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सोमवार, 18 मई 2020

1767 ...हम-क़दम का एक सौ बीसवाँ अंक ..क्षितिज

सोमवारीय विशेषांक में
आप सभी का
स्नेहिल अभिवादन
क्षितिज
पृथ्वी का पुत्र, पृथ्वीतल के चारों ओर की वह कल्पित रेखा 
या स्थान जहाँ पर पृथ्वी और आकाश एक दूसरे से मिलते हुए 
से जान पड़ते हैं, भूमि का पुत्र मनुष्य, 
पृथ्वी से जन्मे वृक्ष इत्यादि।
उदाहरण
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।

पर्यायवाची शब्द
अंबरांत, अंबरारंभ, आकाश रेखा, उफ़ुक़, दिशा मंडल, शफ़क़

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कालजयी रचनाएँ
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प्रिय! सान्ध्य गगन ...महादेवी वर्मा
प्रिय ! सान्ध्य गगन
मेरा जीवन!

यह क्षितिज बना धुँधला विराग,
नव अरुण अरुण मेरा सुहाग,
छाया सी काया वीतराग,
सुधिभीने स्वप्न रँगीले घन!



बुझे दीपक जला लूँ .... महादेवी वर्मा
सब बुझे दीपक जला लूँ!
घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ!

क्षितिज-कारा तोड़ कर अब
गा उठी उन्मत आँधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास-तन्मय तड़ित् बाँधी,
धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला लूँ!



दूर क्षितिज पर सूरज चमका, .... गौतम राजरिशी
दूर क्षितिज पर सूरज चमका,सुब्‍ह खड़ी है आने को
धुंध हटेगी,धूप खिलेगी,साल नया है छाने को

प्रत्यंचा की टंकारों से सारी दुनिया गुंजेगी
देश खड़ा अर्जुन बन कर गांडिव पे बाण चढ़ाने को

क्षितिज  - विजय कुमार सपत्ति

काश,
ऐसा हो पाता;
पर क्षितिज को आज तक किस ने पाया है
किसी ने भी तो नही,
न तुमने, न मैंने
क्षितिज कभी नही मिल पाता है
पर; हम; अपने ह्रदय के प्रेम क्षितिज पर
अवश्य मिल रहें है!
यही अपना क्षितिज है!!
हाँ; यही अपना क्षितिज है!!!




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ब्लॉग से कालजयी रचनाएँ
आदरणीया मीना शर्मा
दो रचनाएँ
(१)
क्षितिज

श्वास की सरगम पे पल पल
नाम गूँजेगा तुम्हारा,
चेतना के रिक्त घट में
प्रेम की पीयूष धारा !

मैं उसी अमि धार से

अभिषेक प्रियतम का करूँगी,

बाट जोहूँगी युगों तक,
दीप बनकर मैं जलूँगी !
फिर वहीं तुमसे मिलूँगी !!!

(२)

आओ मेघा बरसो न

इंद्रसैन्य - से दल के दल
गरजो,उमड़ो सुंदर श्यामल,
तुम रूप बदलते हो प्रतिपल,
रूई के फाहों से कोमल ।

सोए सपनों को झकझोरो
माटी को सोना कर दो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!


आदरणीय पुरूषोत्तम कुमार सिन्हा

उभरते क्षितिज

चुप सा क्षितिज, चहका शब्दों से,
कूक उठा कोयल सा, मधुर तान में गाया,
नाचा मयूर सा, लहराकर शर्माया,
कितनी ही कविताएँ, क्षितिज लिख आया,
क्षितिज मंत्रनाद कर गाया,
वो नभ पर, इक नया क्षितिज उभर आया...


पर भीगती है हर रोज सुबह की ये दुल्हन,
झटक कर बालों को जगाती है नई सी सिहरन,
मन को दिलाती है नई सुखद एहसास,
कहती है बार बार! तु चल क्षितिज पर मैं हूँ तेरे साथ!

आदरणीया सुधा देवरानी
वह प्रेम निभाया करता था

फूल की सुन्दरता को देख
सारे चमन में बहार आयी।
आते जाते हर मन को ,
महक थी इसकी अति भायी।
जाने कितनी बुरी नजर से
इसको बचाया करता था ।
दूर कहीं क्षितिज में खड़ा, 
वह प्रहरी बन जाया करता था......
........
नियमित रचनाएँ
...
आदरणीय साधना वैद
व्योम के उस पार

दूर क्षितिज तक पसरे
तुम्हारे कदमों के निशानों पर
अपने पैर धरती
तुम तक पहुँचना चाहती हूँ !
सारी दिशाएँ खो जायें,
सारी आवाजें गुम हो जायें,
सारी यादें धुँधला जायें,


आदरणीय आशा सक्सेना
वहीं हमारा घर होगा ...

परम प्रेम का आगाज़ होगा
जीवन तभी सार्थक होगा
दूर क्षितिज तक कभी
शायद ही कोई पहुंचा होगा
पर हमें न कोइ रोक सकेगा
वहीं हमारा घर होगा |


आदरणीय अनीता सैनी
क्षितिज पर नहीं..

खींप-आक सब सूख रहे 
दौर दयनीय दुनिया का।  
लंबी-चौडी विचारपट्टिका 
उकेरे चित्र कलिकाल का। 

सूर्य निकला क्षितिज पर नहीं 
सत्ता-शक्ति के बाज़ार का।  
उड़न तस्तरी भारत में उतरी 
नहीं समय शोहरत के बखान का।  


आदरणीय सुजाता प्रिय
दूर क्षितिज में
प्रथम रश्मि ले आया सूरज,
फैलाकर किरणों के तार।
दूर क्षितिज में फैली लाली,
स्वर्ण-मंजूषा सा उपहार।

शाम ढली,चंदा मुस्काया,
अब तो राज हमारा है।
काली रात के अंधियारे में,
हमसे ही उजियारा है।


आदरणीय कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
शाम की उदासियाँ

झील के शांत पानी में
शाम की उतरती धुंधली उदासी
कुछ और बेरंग,
श्यामल शाम का सुनहरी टुकडा
कहीं "क्षितिज" के क्षोर पर पहुंच 
काली कम्बली में सिमटता,
निशा के उद्धाम अंधकार से 
एकाकार हो,


आदरणीय अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
(1)
क्षितिज का संदेश ...

क्षितिज पर छाई लालिमा
लाई है संदेश
समय रहा कहाँ एकसा
करो न किंचित क्लेश

(2)
उस क्षितिज तक मुझे जाना है

अवनि अंबर का
जहां होता मिलन
जहां मिल कर झूमें
धरती गगन
सुनती हूं वहां है
खुशियों का चमन
उस क्षितिज तक
मुझे जाना है




आदरणीय कामिनी सिन्हा
क्षितिज के उस पार ...

नादान हैं दुनिया,   
वो क्या जाने 
प्यार करने वाले ना कभी बिछड़े हैं 
ना बिछड़ेंगे .....
वो हमारे मिलन स्थल " क्षितिज " को 
भी ढूढ़ने की कोशिश करते रहते हैं 
पर आसान हैं क्या " प्रेमनगर " को ढूँढना....  

आदरणीय अनुराधा चौहान
दूर क्षितिज के कोने से

आँखों में उजियारा भरके,
आलस छीने नव विहान।
उम्मीदों की किरणें देकर,
जीवन का करता निर्माण।
सिंदूरी आभा संग चमके,
मन का सूना आला है।
दूर क्षितिज के कोने से अब,
सूरज उगने वाला है।

आदरणीय सुबोध सिन्हा
(दुई गो रचना)

स्वप्निल यात्रा ...

किसी दिन उतरेंगे हम-तुम
अपनी ढलती उम्र-सी
गंगाघाट की सीढ़ियों से
एक दूसरे को थामे .. गुनगुनाते
"छू-कित्-कित्" वाले अंदाज़ में
और बैठेंगे पास-पास
उम्र का पड़ाव भूलकर
गंग-धार में पैर डुबोए घुटने तक
और उस झुटपुटे साँझ में
जब धाराओं पर तैरती
क्षितिज  से 30 या 40 डिग्री कोण पर
ऊपर टंगे अस्ताचल के सूरज की
मद्धिम सिन्दूरी किरणें



जल-स्पर्श नदारद ...

काश ! मिल पाते कभी
सच्चे मन से दो रिश्तेदार सगे
रिश्तों के आभासी क्षितिज पर
मिल पाती उसे तृप्ति भी कभी
जो भटक रहा ताउम्र अनवरत 
रिश्तों की मृग मरीचिका के पीछे
प्यास लिए अपनापन की ...

प्यास लिए .. ये आस लिए कि
क्षितिज-से आभासी रिश्तों के बीच
इन्हीं आभासी क्षितिज से
कभी तो उगेगा कोई दूर ही सही
पर एक अपना-सा सूरज
अपनापन की किरणों वाली
गर्माहट लिए एहसासों के धूप की ...

आदरणीय ऋतु आसूजा
क्षितिज एक चित्रकला ...

दो किनारों का मिलन 
मानों नभ करता धरा का वंदन 
अद्भुत आभास 
दूर होकर भी निकट
विस्तृत ,विराट 
आकार ,गोलाकार कहीं तो
संभव होगा मिलन  
दोनों ही अस्तित्व का आधार.....
....
आज इतना ही
कल आ रहे हैं रवीन्द्र जी
नया विषय ले कर
सादर..










13 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात ।बहुत सुंदर प्रस्तुति दीदीजी। सभी रचनाएँ एक-से बढ़कर एक।बेहद खूबसूरत और कलात्मक ढंग से सुसज्जित किया है आपने सभी रचनाओं को।लाजवाब।

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  2. सुप्रभात संग नमन आपको और आपके मंच को .. साथ ही आभार आपकी आज की इंद्रधनुषी प्रस्तुति के साथ मेरी दो रचनाओं/विचारों को जगह देने के लिए ...

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  3. सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना

    संग्रहनीय अंक

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  4. वाह क्षितिज पर लिखे आकर्षक मनभावन रचनाये आत्मविभोर कर गयी

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  5. " क्षितिज " पर एक से बढ़कर एक लाज़बाब रचनाएँ और खासतौर पर महादेवी वर्मा की कालजयी रचनाओं को पढ़वाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दी ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार आपका

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  6. बहुत सुंदर संकलन, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी।

    जवाब देंहटाएं
  7. शानदार संकलन दी।
    महादेवी जी की रचनाओं से अंक की शोभा द्विगुणित हो गयी है।
    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी है।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं


  8. कालजयी रचनाकारों की रचनाओं को पढ़कर मन आनंदित हुआ,इसके लिए आपको धन्यवाद।
    बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति,सभी रचनाएं उत्तम,रचनाकारों को हार्दिक बधाई
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीया 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही सुन्दर सशक्त रचनाओं से सजी आज की हलचल ! मेरी रचना को इसमें स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  10. बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया दीदी. मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार.

    जवाब देंहटाएं
  11. मेरी दोनों रचनाओं को हलचल के मंच पर स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया यशोदा दी। आपके प्रोत्साहन से मेरी रचनाओं को बहुत गुणीजन पाठक के रूप में मिलते हैं। सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  12. कालजयी रचनाओं के साथ शानदार प्रस्तुति
    क्षितिज पर सभी रचनाएं बेहद उम्दा...
    मेरी रचना को यहाँ। स्थान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।

    जवाब देंहटाएं

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