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सोमवार, 22 जून 2020

1802 ..हम-क़दम का एक सौ चौबीसवाँ अंक ..प्रतीक्षा

सादर अभिवादन
प्रतीक्षा
एक छोटी सी व्याख्या

सकारात्मक सोच का व्यक्ति बनने के बहुत उपाय हैं जिनमें से एक है 'धैर्य'। धैर्य को समझना ज़रूरी है। यदि हम बिना बैचैन हुए किसी का इंतज़ार कर सकते हैं तो हम धैर्यवान हैं। सहज होकर, सानंद प्रतीक्षा करना, सबसे आवश्यक गुण है। यदि यह गुण हमारे भीतर नहीं है तो हमें यह योग्यता पैदा करनी चाहिए। प्रतीक्षा किसी की भी हो सकती है; किसी व्यक्ति की, किसी सफलता की या किसी नतीजे की। प्रतीक्षा करने में बेचैनी होने से हमारी सोच का पता चलता है। प्रतीक्षा करने में यदि बेचैनी होती है तो यह सोच नकारात्मक सोच है। प्रतीक्षा का आनंद लेने वाला ही सकारात्मक व्यक्ति होता है।
बहुत कम लोग ऐसे हैं जो प्रतीक्षा करने में बेचैन नहीं होते। सीधी सी बात है कि सकारात्मक सोच के व्यक्ति भी बहुत कम ही होते हैं। असल में हम जितने अधिक नासमझ होते हैं उतना ही प्रतीक्षा करने में बेचैन रहते हैं। बच्चों को यदि हम देखें तो आसानी से समझ सकते हैं कि किसी की प्रतीक्षा करने में बच्चे कितने अधीर होते हैं। धीरे-धीरे जब उम्र बढ़ती है तो यह अधीरता कम होती जाती है क्योंकि उनमें 'समझ' आ जाती है। इसी 'समझ' को समझना ज़रूरी है क्योंकि जब तक हम यह नहीं समझेंगे कि हमारे जीवन में प्रतीक्षा का क्या महत्त्व है और इसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव होता है तब तक हम सकारात्मक सोच नहीं समझ सकते। परिभाषाएं अनंत है
साभारः भारत ज्ञानकोश


प्रस्तुत है आज का अंक


सर्वप्रथम
कालजयी रचनाएँ
......................
आदरणीय प्रताप नारायण सिंह
प्रतीक्षा ....
अंतर्मन में आस मिलन की, निश-दिन तुम्हीं जगाते हो।
नित्य प्रतीक्षारत रहता हूँ, किन्तु नहीं तुम आते हो।।

हिय-आँगन को श्रद्धा-जल से, रोज बुहारा करता हूँ।
नेह, समर्पण के पुष्पों से, उसे सँवारा करता हूँ।।
भावों की वीणा को कसता, नव संगीत सुनाने को।
बोल वंदना के धरता हूँ, निज अधरों पर, गाने को।।


स्मृतिशेष हरिवंश राय बच्चन
प्रतीक्षा ...
मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी, प्रिय तुम आते तब क्या होता?

मौन रात इस भाँति कि जैसे, कोई गत वीणा पर बज कर,
अभी-अभी सोई खोई-सी, सपनों में तारों पर सिर धर
और दिशाओं से प्रतिध्वनियाँ, जाग्रत सुधियों-सी आती हैं,
कान तुम्हारे तान कहीं से यदि सुन पाते, तब क्या होता?


आदरणीय तरसेम कौर
हवाएं करती हैं प्रतीक्षा
किसी सुगंध के आने की
ताकि वो भी सुगंधित हो सकें
चांद करता है प्रतीक्षा
अमावस के चले जाने का
ताकि वो भी चमक सके





नियमित रचनाएँ
............

आदरणीय साधना वैद
वह तो
यह भी नहीं जानती !
वर्षों से इसी तरह
व्यर्थ, निष्फल, निष्प्रयोजन
प्रतीक्षा करते करते
वह स्वयं एक प्रतीक्षा
बन गयी है
एक ऐसी प्रतीक्षा
जिसका कोई प्रतिफल नहीं है !


आदरणीय आशा सक्सेना
रातें काटी तारे गिन गिन
थके  हारे नैन  ताकते रहे  बंद दरवाजे को
हलकी सी आहाट भी
ले जाती सारा ध्यान उसका  उस ओर
विरहन जोह रही वाट तुम्हारी
कब तक  प्रतीक्षा करवाओगे
क्या ठान लिया है तुमने
उसे जी भर तरसाओगे |


आदरणीय अनीता सैनी
धूप से झुलसता आसमान धरती के लिए छाँव तलाशता दौड़ रहा हो वैसे सुमन दौड़कर आई और हाथ में टूटी चप्पल लिए सुरभि के सामने खड़ी हो गई। 
"मुझे पैसे नहीं दीदी काम चाहिए।"


आदरणीय कुसुम कोठारी
अंधेरे से कर प्रीति
उजाले सब दे दिए,
अब न ढूंढ़ना
उजालों में हमें कभी।

हम मिलेंगे सुरमई
शाम  के   घेरों में ,
विरह का आलाप ना छेड़ना
इंतजार की बेताबी में कभी।


आदरणीय सुजाता प्रिय
तेरी प्रतिक्षा में...
तेरी प्रतिक्षा में खड़े-खड़े ,
जी उकताया सा-लगता है।
आशंकित दिल बेचैन ये मन,
कुछ धबराया-सा लगता है।

बस एक झलक की चाहत है,
हो रहा है अब चंचल चितवन।
व्याकुल हृदय कमज़ोर हुआ,
रुक ना जाए अब यह धड़कन।


आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव
पिता / लघुकथा
समीर उस दिन पंद्रह मिनट पहले कॉलेज के लिए निकला था। उसे अपने दाएँ पैर के जूते की मरम्मत करवानी थी।
लगभग चालीस की उम्र पार चुका सुखलाल ग्राहक की प्रतीक्षा में व्याकुल था। इस बीच एक सप्ताह पुराने अख़बार की हैडिंग पढ़ने की कोशिश कर रहा था। पढ़ने में समीर ने मदद की। हैडिंग थी-
"श्रीलंका में नौसेना की परेड का निरीक्षण करते हुए प्रधानमंत्री राजीव गाँधी पर सैनिक ने बंदूक की बट से किया हमला"


आदरणीय विश्वमोहन कुमार जी
पारण ....

रात्रि के प्रथम प्रहर की प्रतीक्षा
यूं तो रोजमर्रा है मेरा.
किंतु आज यह इंतज़ार
तुम्हारे प्यार के प्रतिदान की आशा मे लिपटा
मेरे मन मे
तुम्हारे समर्पण का संगीत था,
जिसे पिछले दशकों से जोर जोर से
गाकर जार-जार हो रहा है यह.


आदरणीय शुभा मेहता
प्रतीक्षा ..
कब से खड़ी
झरोखे से
बाट निहारूँ
कहाँ हो तुम
और ये चाँद निर्मोही
देखो  मुझे देख
कैसे मुस्कुरा रहा है


आदरणीय मीना शर्मा
नदिया के दो तट ..

जलती है कितने जन्मों से,
प्राणों की ज्योत प्रतीक्षा में,
फिर जन्मों का अनुबंध करूँ,
तुम आ जाओ तो बंद करूँ,
मैं अपने हृदय - द्वार के पट !!!


आदरणीय उर्मिला सिंह
अनवरत प्रतीक्षा .....
प्रतीक्षा के सन्नाटे में.....
आगमन की गुंजित आहटें
सुनने को तरसते कर्ण
चौकाती पल पल.....
उम्मीदों की किरण
पर तुम न आये.....

आदरणीय सुबोध सिन्हा
ताबूत आने की ...

ज्यों करती है प्रतीक्षा उगते सूरज की
छठ के भोर में अर्ध्य देने को भिनसारे,
हाथ जोड़े कभी,तो कभी अचरा पसारे,
छठव्रती कोई मुँह-अँधेरे, सुबह-सकारे।
प्रतीक्षा बस कुछ पलों की आस्था भरी,
फिर तो उग ही आते हैं सूरज मुस्कुराते


आदरणीय सुशील भैय्या जी
उलूक की कतरन
प्रतीक्षा में हूँ
उन सर्द
हवाओं की
जो मेरी
अन्तरज्वाला
को शांत करें ।

प्रतीक्षा में हूँ
उन गरम
फिजाओं की
जो मेरे
ठंडेपन को
कुछ गरम करें ।
...
कल रथयात्रा है
पाँचवी वर्षगाँठ

कल आएँगे भाई रवीन्द्र जी
नया विषय इस सप्ताह नहीें
आज बस इतना ही
सादर..





12 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति।सभी रचनाएँ सुंदर सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ

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  2. सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग साधुवाद छोटी बहना

    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति संग्रहणीय और कालजयी रचनाओं से सजी। आभार और बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. सराहनीय प्रस्तुति दी।
    सभी रचनाएँ शानदार हैं।
    संग्रहीय अंक।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर और सराहनीय हमक़दम की प्रस्तुति.मेरी लघुकथा को स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय दीदी .
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. सभी रचनाएँ सुन्दर सराहनीय हैं।हमारी रचना को शामिल करने के लिए आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का संकलन ! मेरी रचना को आज की हलचल में स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सभी रचनाएं अद्भुत अप्रतिम ! सभी साथी रचनाकारों का अभिनन्दन ! सप्रेम वन्दे यशोदा जी !

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  8. बहुत सुंदर अंक। मेरी रचना को अंक में स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया यशोदा दी। सादर।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर कवितायेँ |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद यशोदा जी |

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  10. वाह!सुंदर प्रस्तुति ।मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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