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मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

1670...पुर्खों की विरासत पर सबको है बड़ा नाज़...

सादर अभिवादन। 

नैतिक नियंत्रण से 

विमुख होता समाज,

पुर्खों की विरासत पर 

सबको है बड़ा नाज़। 

-रवीन्द्र सिंह यादव  

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-


 
पराग तक पहुँचना चाहते
पराग कणों तक अपनी पहुँच में  
होते सफल जब कोशिश में
 अपार प्रसन्न होते पुष्पों के आलिंगन में |
  झूमते  फूलों की बहार  संग
आसपास ही नर्तन करते मंडराते
परागण में सहायक होते 
 क्रियाकलाप  जब पूर्ण होता
 फलों  की उत्पत्ति होती|  


करती स्वर रागिनी से कलह असावरी
अवसादों से भरी काटूं विरह विभावरी
कर ख़ुद से हुज्जत जुन्हाई भरी रैन में
अपलक निहारूँ चाँद,जैसे कोई बावरी ,



सुनो!
तुम मेरे लिए
खुश रहो
स्वस्थ रहो
अपना ख्याल रखो
ताकि मैंतुम्हें खुश रखने की 
कोशिशों में 
जुटे रहने की बजाय
तुम्हारे साथ खुश रह सकूँ,..!


मेरी फ़ोटो 

आजीविका और व्यवसायिक निर्भरता के कारण  इन हवेलियों के वंशजों का झुकाव भी शहरों की ओर ही रहा धीरे-धीरे वे घर लौटने का रास्ता शायद भूलते चले गए। परिणाम स्वरूप समय के साथ ये शानदार हवेलियाँ रख - रखाव के अभाव में वीरान और 
खंडहर होती गई कभी-कभार ही कोई भटका मुसाफिर मोह में बँध कर लौटता है तो हैरानी ही होती है।



मल किशोर पांडेय  
और घर पर मेरा बेटा
अपनी नीली हरी फुटबॉल लेकर-
 दरवाजे की ओट में छिपा बैठा है,
 मेरे इंतजार में।

हम-क़दम के लिये इस बार का विषय है-
'क़लम'/'लेखनी'

संत कबीर दास जी कहते हैं- 
मसि कागद छुवो नहीं, क़लम गही नहिं हाथ।  

रचना भेजने के लिये अंतिम तिथि : 15 फरवरी 2020

हम-क़दम अंक की प्रकाशन तिथि ः 17 फरवरी 2020


आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 

रवीन्द्र सिंह यादव  

9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात रवीन्द्र भाई..
    मनभावन प्रस्तुति...
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. अति सुन्दर सूत्र संकलन । मेरी रचना को संकलन में साझा करने के लिए सादर आभार आदरणीय ।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!सुंदर प्रस्तुति रविन्द्र जी ।सभी चयनित लिंक शानदार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर संकलन, शानदार लिंक चयन सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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