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सोमवार, 17 अगस्त 2020

1858..हम-क़दम का एक सौ इकतीसवां अंक ....बादल

स्नेहिल अभिवादन
सोमवारीय विशेषांक में स्वागत है
बादल
वायुमण्डल में मौज़ूद जलवाष्प के संघनन से बने जलकणों या हिमकणों की दृश्यमान राशि बादल कहलाती है। मौसम विज्ञान में बादल को उस जल अथवा अन्य रासायनिक तत्वों के मिश्रित द्रव्यमान के रूप में परिभाषित किया जाता है जो द्रव रूप में बूंदों अथवा ठोस रवों के रूप में किसी ब्रह्माण्डीय पिण्ड के वायुमण्डल में दृश्यमान हो।बादल वर्षण (वर्षा और हिमपात इत्यादि) का प्रमुख स्रोत होते हैं।


बादल आँखों में भी होते हैं
जो जहां-तहाँ
जब-तब
कहीं भी बरस जाते हैं
एक गीत सुनवाते हैं
मेरे नैंना सावन-भादो...फिर भा मेरा मन प्यासा

अब आगे बढ़ें
प्रारम्भ पूर्व प्रतिष्ठित रचनाओं से..


स्मृतिशेष माखनलाल चतुर्वेदी
"मधुर ! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं
और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।
गरज में पुरुषार्थ उठता, बरस में करुणा उतरती
उग उठी हरीतिमा क्षण-क्षण नया शृंगार करती
बूँद-बूँद मचल उठी हैं, कृषक-बाल लुभा रहे हैं।।

बादल ..मीनाक्षी

इंद्रधनुष से  सब रंग  चुरा कर
स्वर्ण किरणों के रंग मिलाकर
बादल की चादर ओढ़ के सोए
चंदा तारे अपने अंग लगाकर।

शीतलता से  भरी हुई है यह
अमृत रस की ज्यों  हो खान
ठंडक पा लेने  को सूरज भी
कभी-कभी इसे लेता है तान।

हक़ दो ...केदारनाथ सिंह
नए फूलों के लिए!
गंध को हक़ दो वह उड़े, बहे, घिरे, झरे, मिट जाए,
नई गंध के लिए!
बादल को हक़ दो-- वह हर नन्हे पौधे को छाँह दे, दुलारे,
फिर रेशे-रेशे में हल्की सुरधनु की पत्तियाँ लगा दे,
फिर कहीं भी, कहीं भी, गिरे, बरसे, घहरे, टूटे-

श्रमिक ..... रांगेय राधव
वे लौट रहे
काले बादल
अंधियाले से भरियाल बादल
यमुना की लहरों मर कुल-कुल
सुनते-से लौट चले बादल

'हम शस्य उगाने आए थे
छाया करते नीले-नीले
झुक झूम-झूम हम चूम उठे
पृथ्वी के गालों को गीले





कुछ पूर्व प्रकाशित रचनाएं ब्लॉग जगत की
शंकाकुल मन

है वो भोर की किरण, या मन का प्रस्फुटन!
वो गूंज है कोयल की, या अपनी ही धड़कन!
चलती है पवन या तेज है सांसों का घन!
यूँ बादलों को, निहारते ये नयन,
दिन में जागते से, ये सपन,
घबराए क्यूँ ना,

ये मन!

याद तुझको किया

जब ताकती हो, शून्य को, मेरी आँखें,
रुक सी गई हों, ये मेरी, चंचल सी पलकें,
ठहरा वहीं हो, बादल गगन पे,
तो, समझना, वो तुम हो,

और, याद तुझको, मैंने किया है!


एक टुकड़ा

अनभिज्ञ, था मैं कितना,
कब, ठहरा है बादल! कब, ठहरा है पल!
दरिया है, बहता है, कल-कल,
निर्बाध! निरंतर...

होता, आँखों से ओझल!

बेज़ुबान पंछी

सेवते अण्डे,
घटाटोप बादल,
सोचते पंछी!

दुष्ट प्रवृत्ति,
निर्दयी बहेलिया,

सहमी जान!
....
अब प्रस्तुत है नियमित रचनाएँ

आदरणीय आशा सक्सेना
बादल

इधर उधर से आए बादल
आसमान में छाए बादल
आसमां हुआ स्याह
घन घोर घटाएं छाई  है | 
जब बदरा हुए इकट्ठे
गरजे तरजे टकराए आपस में 
टकराने से हुआ  शोर जबरदस्त 
विद्द्युत कौंधी  रौशनी फैली गगन में |


आदरणीय अनीता सैनी
बादल का एक टुकड़ा

मरुस्थल की अँजुरी में बैठी थी 
गुमान का ओढ़े गुबार नागफनी। 
संघर्ष से जूझती स्वयंसिद्धा बन पनपी 
जिजीविषा का उदाहरण थी नागफनी।

बादल का एक टुकड़ा रोज़ साँझ ढले 
मरुस्थल को लाँघता हुआ गुज़रता।
कभी कपास से नहाया हुआ-सा 
कभी स्याह काला कर्तव्यबोध दर्शाता।


आदरणीय सुजाता प्रिय
बादल की शोभा
घने बादल की शोभा अपार देखो।
सारे  नभ में है छाई  बहार  देखो।

धूमकेतु - से काले - काले बादल।
लगे तरुणी के आँखों का काजल।
कर लिया है  सोलह शृंगार देखो ।
सारे नभ  में है छाई  बहार देखो।


आदरणीय साधना वैद
घटायें सावन की

घटायें सावन की
सिर धुनती हैं
सिसकती हैं
बिलखती हैं
तरसती हैं
बरसती हैं
रो धो कर
खामोश हो जाती हैं
अपने आँसुओं की नमी से
धरा को सींच जाती हैं
आज बस..
कल मिलिए भाई रवीन्द्र जी से
132 वें विषय के साथ
सादर















10 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर और सराहनीय प्रस्तुति।सभी रचनाएँ सुंदर।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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  2. सस्नेहाशीष संग असीम शुभकामनाएं छोटी बहना

    सराहनीय प्रस्तुति

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  3. व्वाहहहह..
    बेहतरीन संदर्भ अंक
    शुभकामनाएँ..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तूति, यशोदा दी।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का संकलन ! मेरी रचना को भी इसमें स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  6. सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ! सभी सुरक्षित रहें, प्रसन्न रहें

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  7. सुंदर भूमिका बादल विषय पर शानदार सृजन सभी रचनाकारों की ।
    सुंदर प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति।मुझे स्थान देने हेतु सादर आभार।

    जवाब देंहटाएं

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