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शनिवार, 12 सितंबर 2020

1884... अस्तित्व

सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
एक विस्फोट के कारण सिमटा हर एक कण फैलता गया जिसके फलस्वरूप ब्रह्मांड की रचना हुई। अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत वक्त व्यतीत करने हेतु सह-अस्तित्व में संबंधों को पहचानने की बात होती है। मानव का मानव के साथ सम्बन्ध और मानव का मानवेत्तर प्रकृति के साथ सम्बन्ध - इन दो तरह से संबंधों को पहचान लेना आवश्यक हो जाता है....। वरना एक विस्फोट के लिए प्रतीक्षारत होता है...
अस्तित्ववाद
व्यक्तित्व की अतिशयता में हमको व्यक्ति के मन में छिपी हुई सामाजिकता भी दिखाई देती है. जैसे कि कवि अज्ञेय जी अपनी कविता नदी के द्वीप में इसी भाव की अभिव्यक्ति करते हैं कि वह समाज से दूर इसलिये रहना चाहते हैं कि कहीं उनका दूषित व्यक्तित्व सामाजिकता को, समाज की धारा को मलिन न कर दे-

किन्तु
हम हैं द्वीप
हम धारा नहीं हैं।
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किंतु हम बहते नहीं हैं
क्योंकि बहना रेत होना है।
रेत बनकर हम सलिल को गंदा ही करेंगे।
अनुपयोगी ही बनायेंगे।
अस्तित्व
समाई हुई स्थिति का मैंने अनुभव किया - घिरा हुआ है, डूबा हुआ है,
और भीगा हुआ है। इसको नाम दिया - 'सम्पृक्तता'।
पूर्णता के अर्थ में डूबा, भीगा, घिरा होना = सम्पृक्तता।
ऐसी स्थिति में मैंने पूरे संसार को देखा।
अस्तित्व
आई थी जब अकेली इस संसार में
कोई भी बंधन तुझसे नही जुडा था
बंध गई तू इन सांसारिक बंधनों से
कि तुझ पर झूठा आवरण एक पड़ा हुआ था ।
अस्तित्व
ब्राह्मण - हे भन्ते ! सत्य है । इससे ये ही प्रमाणित होता है कि आत्मा नही होती है । लेकिन आत्मा के बिना मनुष्य कोई भी कार्य नही कर सकता है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! सम्पूर्ण दुनिया में पदार्थ तीन अवस्थाओं में पाया जाता है । गैस , तरल और ठोस और इन सभी पदार्थों की संरचना परमाणु से होती है और पदार्थों की क्रियाओं के कारण से ही ऊर्जा उत्पन्न होती है ।
ब्राह्मण - हे भंते ! बराबर सत्य है ।
श्रमण - हे ब्राह्मण ! जीव – जन्तु और पेड़ – पौधे एक पानी के बुलबुले की तरह पैदा होते हैं और नष्ट हो जाते हैं |
विमर्श
लेखक एक हड़बड़ी में दिखता है और आरम्भ से ही दिखती यह हड़बड़ी उपन्यास को
उस रचनात्मक तनाव से वंचित रखती है जो इसे असुर जनजाति के साथ-साथ
व्यापक समाज की संवेदनशील व्यथा-कथा का रूप देने के लिए आवश्यक थी।
ग्लोबल गाँव के देवता की एक टेक है कि ‘मुख्यधारा पूरा निगल जाने में ही विश्वास करती है’
और इसने असुर समुदाय को ‘संस्कृतविहीन, भाषाविहीन, साहित्यविहीन, धर्मविहीन’ बना दिया है।

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भेंट होती रहेगी
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6 टिप्‍पणियां:

  1. अस्तित्व का बोध..
    जानदार अंक...
    सादर नमन..

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  2. जी प्रणाम दी,
    आपके द्वारा रचे गये अंक औपचारिक नहीं होते है आपकी रचनात्मक और अनुभव के मिश्रण से जो व्यापक
    गहन संदेश छुपे होते है उनमें वह अनमोल हैं।
    हमेशा की तरह एक से बढ़कर एक रचनाओं से सजी सबसे अलग प्रस्तुति दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!!अस्तित्व का बोध कराती हुई शानदार प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. आस्तित्व बोध कराती अप्रतिम प्रस्तुति आपकी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. अत्यंत सुंदर और सशक्त प्रस्तुति आज की। सदा की तरह पढ़ करन मयि प्रेरणाओं और संकल्प-शक्ति से भर गया।
    आप सबों को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं

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