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बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

1678..भोर का उठना है उपकारी..

।। भोर वंदन।।

“ भोर का उठना है उपकारी।
जीवन-तरु जिससे पाता है हरियाली अति प्यारी।
पा अनुपम पानिप तन बनता है बल-संचय-कारी।
पुलकित, कुसुमित, सुरभित, हो जाती है जन-उर-क्यारी”
हरिऔध
सुप्रभातम के साथ अब नजर डालें..
सृजनात्मक के विधा से

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निकली घर से सखी-सहेली।
सूरज सिर पर लगा चमकने,
सरोवर में कमल दल हँसने।।

खिल आई पूरब में लाली,
कलियाँ खिलती डाली डाली।
चली बसंती हवा हर प्रहर,
सुखद अनुभूति से भरी लहर..

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हो रहा बेजार, ये मझधार है!

जीवन, जिन्दगी में खो रहा कहीं,
मानव, आदमी में सो रहा कहीं, 
फर्क, भेड़िये और इन्सान में अब है कहाँ?
कहीं, श्मसान में गुम है ये जहां, 
बिलखती माँ, लुट चुकी है बेटियाँ, 
हैरान हूँ, अब तक हैवान जिन्दा हैं यहाँ!
अट्टहास करते हैं वो!
तुम चुप हो क्यूँ?

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आज मंगलवार है। हम में से एक सम्प्रदाय विशेष के अधिकांश लोग अपनी साप्ताहिक दिनचर्या के अनुसार आज और शनिवार को भी कहीं जाएं या ना जाएं परन्तु अपने आसपास या शहर के किसी नामीगिरामी हनुमान उर्फ़ महावीर मन्दिर में जरूर जाते हैं। फिर एक सिन्दूरी टीका माथे पर लगाये, अकड़े गर्दन में गेंदे के फूलों की माला और हाथ में लड्डू का ..
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सावन भादों में पड़े, रिमझिम नित्य फुहार।
गौरी गीतों में करे, अपनी विरह पुकार॥ 
अपनी विरह पुकार, मिले साजन मन भावन। 
बाहर बरसे बून्द, आग भीतर दे सावन॥

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आ० चन्द्र भूषण मिश्र 'गा़फ़िल जी..
शम्स है सिरहाने या छत पर क़मर है
फ़र्क़ है क्या रोज़ो शब सोना अगर है

क्यूँ नहीं उठ सकती आह आख़िर ज़माने!
जो कटा शब्जी नहीं है एक सर है..

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हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए
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।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍

7 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीया पम्मी जी द्वारा चयनित कुछ रचनाओं में स्थान पाकर आह्लादित हूँ । मंच को नमन।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर अंक, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार पम्मी जी।

    जवाब देंहटाएं

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