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शुक्रवार, 5 जून 2020

1785..प्रकृति की भाषा समझकर भी संज्ञाशून्य है मनुष्य

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
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आज विश्व पर्यावरण दिवस 
पर फिर से एक बार प्रभावशाली स्लोगन जोर-जोर से चिल्लायेगे,पेड़ों के संरक्षण के भाषण,बूँद-बूँद पानी की कीमत पहचानिये..और भी न जाने क्या-क्या लिखेगे और बोलेगे। पर सच तो यही है अपनी सुविधानुसार जीवन जीने की लालसा में हम अपने हाथों से विकास की कुल्हाड़ी लिये प्रकृति की जड़ों को काट रहे हैं। आधुनिकता की होड़ ने हमें दमघोंटू हवाओं में जीने को मजबूर कर दिया है और इन सबके जिम्मेदार सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारी असंतुलित,अव्यवस्थित आरामदायक जीवन शैली है।
अगर मानव समझना चाहे तो
लॉकडाउन में हुए प्राकृतिक परिवर्तन ने बहुत सारे
प्रश्नों के उत्तर दे दिये हैं।
पर सोचती हूँ 
समय-समय पर हमें चेताती
प्रकृति की भाषा समझकर भी 
संज्ञाशून्य है मनुष्य, 
   तस्वीरों में कैद प्रकृति के अद्भुत सौदर्य 
और पुस्तक में 
लिपिबद्ध जीवनदायिनी
गुणों की पूँजी
 आने वाली पीढ़ियों के लिए 
धरोहर संजो रही
शायद...?

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पर्यावरण पर
आइये आज  कुछ भूली-बिसरी और  विशेष
 रचनाएँ पढ़ते हैं-

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आदरणीया प्रीति जी

प्रकृति की प्रकृति में तो अब भी कुछ नहीं बदला. बस, मनुष्य ही खोटा निकला. हमें प्रकृति जैसा बनना होगा. इससे जीने की प्रेरणा लेनी होगी. आसमान सिखाता है कि मां के आंचल का अर्थ क्या है. पहाड़ सच्चे दोस्त की तरह, किसी अपने के लिए डटकर खड़े रहने की बात कहते हैं. सहनशक्ति धरती से सीखनी होगी.

आदरणीय रवींद्र जी

शहरीकरण  की आँधी  में
गन्दगी   को  खपाने   का
एकमात्र   उपाय / साधन 
एक  बे-बस  नदी  ही  तो  है ,
पर्यावरण  पर  आँसू  बहाने  के  लिए
सदाबहार  मुद्दा  हमारे  द्वारा  उत्पादित  गन्दगी  ही तो  है।

आदरणीया रेणु जी

दो शताब्दियों  का  साथ है साईकिल  और मानव का |  इसकी उपयोगिता को  कभी नकारा नहीं गया |   पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए साईकिल , वाहन का सर्वोत्तम विल्कप है|थोड़ी दूर जाने के लिए अथवा आसपास किसी काम के  लिए  इससे बेहतर कुछ  भी  नहीं |दिन रात धुंआ उगलते वाहनों  की तुलना में साईकिल  प्रकृति   के लिए किसी वरदान से कम नहीं |  जेट युग में इस  सवारी का  महत्व  फिर से  बढ़ने के आसार दिखाई देते हैं | पैसों से ख़रीदे गये   तेल की जगह , शारीरिक बल से चलती साईकिल कम आमदनी   वाले व्यक्ति के बजट में  भी आसानी से समा जाती है तो प्रकृति को कोई भी नुकसान पहुंचाए बिना ,जीवन के कच्चे- पक्के रास्तों पर  अनवरत चलती रहती है |    

आदरणीया सुधा देवरानी जी

अभी वक्त है संभल ले मानव !
खिलवाड़ न कर तू पर्यावरण से ।
संतुलन बना प्रकृति का आगे,
बाहर निकल दर्प के आवरण से ।

आदरणीय रायटोक्रेट कुमारेंद्र जी


कटु-सत्य किसी से नहीं छिपा है कि आज धरती की,पर्यावरण की ऐसी हालत करने वाला प्रमुख कारक इन्सान ही है. ऐसे में जब तक खुद इन्सान के द्वारा ही सार्थक कदम नहीं उठाये जायेंगे, तब तक न तो प्रदूषण से मुक्ति मिलनी है, न ही धरती को ग्लोबल वार्मिंग से छुटकारा मिलना है, न ही इन्सान को प्राकृतिक सुकून प्राप्त होना है. सिर्फ दिखावा करने के नाम पर, चंद लोगों के सामने ढकोसला करने की चाह में, इक्का-दुक्का पेड़ लगाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री करने की मानसिकता से पर्यावरण का किसी भी प्रकार से भला होने वाला नहीं है. 


आदरणीया कुसुम कोठारी जी

क्या होगा जाने जग जीवन
संकट में है जान सभी
परिवर्तित जलवायु देखकर
आज निहत्थे खड़े सभी।

बेमौसम बरसातें ओले
प्रलयंकारी बाढ़  बढ़ी
खेती बंजर सूखी धरती
असंतुलन की धार चढ़ी।


आदरणीय  विश्वमोहन जी


ग्लेशियल-शिफ्ट तो ऐसे एक वैश्विक घटना है किंतु दक्षिण एशिया और मुख्यतः हिंदुस्तान की सभी प्रमुख नदियों का आस्तित्व अपने उद्गम-स्थल हिमालय की हलचलों से ज्यादा प्रभावित होता है. गंगा और ब्रह्मपुत्र भारत को जलपोषित करने वाली सबसे बड़ी नदियां हैं, जिसमे गंगा की भागीदारी २६% और ब्रह्मपुत्र की भागीदारी ३३% है. ग्लेशियर के उपर खिसकने का प्रभाव साफ साफ इन नदियो मे दिखने लगा है और अब ये बरसाती नदी की तरह व्यवहार करने लगी हैं. उत्तराखंड की तुलना मे नेपाल  का हिमालय बिहार से नजदीक है जहां से निकलने वाली तमाम नदियां बरसात मे बाढ़ का कहर ढा रही हैं. कोशी का प्रलय इस प्राकृतिक विपर्ययता का प्रत्यक्ष प्रमाण है. 

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और चलते-चलते
सुनिए एक
काव्य नाटिका
चिट्ठाजगत के जाने-माने
हमारे साथी रचनाकारों की 
 सृजनात्मकता
आदरणीय रवींद्र जी 
आँचल पाण्डेय जी एवं अनीता लागुरी जी 
के स्वर में-

सूखा वृक्ष काटने हेतु आवेदन


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हमक़दम का विषय


कल का अंक पढ़ना न भूले
विभा दी आ रही है 
विशेष प्रस्तुति के साथ।







15 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय दर्शन में पर्यावरण के प्रभाव का विस्तार मन के अंदर से लेकर बाहर के अनंत विस्तार तक है। सारगर्भित भूमिका के आवरण में सुंदर रचना संसार के इस संकलन और सार्थक प्रस्तुति का साधुवाद और आभार।

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  2. प्रभावशाली काव्य नाटिका के लिए रचनाकारों को अलग से विशेष बधाई!!!

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  3. सभी रचनाकारों को बहुत बहुत धन्यवाद एवं बधाई
    बहुत प्रभावशाली वर्णन

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  4. शानदार संदर्भ अंक..
    श्रमसाध्य कार्य..
    साधुवाद..

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  5. सुंदर लेख
    पर्यावरण दिवस की शुभकामनाएं

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  6. सुन्दर अंक सभी संकलन
    बेहतरीन काव्य नाटक वाचन बहुत खूब

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  7. प्रिय श्वेता, बहुत सुंदर प्रस्तुति। सभी संकलन, सराहनीय शानदार। पर्यावरण की समस्या आज की सभी समस्याऔ से बड़ी है। जिसका समाधान ज्यादा वृक्षारोपण और हमारा दायित्वबोध है। इसके लिए जल ऋषियों और वृक्ष ऋषियों की आवश्यकता है । आज की प्रस्तुति में रविद्र भाई की रचना पर आधारित काव्य नाटिका का प्रयास लाजवाब और वंदनीय है ।प्रिय आँचल का ये सामूहिक प्रयास बहुत सराहनीय है। सभी का स्वर अभिनय शानदार है। रचना तो अच्छी हैही इस प्रयास से अमूल्य हो गयी है। वृक्ष कभी इच्छा मृत्यु नहीं मांगते हैं,। वे तो युगयुगांतर तक मानव जीवन की खुशियाँ निहारते हुये अमरत्व को पाना चाहते हैं। आज के अंक के सभी सहभागियों को शुभकामनायें। तुम्हें आभार मेरी रचना शामिल करने लिए🙏🌹🌹

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  8. बहुत सुंदर पर्यावरण आधारित रचना लेकिन सूखा पेड़ काटने का आवेदन लाजबाव प्रस्तुति है

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  9. सभी लिंक्स उम्दा... सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई..
    पर्यावरण दिवस पर सुंदर प्रस्तुति

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  10. लाज़बाब काव्य नाटिका, सभी रचनाकारों को बधाई एवम शुभकामना।

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  11. सच्चाई तो यही है कि आज की ये विपदाएं हमारे कुकर्मों का ही फल है

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  12. बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति ...पर्यावरण पर सभी रचनाएं बेहद उत्कृष्ट।
    मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।

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  13. सारगर्भित भूमिका ,अपने आप में एक पुरा लेख समेटे।
    पर्यावरण दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।
    शानदार संकलन में मेहनत साफ नज़र आ रही है ।
    सभी उपयोगी जानकारी युक्त पोस्ट ,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    काव्य नाटिका बहुत शानदार रही , भाई रविन्द्र जी ,आंचल जी अनु जी,एंव स्तुति जी सभी की मेहनत और शानदार प्रस्तुति।
    सभी को बहुत बहुत बधाई।
    आदरणीय रविन्द्र जी ने बहुत सार्थक सा सृजन किया जो सभी साथियों के सहयोग से अनुपम हो गया ।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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