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रविवार, 2 अगस्त 2020

1843 ..जब तक करोना से मुक्ति नहीं पा लेते...... तब तक सकून नहीं है......


जय मां हाटेशवरी.......
कल ईद थी....
कल रक्षाबंधन है.....
5 अगस्त को......
अयोध्या में श्री राम मंदिर का शुभारंभ......
पावन श्रावण भी बीत ही  गया......
जब तक करोना से मुक्ति नहीं पा लेते......
तब तक  सकून नहीं है......
पेश है....मेरी पसंद.....


चल सकूँ पीछे जिसके ..
कर सकूँ अनुसरण जिसका । 
ना -ना ये समाज के ठेकेदार 
जो करते सदा मनमानी 
चूसते लहू गरीबों का 
या कोई नेता -अभिनेता 
ना कोई बडा-बुजुर्ग 
जिसने घर की ,समाज की  नारी को 
दिया हो दर्जा बराबरी का ..।

मशहूर शायर मुनव्वर राना के मुताबिक देश की मौजूदा हालात में मुंशी प्रेमचंद के किरदारों को लौटने में पचास साल से अधिक लग जाएंगे, देश का माहौल नफ़रत से भरा हुआ बना दिया गया है। ऐसे में वे पात्र फिर से नहीं लौटने वाले। प्रेमचंद के गरीब, मजदूर, लाचार पात्र भी उनकी कहानियों में बादशाह की तरह मुख्य किरदार में
होते थे, जिनका आज के समाज में लौटना लगभग नामुमकिन है। फिल्म संवाद लेखक संजय मासूम ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियां और उनके सारे पात्र आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे अपने रचना समय में थे। वक़्त बदलने के साथ बदलाव तो बहुत हुए हैं, लेकिन जो ज़मीनी लेवल पर हर क्षेत्र में बदलाव होना चाहिए, वो नहीं हुआ है। किसानों की हालत बहुत ज्यादा वैसी है, मजदूरों की भी वैसी ही है। गांव         में आप चले जाइए, तो जो व्यवस्थाएं हैं, जाति को लेकर, रुतबे को लेकर, वो ऑलमोस्ट लगभग वैसी ही हैं। कहने को तो कागज़ों पर काफी कुछ हुआ है, लेकिन स्थितियां कुल मिलाकर वैसी ही हैं। तो मुझे लगता है कि प्रेमचंद के सारे पात्र आज भी बहुत प्रासंगिक हैं।


शायद मेरी कविता 
चाय पी-पीकर ऊब गई है,
लगता है,अब चाय नहीं,
कुछ और चाहिए उसे.


''तो सुनो, तुम लोग अपनी मम्मी को नहीं सताओगे। छोटे-छोटे कामों में मम्मी की मदद करोगे। जैसे कि खाना टेबल पर लगाना, पानी की बोतले भर कर फ्रिज में रखना, सुबह सो कर उठने के बाद खुद की चद्दर तह करके रखना, अपने खुद के काम समय पर करना, स्कूल का होमवर्क समय से पूरा करना आदि। उससे उसे थोड़ा सा आराम मिलने से थकान कम आयेंगी तो उसे थोड़ी सी ही सही खुशी मिलेगी। तुम्हारी मम्मी तुम सबकी पसंद-नापसंद का ख्याल रखती है न, तो तुम लोगों को भी मम्मी की पसंद-नापसंद का ख्याल रखना होगा।''
इसलिए वर्धा से आने के बाद से हम दोनों भाई-बहन मामाजी से किए वादे के अनुसार बिना आपको तंग किए अपने-अपने काम खुशी से कर रहे है ताकि आपको हमारे छोटे-छोटे कामों के लिए परेशान न होना पड़े और आपको खुशी मिले।'' 


 अब तक मार चौतरफा हो चुकी है ! बुरी तरह घिरे आम इंसान को बाहर बिमारी और भीतर बेरोजगारी पीसे जा रही है ! बिमारी तो एक तरफ उस पर होने वाले खर्च से वह और भी ज्यादा भयभीत व आतंकित है ! घर से ना निकलने पर उसके सामने भुखमरी का संकट मुंह बाए आ खड़ा हुआ है ! पर घर से निकलते ही कोई रोजगार मिल जाएगा, इसकी भी कहां कोई गारंटी है ! विडंबना हर बार की तरह यही है कि इस अभूतपूर्व संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला, इस बार भी वही मध्यम वर्ग है,

प्रेम जो प्रेमी को खाता है
उसके कपड़ों की क्रीज़, परफ़्यूम की महक, हेयर कलर और गॉगल्स के पीछे मुस्कराता चेहरा आजकल सभी की निगाह में है. ग्रेजुएशन की पढ़ाई एक ओर हो गयी, अपाचे तो ख़ुद ब ख़ुद डिस्को, होटल और लांग ड्राइव के लिए मुड़ जाती है. उस रोज बारिश ज़ोरों पर थी फिर भी अपाचे स्टार्ट कर वो वेट कर रहा था. लोमबर्गिनी से उतरती अपनी माशूका को देखकर उसकी आँखों का रंग अचानक बदल गया. अगले दिन शहर के अखबारों में सुर्खियां टहलती रहीं--ईर्ष्या की जलन किसी के चेहरे पर तेजाब बन बही.

आप सभी को पावन रक्षाबंधन की अग्रिम शुभकामनाएं......
धन्यवाद।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति..
    सभी पहलुओं को छुआ आपने..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. कोरोना जाने में कई वर्ष लगेंगे अत: बस स्वयं को सुरक्षित रखने की कोशिश करते रहना है
    सराहनीय प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!खूबसूरत प्रस्तुति कुलदीप जी । मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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