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बुधवार, 8 जुलाई 2020
1817..इक पुरानी रुकी घड़ी हो क्या ...
8 टिप्पणियां:
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टपकती बूँद के हर कण,
जवाब देंहटाएंतुम्हारा नाम लिखता हूँ।
शानदार प्रस्तुति..
सादर..
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत भीनी भीनी बरसाती हलचल ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी गज़ल को आज जगह देने के लिए यहाँ ...
व्वाहहह..
जवाब देंहटाएंसादर..
सुहानी भोर , तुम्हारे नाम, मैं तो बहुत बड़ा बैल हूँ, ये जो भीड़ है, इक पुरानी रुकी घड़ी, सभी की रचनाएँ बहुत अच्छी है । बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना प्रकृति की लीला को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं ह्रदय से आभार ।
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जवाब देंहटाएंhttps://matikerachana.blogspot.com/2020/07/blog-post.html
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