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सोमवार, 7 सितंबर 2020

1879 ...बहुत बार लुढ़कते लुढ़कते भी कुछ नहीं सीख पाता हूँ

चमत्कार
आज सीधी सादी प्रस्तुति
कोई विषय नहीं
सद्य प्रकाशित रचनाओं के साथ
ब्लॉग लेखन का नया फार्मेट
सेटिंग और अलाइनमेंट मे विविधता दिखेगी
बहुत कुछ नया सम्मिलित किया है
विश्व की सारी भाषाएं, की-बोर्ड ले-आउट के साथ
इस नए संस्करण में लेखकों को आराम होगा
पर हम चर्चाकारों को थोड़ी सी सावधानी रखनी होगी

डर के आगे जीत है - Dar Ke Aage Jeet Hai Motivational Article in Hindi
चक्रवात उठे या तूफान डर के जीना क्या
हमें संघर्षों की आदत है संघर्षों की बात कर।

तिमिर आच्छादित हो भले ही गगन में
अवसान इसका भी होगा इंतज़ार की बात कर।


चाँद को तकती रही मैं तो रात भर।
बदली की हिफाजत रह गयी अधूरी।।

गरज उठे जो बादल जमीं के लिये।
मौसम की हिदायत रह गयी अधूरी।।


मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त की जीवनी Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi
तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,
कैसे भीतर जाऊं मैं?


बारिश अब जा चुकी है सीमान्त
पार, किसी के जाने के बाद
ही उसकी कमी महसूस
होती है,चाहे पलकों
में हों या हवाओं
में उड़ती
हुई
अदृश्य बूंदें, कुछ न कुछ नमी - -


उसके बाद सारा संसार. 
क्या समझा है कभी कि प्यार है क्या? 
क्या जाना है कभी कि प्यार कहते किसे हैं? 
क्या प्यार का नाम स्त्री-पुरुष से जुड़ा हुआ ही है? 
क्यों प्यार का सन्दर्भ 
दो विषमलिंगियों के विवाह से लगाया जाता है?



'उलूक'
बहुत से अच्छे भले लोग 
जो हमेशा हमारे लोटा हो जाने पर आँख दिखा रहे थे 
इन लुढ़कते हुऎ लोटों के बीच में कब लोटे हो जा रहे थे 

उनकी सोच भी लोटा सोच है करके
जबकि कहीं नहीं दिखाना चाह रहे थे 


5 टिप्‍पणियां:

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