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शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

1624....बदलती तारीखों में

शुक्रवारीय अंक में आप सभी का
स्नेहिल अभिवादन।
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कलैंडर में बदलती तारीख़ों के हिसाब़ से आज का यह अंक इस वर्ष का अंतिम शुक्रवारीय अंक है।
 कैलेंडर की मात्र तारीख़ ही बदलती है अनवरत चलते कालचक्र पर जीवन के अनिश्चित,अनदेखे,अनजाने रास्तों पर अन्य कोई बदलाव नहीं होता है।
पल स्मृतियों में बदल जाते हैं , परिस्थितियों और सहूलियत के अनुसार रिश्ते बनते और बिगड़ते है।
परंतु जीवन की निराशा, नकारात्मकता, विषमताओं में भी नयी तारीखें आने वाले समय में कुछ अच्छा होगा कहकर धीरे से मुस्काती हैं और संजीवनी-सा संदेश दे जाती हैं।
आइये हम भी आने वाले निर्जीव पलों को अपने कर्मों से छूकर सजीव कर दें।


अनदेखे-अनजाने दिवस के रिक्त पलों में
जाने कौन से पल कब जीवंत हो जायेंगे?
समय के पाँसे जीवन से खेलते हैंं हरपल 
अगले दाँव में 'क्या' प्रश्न ज्वलंत भरमायेंगे
तारीख के पत्थर पे जो गढ पाये पाँव के निशां 
स्मृतियों के संग्रहालय में वही सजाये जायेंगे।
#श्वेता

★★★★★

आइये हम आज की रचनाओं का आनंद लेते हैं-

टुकडे-टुकड़े हो जाते हैं

सर्द है रुत, है सर्द हवा
और सर्द सुलूक तुम्हारा है !
बर्फ से ठंडे अल्फाजों से,
अपने दिल को बहलाते हैं।



झुक कर अंजुलि भर अमृत का भोग लगाना होगा 
वक्त चुराना होगा !

समय गुजर ना जाए यूँ ही 
अंकुर अभी नहीं फूटा है,
सिंचित कर लें मन माटी को 
अंतर्मन में बीज पड़ा है !

कितने रैन-बसेरे छूटे यहाँ से जाना होगा 
वक्त चुराना होगा !

★★★★★★


यह भी ठीक है कि
एक पासे से तुम
सीढ़ी के सहारे
अर्श पे पहुंचा देती हो
तो दूसरे पासे से
सांप के सहारे
फर्श पे

★★★★★★



नयना काजल रेख है ,और बिॅ॑दी है भाल ,
बनठन के गोरी चली ,ओढ़ के चुनर लाल ,
ओढ़ के चुनर लाल , नाक में नथनी डोली ,
छनकी पायल आज , हिया की खिड़की खोली ,
कैसी सुंदर नार , आंख लज्जा का गहना ,
तिरछी चितवन डाल , बाण कंटीले नयना ।।

★★★★★

महकती रही ग़ज़ल

जब भी मेरे ज़ेहन में संवरती रही ग़ज़ल
तेरे ही ख़्यालों से महकती रही ग़ज़ल
झरते रहे हैं अश्क़ भी आँखों से दर्द की
और उंगलियाँ एहसास की लिखती रही ग़ज़ल



पुकारती पगडंडियाँ।
इस ओर फिर कदम बढ़ा।।
माटी को आके चूम लो।
एक बार गांव घूम लो।।
हम अब भी अतिथि को पूजें
हैं ऐसे संस्कार।।

" पर इन आदमियों के समाज में ऐसा नहीं होता। ये इंसान ... इंसान नाम से कम और अलग-अलग लिबासों में हिन्दू ... मुसलमान जैसे नामों से जाने जाते हैं। कोतवाल और वकील के नाम से जाने जाते हैं। सबने अपने-अपने अलग-अलग रंग तय कर रखे हैं - गेरुआ, हरा, सफेद,ख़ाकी और भी कई-कई ... "

हमारे यहाँ कौन शाकाहारी , कौन मांसाहारी या सर्वाहारी है, हम आसानी से इनके खाल के रंगों से पहचान लेते हैं। इनके समाज में पहचानना बहुत ही मुश्किल।

★★★★★★★



आज का यह अंक आपसभी को.कैसा लगा?
आपकी प्रतिक्रिया उत्साहित करती हैं।

हमक़दम का विषय है
औकात

कल की प्रस्तुति पढ़ना न भूले कल आ
रही हैं विभा दी
एक विशेष अंक लेकर।

12 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन...
    यह भी ठीक है कि
    एक पासे से तुम
    सीढ़ी के सहारे
    अर्श पे पहुंचा देती हो
    तो दूसरे पासे से
    सांप के सहारे
    फर्श पे
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. "अनदेखे-अनजाने दिवस के रिक्त पलों में
    जाने कौन से पल कब जीवंत हो जायेंगे?
    समय के पाँसे जीवन से खेलते हैंं हरपल
    अगले दाँव में 'क्या' प्रश्न ज्वलंत भरमायेंगे
    तारीख के पत्थर पे जो गढ पाये पाँव के निशां
    स्मृतियों के संग्रहालय में वही सजाये जायेंगे।"
    एक अनमोल भूमिका के साथ अनूठी रचना ... साधुवाद आपको इस बेहतरीन अंक के लिए ...
    संग आभार आपका मेरी रचना को इस मंच पर साझा करने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  3. श्वेता, आने वाले साल पर तुम्हारी शुभकामनाओं का असर ज़रूर पड़ेगा.
    काश कि हमारे देश-संचालक भी तुम्हारी तरह से सच्चे दिल से 'सत्य, शिव और सुन्दर' की परिकल्पना को साकार करने में अपना योगदान देते.
    सबको नव-वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएँ !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत उम्दा प्रस्तुति
    उत्कृष्ट रचनाएं
    बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. जबरदस्त प्रस्तुति
    पुकारती पगडंडियाँ।
    इस ओर फिर कदम बढ़ा।।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर हलचल, नव वर्ष के लिए अग्रिम शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  7. तारीख के पत्थर पे जो गढ पाये पाँव के निशां
    स्मृतियों के संग्रहालय में वही सजाये जायेंगे।
    सटीक आत्ममुग्ध करते कथ्य।
    सुंदर हलचल प्रस्तुति ।
    सभी रचनाएं उच्चस्तरिय।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. आप सभी के स्नेह और आशीर्वाद को पाकर अत्यंत अभिभूत हूँ। फरवरी के महीने से ही ब्लॉग जगत में सक्रिय हो पाऊँगी। सभी का तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
    हलचल की सारी टीम की विशेष आभारी हूँ जो मेरी रचनाओं को मंच पर लाकर बार बार मुझे अपने छूटे हुए लेखनकर्म की याद दिलाते रहते है। आज के अंक में मुझे शामिल करने के लिए प्रिय श्वेता को सस्नेह धन्यवाद।
    प्रस्तुति और रचनाएँ दोनों अत्यंत सुंदर हैं।

    जवाब देंहटाएं
  9. शानदार भूमिका के साथ बेहतरीन प्रस्तुति श्वेता जी ,एक एक रचना लाज़बाब ,हार्दिक बधाई सभी रचनाकारों को

    जवाब देंहटाएं

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