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सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

1669 हम-क़दम.. विषय विशेषांक क्रमांक 107

सादर अभिवादन..
भूमिका लिखना नहीं आता हमें
तात्कालिक घटनाओं का वर्णन हम भले ही कर दें 

पर किसी विषय विशेष पर लिखना
असहज से हो जाते हैं हम...
सखी श्वेता लापता है
पर सम्पर्क में है..


एक किस्सा याद आ रहा है
कंजूस और उसकी श्रीमति 

के बीच हुई बात-चीत
सूम कहे सूमिन से
काहे बदन मलीन
का गांठी से गिर गओ कि
का काहू को दीन..
इस पर सूमिन के कहा
ना गांठी के कछु गिरौ
ना काहू को दीन
देवत देखहुं अउर को
ताते बदन मलीन

.......

पदचाप
चलते समय पैर से 
निकलने वाली 
ध्वनि या आवाज़
यथा...
स्मृति के पट 
से उठ रही 
पदचाप है
चूमने जिन्हें 
फिर फिर 
कोमल अधर 
बेताब है
पढ़िए एक रचना..
पदचाप
सरल अनुभूति के जटिल अर्थ,
भाव खदबदाहट, झुलसाते भाप।
जग के मायावी वीथियों में गूँजित
चीन्हे-अनचीन्हे असंख्य पदचाप

तम की गहनता पर खिलखिलाते,
तप तारों का,भोर के लिए मंत्रजाप।
मूक परिवर्तन अविराम क्षण प्रतिक्षण, 

गतिमान काल का निस्पृह पदचाप

-श्वेता
.....
कुछ कालजयी रचनाएँ
कविवर धनंजय सिंह कविता कोश में
गीतों के मधुमय आलाप
यादों में जड़े रह गए
बहुत दूर डूबी पदचाप
चौराहे पड़े रह गए

देखभाल लाल-हरी बत्तियाँ
तुमने सब रास्ते चुने
झरने को झरी बहुत पत्तियाँ
मौसम आरोप क्यों सुने
वृक्ष देख डाल का विलाप
लज्जा से गड़े रह गए

स्टोरी मिरर में
आदरणीय डॉ. जे.पी बघेल
जो रुचे मन को, वही गन्तव्य चुनिये
किन्तु पहले समय की पदचाप सुनिये।

कौन वह जिसने नहीं हो स्वप्न पाले,
स्वप्न ही थे युग जिन्होंने बदल डाले।
जो भले संसार को हो, वे सुहाने स्वप्न बुनिये
किन्तु पहले समय की पदचाप सुनिये।

कविता कोश से
स्मृतिशेष रामानुज त्रिपाठी
फिर कहीं मधुमास की पदचाप सुन,
डाल मेंहदी की लजीली हो गई।

दूर तक अमराइयों, वनबीथियों में
लगी संदल हवा चुपके पांव रखने,
रात-दिन फिर कान आहट पर लगाए
लगा महुआ गंध की बोली परखने

दिवस मादक होश खोए लग रहे,
सांझ फागुन की नशीली हो गई।


पदचाप
उदाहरण की रचना
अभी गुज़र जाओ चुपचाप 
सन्नाटे में विलीन है पदचाप
बदलती परिभाषाओं की व्याख्या में 
अनवरत तल्लीन हैं बसंत-चितेरे। 
© रवीन्द्र सिंह यादव 

नियमित रचनाएँ..
आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा
पदचाप

लगता है, इस पल तुम आए हो,
यूँ बैठे हो, पास!
सुखद वही, इक एहसास, 
तेरा ही आभास,
और चुप-चुप,
सूनी राहों पर, वो पदचाप!

आदरणीय सुधा देवरानी
वसंत की पदचाप

वसंत की पदचाप सुन
शिशिर अब सकुचा रही
कुहासे की चादर समेटे
पतली गली से जा रही.......

हवाएं उधारी ले धरा
पात पीले झड़ा रही
नवांकुर से होगा नवसृजन
मन्द-मन्द मुस्करा रही......

आदरणीय साधना वैद
दहलीज पे ठिठकी यादें

आज फिर सारी रात मुझे
पदचाप सुनाई देती रही  
उन ढीठ यादों की
जो मेरी दहलीज से जाने क्यों
हटने का नाम ही नहीं लेतीं !
कभी तेज़ तो कभी धीमी
कभी आशा से भरी तो कभी

आदरणीय कामिनी सिन्हा
सिर्फ एहसास हैं ये .....

 "पता नहीं कहाँ रख दिया मैंने सारे पुराने कागजात यही तो संभाल कर रखता हूँ ,आज जरूरत हैं तो मिल नहीं रहा " पुराने कागजातों को समेटते समेटते झल्लाहट सी हो रही थी तभी अचानक से एक डायरी नीचे आ गिरी , उस डायरी पर  नजर पड़ते ही अतीत के पदचाप सुनाई पड़ने लगे  ,अभी मैं सम्भलता  तब तक तो वो दिल का दरवाजा खटखटाने लगा। दिमाग  ने कहा -"अनसुना कर दो इस दस्तक को 

आदरणीय आशा सक्सेना
पदचाप ...

हर आहट पर निगाहें
टिकी रहतीं दरवाजे पर
टकटकी लगी रहती
हलकी सी भी पद चाप पर
चाहे आने की गति
धीमी हो कितनी भी
मैं पहचानता हूँ

आदरणीय सुजाता प्रिय
पदचाप सुनाई दी तेरी
आँख खुली और जागी मैं,
पदचाप सुनाई दी तेरी।
चिड़ियों के मीठे कलरव में,
सुप्रभात सुनाई दी तेरी।

आदरणीय कुसुम कोठारी
समय की पदचाप।

समय की पदचाप
सुनी है किसी ने ?नहीं!
दिखती है बस पदछाप।
अपने विभिन्न रंगों में
जिसका न कोई माप।
कहीं नव निर्माण
कहीं संताप ।

आदरणीय अनीता सैनी
प्रफुल्लित पदचाप ....

सोलह बसंत बीते,
बाँधे चंचलता का साथ,   
आज सुनी ख़ुशियों की, 
प्रफुल्लित पदचाप,  
घर-आँगन में बिखरी यादें,  
महकाती बसंत बयार, 
छौना मेरा यौवन की, 
दहलीज़ छूने को तैयार .

आदरणीय मीना शर्मा
My photo
शोर .....
मैं अब इसके साथ जीने के लिए
मजबूर हो चुकी हूँ !
मद्धम, मृदुल, मधुर और
सुकोमल आवाजों के लिए 
बहरी हो चुकी हूँ !!!

मुझे और कुछ नहीं सुनाई देता
ना वसंत की पदचाप
ना तुम्हारी पदचाप
ना मुहब्बत की पदचाप !!!


अभी तक इतनी ही रचना मिली है
रचनाए सुविधानुसार लगी है
कल आ रहे हैं भाई रवीन्द्र जी
नए विषय के साथ
फिर मिलते है शुक्रवार को
सादर














14 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत..
    शुभकामनाएँ सभी को..
    सादर नमन..

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  2. शुभ प्रभात, अप्रतिम साहित्यिक संयोजन। बहुत-बहुत बधाई ष शुभकामनाएँ ।

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  3. सस्नेहाशीष संग असीम शुभकामनाएं छोटी बहना
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

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  4. सुप्रभात
    मेरी रचना को हमकदम में शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद यशोदा जी |

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभकामनाएँँ
    बेहतरीन शब्द सृजन विषय पर।
    सुंदर प्रस्तुतिकरण।

    जवाब देंहटाएं
  6. भूमिका में बहुत कुछ है आपकी सादगी और शालीनता साथ ही शानदार चुटकुला, बधाई।
    शानदार कालजयी रचनाओं के साथ सुंदर लिंक, सभी रचनाकारों को बधाई सभी रचनाएं पदचाप पर सुंदर और विषय के उपयुक्त,मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन प्रस्तुति दी ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार ,
    सभी रचनाकारों को ढेरों शुभकामनाएं ,सादर नमस्कार


    जवाब देंहटाएं
  8. वाह! बहुत सुंदर प्रस्तुति।सभी रचनाएँ काफी सुंदर और सराहनीय।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।मेरी रचना को सोमवारीय विशेषांक में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद।

    जवाब देंहटाएं
  9. सभी रचनाओं की मधुर पदचाप हृदय पर दस्तक देती रही ! अनुपम रचनाओं का अप्रतिम संकलन ! मेरी रचना को इसमें सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  10. आभारी हूँ दी।
    बहुत सुंदर अंक सजाया है आपने।
    सभी रचनाएँ हमेशा की तरह बेहद सराहनीय है।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया दीदी. मेरी रचना को स्थान देने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुंदर अंक। एक ही विषय पर इतनी विविधतापूर्ण रचनाएँ पढ़ने का रोचक और रोमांचक अनुभव !!!
    मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु हृदयपूर्वक आभार दीदी।

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..... एवं शानदार रचनाओं के साथ मेरी रचना को भी आज के विशेषांक में स्थान देने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ....।
    सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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