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रविवार, 16 अगस्त 2020

1857...सिसकी भरते सावन का

रविवारीय अंक में
आप सभी का
स्नेहिल अभिवादन।
आज का अंक कुलदीप जी
की अनुपस्थिति में यशोदा दी के
सहयोग से -
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विलक्षण कवयित्री
सुभद्रा कुमारी चौहान
के जन्मदिन के
अवसर पर उनकी
कुछ रचनाएँ
ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग
कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के
पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली
की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है।

ठुकरा दो या प्यार करो

मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ

चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो

तुम
नहीं लांछना की लपटें
प्रिय तुम तक जाने पाएँगीं।
पीड़ित करने तुम्हें
वेदनाएं न वहाँ आएँगीं॥

अपने उच्छ्वासों से मिश्रित
कर आँसू की बूँद।
शीतल कर दूँगी तुम प्रियतम
सोना आँखें मूँद॥

पानी और धूप
क्‍या अब तक तलवार चलाना
माँ वे सीख नहीं पाए
इसीलिए क्‍या आज सीखने
आसमान पर हैं आए।

एक बार भी माँ यदि मुझको
बिजली के घर जाने दो
उसके बच्‍चों को तलवार
चलाना सिखला आने दो।

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कवि अटल बिहारी वाजपेयी जी की
द्वितीय पुण्यतिथि  है।
सादर समर्पित उनकी
तीन कविताएँ

एक बरस बीत गया
झुलासाता जेठ मास
शरद चाँदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया


हरी-हरी दूब पर
सूर्य एक सत्य है
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?

झुक नहीं सकते

दीप निष्ठा का लिये निष्कंप
वज्र टूटे या उठे भूकंप
यह बराबर का नहीं है युद्ध
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज


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नुसरत फतह अली खान सूफी शैली के प्रसिद्ध कव्वाल थे।  इनके गायन ने कव्वाली को पाकिस्तान से आगे बढ़कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।कव्वालों के घराने में 13 अक्टूबर 1948 को पंजाब के फैसलाबाद में जन्मे नुसरत फतह अली को उनके पिता उस्ताद फतह अली खां साहब जो स्वयं बहुत मशहूर और मार्रुफ़ कव्वाल थे, ने अपने बेटे को इस क्षेत्र में आने से रोका था और खानदान की 600 सालों से चली आ रही परम्परा को तोड़ना चाहा था पर खुदा को कुछ और ही मंजूर था, लगता था जैसे खुदा ने इस खानदान पर 600 सालों की मेहरबानियों का सिला दिया हो, पिता को मानना पड़ा कि नुसरत की आवाज़ उस परवरदिगार का दिया तोहफा ही है और वो फिर नुसरत को रोक नहीं पाए
आज इनकी पुण्यतिथि है.. प्रस्तुति है एक गायन

याद तोहारी मोरा मन तड़पाए, सारी रैना नींद ना आए
बिरहा की मारी देखूँ राह तिहारी, दो नैनों के दीप जलाए
जलूँ तेरे प्यार में, करूँ इंतज़ार तेरा
किसी से कहा जाए ना, सांवरे तेरे बिन जिया जाए ना


अब बस
कैसा लगा आज का अंक
बताइएगा अवश्य
हम दोनों
प्रतीक्षारत हैं
सादर

7 टिप्‍पणियां:

  1. एक छोटा सा प्रयास..
    आपको अवश्य पसंद आएगा..
    एक ही पगडण्डी पर लड़खड़ाए बगैर तो
    कोई भी चल लेता है..
    अलग राह पर चलने की चाह थी..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. विलक्षण कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के जन्मदिन के अवसर और कवि अटल बिहारी वाजपेयी जी की
    द्वितीय पुण्यतिथि पर दोनों को नमन...

    सराहनीय प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन...
    श्रद्धा सुमन...
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीया मैम,
    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आप दोनों के द्वारा। आज सुबह की बहुत प्यारी शुरुवात हुई इसे पढ़ कर।
    मन नई प्रेरणाओं और सद्विचारों से भर गया।
    साहित्य जगत के दोनों महान आत्माओं को शत शत नमन और वंदन व आप सबों को सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  5. लाज़बाब प्रस्तुति आप दोनों के द्वारा ।

    जवाब देंहटाएं

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