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शनिवार, 9 नवंबर 2019

1576... आखेट


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
हाँ! हर मुद्दे के जज और मजिस्ट्रेट
होता जाएगा सब-कुछ मटियामेट
उकसा जाओ विभिन्न अर्थों से फेंट
दमन करो कर चेतना का
आखेट


लेकिन अभी वह सोच ही रहा था कि अब दंग रह गया है.
उसके भीतर कोई नन्‍हीं सी घंटी बजी है और उसका यह ख़याल
ख़ुद ब ख़ुद पहले तक पहुंच कर और वहां से जवाब लेकर लौट आया है.
दूसरा चौंक कर देखता है कि वह पहले के बिल्‍कुल नजदीक पहुंच गया है.
उसके भीतर फिर वही नन्‍हीं घंटी बजती है: 
‘‘हमसे मुक़ाबला करोगे तो मार्केट में टिक नहीं पाओगे... बेहतर होगा कि हमारे साथ मिल जाओ’’.

आखेट

By Tumpa Chakraborty
मुझे मालूम है अब खूब
रात और स्वप्न के मैदान में
तीर और चाँद मुझे देखा करेंगे
और मैं रहूंगी हिरणों के झुण्ड में शामिल
उनकी छलांगों के मुक्ति विलास में
लांघती -फांदती जंगल के जंगल ..’

आखेट


जिसे तुमने छोड़ा
जाते हुए वापस अपने अभियान से
ज़मीन पर
घास के खुले हुए गट्ठर -सा
उसकी जु़बान पर तुम्हारे थूक का नहीं
उससे उफनती घृणा का स्वाद था

कोलाहल कलह


"इसे दंड देने मैं बैठी या करती रखवाली मैं,
यह कैसी है विकट पहेली कितनी उलझन वाली मैं?"

"अरे बता दो मुझे दया कर कहाँ प्रवासी है मेरा?
 उसी बावले से मिलने को डाल रही हूँ मैं फेरा।"
रोमांच



अजीब विडम्बना है 
अपनी आहत भावना लेकर

यहाँ हर कोई आखेट पर निकला है!
><
फिर मिलेंगे...

अब बारी है विषय की

चौरानबेवाँ विषय
मौन
उदाहरण



हिलता रहता मौन अंदर से
सिमटते सिमटते
अपने को
ठोस बना देता है
मजबूत बना देता है

ऎसे मौन की
आवाज कोई
ऎसे ही कैसे
रचनाकार - डॉ. सुशील कुमार जोशी
प्रेषण तिथि-09 नवम्बर 2019
प्रकाशन तिथि-11 नवम्बर 2019
प्रविष्टिया मेल द्वारा भेजें
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4 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब प्रस्तुति..
    सदा की तरह..
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. शब्द बाण कभी-कभी कुशल आखेटक के लिए भी मांगा साबित होता है। त्रेतायुग में दशरथ ने " आखेट" की मंशा अनजाने में ही सही निर्दोष युवक श्रवण कुमार आखेट किया। परिणाम यह रहा कि " शब्द बाण" के माध्यम से वृद्ध दशरथ का भी " आखेट" हुआ। अतः बुद्धिमान व्यक्ति शब्दबाण के दोतरफा प्रभाव पर उसका प्रयोग करते समय अवश्य चिंतन करें, कलयुग में इसका प्रभाव कहीं अधिक घातक है , क्योंकि इसमें रोमांच भी है।

    व्याकुल पथिक का आपसभी को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. यह पढ़ा जाय-
      आखेटक के लिए भी महंगा साबित होता है। त्रेतायुग में दशरथ ने " आखेट" की मंशा से अनजाने में ही सही ...

      हटाएं
  3. सराहनीय भूमिका और पठनीय रचनाओं से सुसज्जित आज की प्रस्तुति हमेशा की तरह विशेष है दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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