्ड हार्ट डे पर - डॉ. शरद सिंह

खोल दें हम अपने दिल की डायरी।
फिर करें कुछ कच्ची-पक्की शायरी।

बोझ लें हम क्यूं भला, हर बात का
ज़िंदगी झिलमिल करें ज्यों फुलझरी।


कमल उपाध्याय की अफ़वाह...कट्टर सोच

मुम्बई के मोहम्मद अली रोड से नागपाड़ा जाने वाले रस्ते पर मोटर सवार लडको को पुलिस को गरियाते - निकलते हुए आप देख सकते है। इन मनचलो कि कौम बता कर मै पुरे कौम का नाम ख़राब नहीं कर सकता, क्योंकी इस तरह के लोग हर कौम में मिल जाते है। बेचारा ट्रैफिक पुलिस वाला सिटी बजा कर ट्रैफिक मोड़ने कि कोशिश तो करता है परन्तु गाली खाने के अलावा बेचारा कुछ नहीं कर पाता। 

एक किरण जो मेरी खिड़की से उतर आती हैं 
मेरी खिड़की से उतरती हैं
मेरे फर्श पर छा जाती हैं
एक किरण रोज़
मेरे अँधेरे खा जाती हैं....
आसमान जब बाहें फैलता हैं
घना बादल जब आँखे दिखता हैं


‘कौवा कान ले गया’ जैसा है किसान आंदोलन का सच
कुछ नासूर ऐसे होते हैं जो किसी एक व्यक्त‍ि नहीं बल्क‍ि पूरे समाज को अराजक स्थ‍िति में झोंक देते हैं, ऐसा ही एक नासूर है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र बचाने के नाम पर ''आंदोलन'' की बात करना, फि‍र चाहे इसके लिए कोई भी अराजक तरीका क्यों ना अपनाया जाये। हाल ही में किया जा रहा किसान आंदोलन इसी अराजकता और भ्रम की परिणीति है।

एक किरण ...
मेरी खिड़की से उतरती हैं
मेरे फर्श पर छा जाती हैं
एक किरण रोज़
मेरे अँधेरे खा जाती हैं....
आसमान जब बाहे फैलता हैं
घना बादल जब आँखे दिखता हैं

-*-*-*-

नाचती एक उर्जा ही ..
नित नवीन निपट अछूती
इक मनोहरी ज्योत्स्ना है,
सुन सको तो सुनो उसकी 

आहट ! यह न  कल्पना है !
गूँज कोई नाद अभिनव 
हर शिरा में बह रहा है,
वह अदेखा, जानता सब

-*-*-*-
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’...✍️

12 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरी..
    बगैर ताम-झाम के
    सुन्दर प्रस्तुति..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. हार्दिक आभार एवं धन्यवाद पम्मी सिंह तृप्ति जी🙏

    यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है कि मेरी ग़ज़ल को आपने ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शामिल किया है।
    पुनः आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी सामग्री रोचक एवं पठनीय है।

    जवाब देंहटाएं
  4. सूरज अकेला नहीं उदित हो सकता, वाकई समूह में एक शक्ति है, और आपकी टीम भी अनथक ले आती है हर रोज नई हलचल, आभार मुझे भी आज के अंक में शामिल करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत खूब...'सूरज अकेले नही उदित हो सकता'समूह में वाकई बहुत शक्ति होती है ।बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  6. घुटने जमा कर, सीना अड़ा कर
    उसके रथ को कीचड़ से उबारो!
    देखो, हम सब उसको सहारा दे रहे हैं
    क्योंकि हम सब
    सूरज के अंश हैं।... बहुत खूब कलेक्शन और वो भी हार्ट डे पर... वाह पम्मी जी

    जवाब देंहटाएं
  7. दिल दिवस पर दिलखुश प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. तृप्ति जी धन्यवाद।
    रचनाओ को प्रतुत करने का आपका अंदाज़ बहुत रोचक हैं।और कृतियाँ तो हमेशा की तरह अछि हैं ही।
    स्थान देने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर सार्थक भूमिका के साथ बेहतरीन लिंक्स। बहुत अच्छा अंक आदरणीया पम्मी जी।

    जवाब देंहटाएं

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