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शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

1834 ..मैंने इस बार ईश्वर को तड़पते देखा

शुक्रवारीय प्रस्तुति में
आप सभी का
स्नेहिल अभिवादन।
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 व्यक्तिगत बुद्धिमत्ता के प्रदर्शन का प्रचलन।
गतिशील परिदृश्यों में अनवरत प्रश्नों का तरन ।

स्पंदित विचारों का स्थान घेरती मृत शब्दावली,
महत्वकांक्षी रिसाव, बौद्धिक क्षुद्रता का वरण।

बाज़ार लगा रखा है हमने भीतर से बाहर तक,
ज्ञान की प्याली में उफ़ान या विवेक का क्षरण?

#श्वेता


आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं- 

आज मौसम का रूख़ जब उसे समझ आया

हाँ! मौसम की ये फितरत
ना समझ पाती थी....
उसकी खुशियों के खातिर
कुछ भी कर जाती थी
उसकी गर्मी और सर्दी में
खुद को उलझाया....
आज मौसम का रुख
जब उसे समझ आया.....

My Photo 
मैं यहीं हूँ
कहाँ जाऊँगा, 
एक प्रेमपत्र हूँ 
उड़ता हुआ सा
आँधियों में, 
ग़र बारिश हुई 
यहीं गिरकर
भींग जाऊँगा... 


हर देहरी पर विराजमान हैं,
मैंने इस बार ईश्वर को तड़पते देखा,
सड़कों, पुलों और अंधेरी कोठरियों की पनाह लिए,
भूखे बच्चों और गर्भवती स्त्रियों के कोटरों में,
ईश्वर मरता रहा ;

वह पूनम का चाँद ही तो है खिला-खिला
वही अपना है जंगल में जैसे
कोई बिछड़ा मीत मिला
जानना नहीं है उसे
अज्ञेय है वह
पाना भी नहीं है
कभी खोया ही नहीं वह
जागना है



गदराई अमिया को देख कर खीझती थीं
ये तोते चोंच मार कर सारी अमिया
ऊपर पेड़ पर ही खराब कर देते हैं  
ये नहीं कि दो चार नीचे भी गिरा दें !
फिर मैं कभी गुलेल से ,कभी पत्थर से
तो कभी पेड़ पर चढ़ कर तुम्हारे लिए
झोली भर अमिया तोड़ दिया करता था !

और चलते-चलते पढ़िये
एक पुस्तक को सूक्ष्मता से आत्मसात कर लिखी गयी 
सहज,सरल,पाठकों से संवाद स्थापित करती
 विश्लेषणात्मक
 समीक्षा

उपन्यास की सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस की रचना लेखिका- कविता सिंह और लेखक- सौरभ दीक्षित "मानस" ने मिल कर किया है। चूँकि एक लेखक हैं और दूसरी लेखिका, तो ऐसे में मेरे अनुसार (हो सकता है मैं गलत भी होऊं) इनको "लेखकद्वय" कहना सही नहीं होगा; क्योंकि यहाँ संपादक (हिन्दी व्याकरण में सम्पादिका शब्द व्यवहार में नहीं लाते हैं) शब्द वाली मजबूरी नहीं है। तो ऐसे में "लेखनद्वय" शब्द का प्रयोग करना यथोचित होगा .. शायद ...।
.... 
सुनिये
शिवकुमार बटावली की नफ़ासत


हम-क़दम का एक सौ अट्ठाइसवाँ विषय
कल का अंक पढ़ना न भूले कल 
आ रही हैं विभा दीदी
विशेेेष प्रस्तुति के साथ।

13 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्तियाँ..
    आभार व शुभकामनाएँ
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर लिंक संयोजन, यू ट्यूब के गीत ने आज का दिन बना दिया..शानदार प्रस्तुति
    मुझे स्थान देने के लिए आभार..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. व्यस्त समय से
    समय चुराकर प्रस्तुति बनाना
    एक युद्ध जीतना कहलाता है..
    बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर प्रस्तुतिकरण के साथ उम्दा लिंक्स।

    जवाब देंहटाएं
  5. सराहनीय रचनाओं की खबर देते सूत्र ! आभार मुझे भी शामिल करने के लिए ! बहुत सुंदर गीत

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!श्वेता ,खूबसूरत प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर प्रस्तुति प्रिय श्वेता। भूमिका में प्रश्न, बुद्धिमता का प्रदर्शन ज्ञान के प्याले में उफान के साथ विवेक का क्षरन भी है क्योकि जब शब्दों में पिरोई गई प्रतिबद्धता जब हकीकत में नज़र नहीं आती तो ये बुद्धिमता मात्र शब्दाडंबर ही नज़र आती है। जब ज्ञान का अहंकार हो तो विवेक का क्षरण स्वतः ही हो जाता है। सुंदर रचनाओं के साथ पंजाबी काव्य शिरोमणि शिव कुमार जी का वीडियो देखकर मन आह्लादित हुआ। ये वीडियो उनकी मौत से कुछ समय पहले का ही है। उनके बारे में कुछ बातें और बताना चाहूँगी।

    पंजाबी के कालातीत कवि शिव कुमार बटालवी का जन्म दिवस कल थाउनकी स्मृति को कोटि नमन 🙏🙏🙏, जिसने हिंदी में ना गाकर भी भारत के कवि के रूप में अमरत्व प्राप्त किया | जिसके गीत पंजाब के गली- गली कुंचें- कूंचे में लोक गीतों की तरह गूँजें| समय की धूल जिसकी स्मृतियों को धुंधला ना कर सकी और उसके सृजन के नूतन , नवल बिम्ब विधान - सी अमर -गाथा कोई अन्य कवि कभी ना दोहरा पाया |एक आंचलिक कवि जिसका ये साक्षात्कार 1973 में बी बी सी हिंदी सेवा लंदन द्वारा , बड़े गर्व से फिल्माया गया | जिसकी लोकप्रियता को कोई सीमा ना बांध सकी | प्रेम की पीर पगे उनके गीत हर सुनने वाले के मन को झझकोर गये और कभी विस्मृत ना हो सके |
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    जिसने पहली बार जो लिखा अमर लिखा --
    ऐसी रुत क्यों आये मेरे राम जी ?
    जब बागों के फूल मुरझाये मेरे राम जी!!
    के साथ
    गमों की रात लंबी है
    या मेरे गीत लंबे हैं
    न ये रात खत्म होती
    ना मेरे गीत खत्म होते!!
    जैसा अनोखा दर्दिला गीत लिखा।

    विरह के सुलतान' के नाम से पुकारे जाने वाने वाले कवि शिरोमणि शिव की एक अमर रचना --
    माये नी माये ! [ माँ !ओ माँ ! ] मैं एक शिकरा [ उड़ने वाला पक्षी] यार बनाया
    उसके सर पे कलगी
    उसके पैरों में झांझर
    वो तो चुग्गा चुगता आया
    इक उसके रूप की धूप तीखी
    दूजा उसकी महक ने लुभाया --
    तीजा उसका रंग गुलाबी
    वो किसी गोरी माँ का जाया |
    इश्क का एक पंलग निवारी
    हमने चांदनी में बिछाया
    तन की चादर हो गयी मैली
    उसने पैर ना पलंग पाया -
    दुखते हैं मेरे नैनों के कोए
    सैलाब आँसूओं का आया
    सारी रात सोचों में गई
    उसने ये क्या जुल्म कमाया
    सुबह सवेरे ले उबटन -
    हमने मल -मल उसे नहलाया -
    देहि से निकले चिंगारें
    हाथ गया हमारा कुम्हलाया
    चूरी कुटुं तो वो खाता नहीं -
    हमने दिल का मांस खिलाया |
    एक उडारी ऐसी मारी
    वो मुड वतन ना आया !!!
    दिवंगत कवि को नमन करते हुये सभी रचनाकारों को शुभकामनायें। सुबोध जी की पुस्तक समीक्षा लाजवाब है। उन्हें बधाई और शुभकामनायें। सस्नेह 🌷🌷🙏🌷🌷

    जवाब देंहटाएं
  8. मेरे द्वारा किसी उपन्यास (या किसी भी रचना) की समीक्षा के "बस यूँ ही ..." वाले पहले प्रयास को इस मंच पर ज़र्रानवाज़ी वाले महिमामंडन के साथ स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार आपका ... साथ ही प्रतिक्रियास्वरुप रेणु जी की बधाई और शुभकामनाएं ख़ुशी को दोहरा कर गया .. एक बात क्षमासहित कि "व्यक्तिगत बुद्धिमत्ता के प्रदर्शन का प्रचलन।" तो .. हर युग और हर मानव में रहा है और है भी। मसलन -अगर कोई रचनाकार अपनी किसी रचना का मंच पर या सोशल मिडिया के वेब-पन्नों पर अपनी व्यक्तिगत बुद्धिमता का ही तो प्रदर्शन करता है। अगर कोई वैज्ञानिक अपनी खोज को दुनिया के सामने रखता है तो यह भी उसी श्रेणी में आता है। ... इत्यादि अनगिनत उदाहरण हैं .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे ! आज दिन भर नेटवर्क परेशान करता रहा ! कमेन्ट करने का यह मेरा चौथा प्रयास है !

    जवाब देंहटाएं
  10. बाज़ार लगा रखा है हमने भीतर से बाहर तक,
    ज्ञान की प्याली में उफ़ान या विवेक का क्षरण?
    विचारणीय भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति,उम्दा लिंक संकलन....
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं

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