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सोमवार, 16 मार्च 2020

1704..हम-क़दम का एक सौ ग्यारहवाँ अंक... दिलदार

सोमवारीय विशेषांक
हमक़दम में
आप सभी सुधि पाठकों का
स्नेहिल अभिनंदन
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आज सबसे पहले  विषय से इतर
कुछ आवश्यक-

प्रकृति के बिगड़ैल मिज़ाज और
कोरोना के आतंकवादी परवाज़ से
उत्पन्न राष्ट्रीय आपदा मात्र हमारे ही देश
के लिए चिंता का विषय नहीं
अपितु
समूचा विश्व इस महामारी 
से आतंकित है।
परंतु परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी
विपरीत हो 
हम मनुष्य अपने विशेष गुण
सकारात्मकता की हथौड़ी से
सारी नकारात्मकता को चकनाचूर करते रहेंगे।
आशा के असंख्य दीपक प्रज्वलित कर
हम अपने आत्मबल से जल्द ही 
इस कठिन समय की उफ़नती धाराओं को
पार कर जायेंगे।
हम क़लमकारों की यह नैतिक ज़िम्मेदारी है कि हम
इस महामारी कोरोना के बारे मेंं ज्यादा अध्ययन करें ताकि
आमजन को सही जानकारी दें सकें,हम किसी भी भ्रांति का खंडन कर सकें और धैर्यपूर्वक जागरूकता और सकारात्मकता फैलाये।

हमक़दम के विषय 'दिलदार' पर
इस बहुत कम रचनाएँ प्राप्त हुई हैं।
आप सभी रचनाकारों को सादर नमन।

हमक़दम आप सभी प्रतिभासंपन्न
रचनाकारों के साथ और सहयोग का ही
सृजनात्मक परिणाम है आशा है 
आगामी अंंक में आपका स्नेह अवश्य प्राप्त होगा।

★★★★★★

आइये आज के अंक की रचनाएँ पढ़ते हैं।

सर्वप्रथम कुछ कालजयी रचनाएँ-

श्री निदा नवाज़
दिल,दिलभर,दिलदार की भाषा
शब्दों का है रूप निराला
सागर सागर जैसे पानी
आकाशों में इसकी वाणी
संत कबीर के दोहों वाली
जायसी के शब्दों की पाली

शाहबाज़ 'नदीम' ज़ियाई
दिलदार ने सोने न दिया
रात भर जागा किए पलकें न झपकीं हम ने
रात भर इश्क़ के आज़ार ने सोने न दिया

रात भर दिल के धड़कने की सदा आती रही
रात भर साया-ए-दीवार ने सोने न दिया

रात भर याद-ए-गुज़िश्ता ने सताया मुझ को
रात भर चश्म-ए-गोहर-बार ने सोने न दिया
 


मीर तक़ी मीर

जीते जी कुचा-ए-दिलदार
जीते-जी कूचा-ऐ-दिलदार से जाया न गया
उस की दीवार का सर से मेरे साया न गया

दिल के तईं आतिश-ऐ-हिज्राँ से बचाया न गया
घर जला सामने पर हम से बुझाया न गया

क्या तुनक हौसला थे दीदा-ओ-दिल अपने आह
इक दम राज़ मोहब्बत का छुपाया न गया



★★★★★★

नियमित रचनाएँ
आदरणीय साधना वैद
सोचती हूँ
आज तुम्हें अपनी दिलदारी से
रू-ब-रू करा ही दूँ
तुम भी तो जानो
कहाँ मिलेगा तुम्हें 
कोई दिलदार मेरे जैसा ! 
आज बाँटना चाहती हूँ तुमसे
कुछ भूली सी यादें


आदरणीय आशा सक्सेना
है दिल जिसका बड़ा
सही राह चुन पाता
जो गैरों को भी अपनाता
वही दिलदार कहलाता |
केवल मस्तिष्क  से जिसने सोचा
सही गलत का भेद  न जाना
भावुक मन को दुखी किया
वह कैसे  दिलदार हुआ |


आदरणीय सुजाता प्रिय
दिलवर कभी भी दिल को दुत्कारना नहीं।
दिल में कभी भी लाना तू दुर्भावना नहीं।
दिल को दुरुस्त रखने की दरकार चाहिए ।
दिलवर तुम्हारे दिल में मुझे प्यार चाहिए।

आदरणीय ऋतु आसूजा
प्रकृति प्रदत अमिय
जीवन का सार हूं मैं
स्वच्छंद निर्मल जलधार हूं मैं
हां मैं प्रकृति, देवस्थान अनन्त
निस्वार्थ सेवा की रसधार हूं मैं।

मैं प्रकृति बहुत दिलदार हूं मैं
अन्न, कंद - मंद फल, फूल का भंडार हूं मैं

और चलते-चलते
आदरणीय सुबोध सर
सच्चा दिलदार

जिसे दहेज़ की ना हो कोई दरकार
चेहरे की सुन्दरता करे जो दरकिनार
उत्तम विचारों को ही करे जो स्वीकार
फिर चाहे जले हो तेज़ाब से रुख़्सार
या कोई वेश्या पायी समाज से दुत्कार

★★★★★★★

एक गीत सुनिये

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हम-क़दम का अगला विषय
जानने के लिए कल का अंक
पढ़ना न भूलें।

#श्वेता


18 टिप्‍पणियां:

  1. कम लिक्खा गया..
    पिछले सप्ताह एक आकस्मिक व ज्वलंत विषय सामने था..जरूरी भी था..कोरोना..
    जरूरी भी था जानकारियां देना...
    सबने अच्छा लिखा..साधुवाद..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभातम् !!!
    कोरोना पर विस्तृत चर्चा के साथ ही हमकदम के 111वें अंक की अच्छी प्रस्तुति के लिए और उसमें मेरी रचना का जोड़ .... इन सब के लिए आभार आपका ...

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!श्वेता ,बहुत सुंदर प्रस्तुति 👍

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर हह्रदयस्पर्शी अंक प्रिय श्वेता | दिग्गजों की मनभावन शायरी ने मन मोह लिया | कोरोना के लिए चर्चा और जानकारी जरूरी है डरना नहीं | सचमुच बहुत एह्तियात दरकार है| आज के हमकदम में - भले रचनाएँ थोड़ी नजर आ रही हैंहैं पर सभी रचनाकारों ने दिलदार को खूब परिभाषित किया | स्वाभिमानी तेवर में लिखी साधना जी की रचना अत्यंत सराहनीय है तो आशा जी ने दिलदार की शख्शियत को सुंदर शब्द दिए | दिलदार से चाहत की निस्सीम कल्पना संजोये सुजाता जी की भावपूर्ण रचना के साथ दिलदार ऋतू जी का लिखा - दिलदार स्वयंसिद्धा प्रकृति का आत्मकथ्य बहुत भावपूर्ण हैं | पर सुबोध जी ने दुनिया में मसीहा सरीखे जिस दिलदार की कल्पना अपनी भावपूर्ण रचना में संजोयी है वह मन को छू लेने वाली है | सुबोध जी को बहुत- बहुत बधाई इस रचना के लिए | हालाँकि चिराग लेकर ढूंढने से भी ऐसा दिलदार शायद ना मिले | फिर भी आशा और विश्वास दुनिया के जीने की वजह हैं | सुंदर अंक के लिए बधाई और सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनाएं|

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    उत्तर
    1. हार्दिक आभार रेणु जी ! रचना आपको अच्छी लगी मेरा श्रम सार्थक हुआ !

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    2. अब आप LED के ज़माने में चिराग़ लेकर ढूँढ़ेगी तो कैसे मिलेगा भला ... खैर ! ये बात तो बस यूँ ही ... पर सत्यता तो ये है कि ऐसे लोग हैं आज भी इसी दुनिया में ... बस हमारी इन्सानी निगाहें भौतिक चकाचौंध में उन्हें देख नहीं पाती ... काश !...

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. तुमसा कहाँ कोई रहबर , मुर्शिद दिलदार मेरा .
    बहता जो नस -नस में बनकर प्यार मेरा !
    बहुत तड़प है इसमें -आसूं आहें और बस गम है
    सुकून ग़जब का देता है पर - चाहत का ये आज़ार मेरा !
    जागूं उलझे यादों से तेरी-सोऊँ तो देखे ख़्वाब तेरे .
    पल भर चैन से जीने ना दे-ये दिले -बेज़ार मेरा !
    इस दुनिया से डर कैसा ? तुम जो हो ग़र साथ मेरे .
    फूलों की चाह नहीं मुझको और क्या कर लेगें ख़ारमेरा ?
    सबको कहाँ मिलता मसीहा -तुझ सा रहनुमा कोई
    मुझे मयस्सर तू दुनिया में -सजदा सौ-- सौ बार तेरा !
    दुनिया फ़ानी और फ़रेबी बस सच्चा मासूम इक प्यार तेरा
    कुछ देर तुझे ना देखूं तो -जीना हो दुश्वार मेरा !

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    उत्तर
    1. बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति प्रिय सखी रेणु जी !
      बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण प्रस्तुति।
      बहुत सुंदर।

      हटाएं
    2. वाह वाह दी बहुत सुंदर।

      हटाएं
  7. बहुत-बहुत सुंदर और सराहनीय अंक श्वेता। मेरी रचना को साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद । सभी रचनाएँ काफी प्रभावशाली एवं सार्थक हैं।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आज के संकलन में कम अवश्य हैं किन्तु सभी संग्रहणीय रचनाएं हैं ! मेरी रचना को स्थान दिया इसके लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !

      हटाएं
  9. बहुत ही सुंदर और सराहनीय प्रस्तुति ,सभी रचनाएँ लाज़बाब ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं

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