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शनिवार, 1 अगस्त 2020

1842.. बकरीद मुबारक

‘दिल की गहराइयों से निकली हुई इस दुआ के साथ। खुदा आपकी और आपके सब चाहने वालों की जिदंगी को खुशियों, रहमतों और कामयाबी से भर दे।
             'बकरा ईद', जिसे 'ईद-अल-अधा' के रूप में जाना जाता है। इसे बलिदान का त्योहार भी कहा जाता है। 'बकरा ईद' मुसलमानों का दूसरा सबसे बड़ा त्यौहार हैं। सभी मुस्लिम हर्षोल्लास से बकरीद मनाते हैं। नए कपड़े पहनते है, ईद की नमाज पढ़ते हैं। उसके बाद, एक-दुसरे को गले लगाकर मुबारकबाद देते हैं। लेकिन इस बार तो....

मन करें जब आप रिफिल बदल सकते हो
लेकिन मैं पेन हूं 3 रुपए वाला
जिसमें ऐसी कोई ख़ासियत तो नहीं
इक कमी है मगर

और घायल हो गये थे जब जवाँ सपने हमारे
तुम कफ़न लेकर बढ़े थे और हम लेकर अंगारे ।
कौन है त्योहार जो हमने मनाया हो न मिलकर
साथ ही सोकर जगे हम , साथ ही हम को मिले पर ।
हाथ पर हाथ धर कर
बैठे रहने को बिलकुल असहाय
मानो मिट्टी में मिलना
एक प्रक्रिया भर है।
मूकदर्शक हैं सभी..

चाँद का मुँह टेढ़ा है
बरगद को किंतु सब
पता था इतिहास,
कोलतारी सड़क पर खड़े हुए सर्वोच्च
गांधी के पुतले पर
बैठे हुए आँखों के दो चक्र
यानी कि घुग्घू एक -
तिलक के पुतले पर
बैठे हुए घुग्घू से
बातचीत करते हुए

तितलियाँ
प्लास्टिक पेंट चढ़ी दीवारों
पर
एक फुट के घेरे में
पांच-छह तितलियां बैठी हैं
वहीं एक मोटी सफेद छिपकली
लटकी है दीवार से

उनकी ओर से मुंह फेरे


कोई इतना चाहे हमें तो बताना,
कोई तुम्हारी फ़िक्र करे तो बताना,
ईद मुबारक हो हर कोई कह लेगा,
कोई हमारे अंदाज में कहे तो बताना।
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पुन: मिलेंगे
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हम-क़दम का अगला विषय है-
'पद-चिह्न' 

          इस विषय पर आप अपनी किसी भी विधा की रचना कॉन्टैक्ट फ़ॉर्म के ज़रिये
आज शनिवार शाम तक हमें भेज सकते हैं। 
 चयनित रचनाएँ हम-क़दम के 129 वें अंक में आगामी सोमवार को प्रकाशित की जाएँगीं।
उदाहरणस्वरुप महान कवयित्री महादेवी देवी वर्मा जी की कालजयी रचना-

मैं नीर भरी दुख की बदली 
महादेवी वर्मा

3 टिप्‍पणियां:

  1. सदाबहार प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ..
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. सदा की तरह अति सुंदर प्रस्तुति। सब की सब रचनाएँ बहुत सुंदर एयर भावपूर्ण थीं, साथ ही साथ देश की एकता का सुंदर संदेश।
    आप सबों को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं

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